इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
लोग कहते हैं कि बदनामी से बचना चाहिए
कह दो बे उसके जवानी का मज़ा मिलता नहीं
उन्हीं की बे-वफ़ाई का ये है आठों-पहर सदमा
वही होते जो क़ाबू में तो फिर काहे को ग़म होता
Javed Akhtar Poetry: “होंटों पे लतीफ़े हैं…” जावेद अख़्तर के खूबसूरत शेर
इस गुलिस्तां में बहुत कलियां मुझे तड़पा गईं
क्यूं लगी थीं शाख़ में क्यूं बे-खिले मुरझा गईं
सांस की तरकीब पर मिट्टी को प्यार आ ही गया
ख़ुद हुई क़ैद उस को सीने से लगाने के लिए
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूं क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
हसीनों के गले से लगती है ज़ंजीर सोने की
नज़र आती है क्या चमकी हुई तक़दीर सोने की
जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया
अब ख़ुश्क-मिज़ाज आंखें भी हुईं दिल ने भी मचलना छोड़ दिया