चंडीगढ़ : आयुर्वेद मन, बुद्धि आत्मा का भी परिष्कार करता है। यह केवल शरीर की चिकित्सा का साधनमात्र नहीं है। इसलिए इसे पंचम वेद की संज्ञा दी गई है। ये उदगार हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने बज्योतिष व आयुर्वेद पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए व्यक्त किए। सम्मेलन का आयोजन ज्योतिष प्रांगण संस्था द्वारा किया गया था। राज्यपाल ने देशभर से सम्मेलन में आए ज्योतिषाचार्यों और आयुर्वेदाचार्यों को सम्मानित किया। प्रो. सोलंकी ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों का आह्वान किया कि वे चिकित्सा करने से पहले आदमी को समझें।
क्योंकि यदि आदमी को नहीं समझ पाएंगे तो इलाज भी नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के अंदर संपूर्ण ब्रह्मण्ड विद्यमान है। इसी कारण ग्रहों, नक्षत्रों आदि का उसके जीवन पर प्रभाव रहता है। हमारे विद्वानों ने इस बात को वैज्ञानिक ढंग से समझ लिया था। लेकिन विदेशी शासन के दौरान हमारा वह ज्ञान लुप्तप्राय हो गया। नए भारत के निर्माण के लिए उस प्राचीन ज्ञान को पुन: स्थापित करना है। ऐसा करने के बाद ही हम सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर पाएंगे।
राज्यपाल ने कहा कि हमारे चारों वेदों ने हमें एक जीवन-शैली प्रदान की है जिसे अपनाकर व्यक्ति नर से नारायण बन सकता है। लेकिन संसार के सम्पर्क में आने से इस व्यक्ति में कुछ विकार आ सकते हैं। ऐसे सब विकारों को दूर करने का ज्ञान ज्यातिष व आयुर्वेद में है। योग के महत्व का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यदि हम योग के अनुसार जीवन को चलाते हैं तो अनेक विकार स्वयं ही ठीक हो जाते है। उन्होंने कहा कि भारत को जानना है तो योग, आयुर्वेद, गीता सहित सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति को जानना जरूरी है। इस भारत को जाने बिना हमारी आजादी का भी कोई मतलब नहीं है।