मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊंचा कर दिया
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आंखें दुखाने लगी
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूं
ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूं
जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
इक रोज़ मेरी जान ये हरकत भी कर के देख
सोए तो दिल में एक जहां जागने लगा
जागे तो अपनी आंख में जाले थे ख़्वाब के
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
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