माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूं मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
-अल्लामा इक़बाल
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
-साहिर लुधियानवी
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बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा
-शौक़ बहराइची
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
-अकबर इलाहाबादी
ये इश्क़ नहीं आसान इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
-जिगर मुरादाबादी
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
-अहमद फ़राज़
उस की याद आई है सांसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
-राहत इंदौरी
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