मिड डे मील की शुरुआत किस राज्य से और कैसे हुई थी ? - Mid Day Meal In India
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जब एक बच्चे के जवाब से किंगमेकर ने शुरू की थी मिड -डे मील योजना

Mid Day Meal in India

Mid Day Meal in India: मद्रास राज्य (अब तमिलनाडू) के नेता के. कामराज ने देश में शिक्षा के प्रति बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने ही देश में मिड -डे मील की भी शुरुआत की थी। उन्हें ‘किंगमेकर’ के नाम से भी जाना जाता है। कामराज के मुख्यमंत्री बनते ही उस दशक में तमिलनाडु की शिक्षा दर 85 प्रतिशत तक बढ़ गई।

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बता दें, 13 अप्रैल 1954 में जब कामराज मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सीट संभाली, तो उन्होंने हर गरीब और जरूरतमंद को शिक्षा का बीड़ा उठाया। उन्होंने शिक्षा की नीति बनाई। नए स्कूल बनवाए। स्कूल आने वाले छात्रों को मुफ्त में यूनिफॉर्म दी गई। पाठ्यक्रम में संशोधन किया गया। अपने इन कामों से कामराज ‘शिक्षा के जनक’ के रूप में लोकप्रिय हो गए।

बचपन में छोड़ना पड़ा स्कूल

कामराज का जन्म15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरुधुनगर में एक व्यापारी परिवार में हुआ था। उनके पिता के निधन के बाद मां को गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। 11 साल की छोटी उम्र में, कामराज को मां का सहयोग करने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा। तभी से वह चाहते थे कि उनकी तरह दूसरे बच्चों को स्कूल नहीं छोड़ना पड़े और वो सभी स्कूल जरूर जाएं।

यहां से हुई मिड -डे मील की शुरुआत (Mid Day Meal in India)

1960 के दशक की शुरुआत में तिरुनेलवेली जिले के चेरनमहादेवी शहर का दौरा करते समय, कामराज ने एक लड़के को रेलवे क्रॉसिंग पर मवेशी चराते हुए देखा। उन्होंने उस लड़के से पूछा वह ऐसा क्यों कर रहा है, स्कूल क्यों नहीं जाता। इस पर उस लड़के ने कहा, “अगर मैं स्कूल जाऊं तो क्या आप मुझे खाने के लिए खाना देंगे? मैं तभी सीख सकता हूं जब मैं खाऊंगा,” और लड़के के इन शब्दों में कामराज को ऐसा काम करने के लिए प्रेरित किया जो आने वाले समय में पूरे देश के प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के लिए खींचने वाली खास योजना बनने वाली थी, जिसे हम मिड -डे मील के तौर पर जानते हैं।

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कामराज जानते थे कि शिक्षा का जीवन में क्या महत्व है और कई बच्चे अपने माता-पिता की मदद के लिए अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिया करते थे। ऐसे में बच्चे की बात सुनकर उन्हें महसूस हुआ कि अगर स्कूल में एक टाइम का ठोस भोजन दिया जाए तो बहुत से बच्चे स्कूल आएंगे और पढ़ने के लिए प्रेरित होंगे।

Mid Day Meal से बच्चों की संख्या बढ़ी

मिड-डे मील स्कूल योजना को लागू करने के बाद जब कामराज ने इसकी जानकारी ली तो रिजल्ट बहुत अच्छे निकलकर आए। 1955 में मद्रास नगर पालिका के स्कूलों और हरिजन कल्याण स्कूलों में इस योजना के कारण छात्रों की मौजूदगी बढ़ गई थी। बच्चे सोमवार से शुक्रवार तक खूब आने लगे थे। लेकिन शनिवार को छात्रों की उपस्थिति आधी हो जाती थी, क्योंकि शनिवार के दिन स्कूल केवल आधे दिन के लिए खुलते थे, इसलिए दोपहर का भोजन उपलब्ध नहीं कराया गया था।

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योजना आयोग नहीं था योजना के लिए तैयार

जब कामराज ने मिड डे मील को दूसरी पंचवर्षीय योजना (एसएफवाईपी) में शामिल कराना चाहा तो ये आसान नहीं था। सभी प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन को केंद्रीय योजना आयोग बहुत व्यावहारिक नहीं मान रहा था। वहीं, इस योजना को लागू करने के लिए उपलब्ध और आवश्यक धनराशि के बीच का अंतर पांच करोड़ था। बता दें, कामराज मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को लागू करने के लिए एक नया कर लगाने के लिए तैयार थे। काफी समझाने के बाद एसएफवाईपी में फंडिंग के लिए मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को शामिल किया गया। तमिलनाडु के विधानमंडल ने भी इस कार्यक्रम को मंजूरी दे दी।

सरकारी योगदान के साथ स्वयंसेवी मदद भी (Mid Day Meal in India)

बता दें, 17 जुलाई 1956 को तिरुनेलवेली जिले के एट्टायपुरम में मिड डे मील कार्यक्रम शुरू किया गया। 01 नवंबर, 1957 से कामराज सरकार ने केंद्र सरकार के वित्त पोषण का इस्तेमाल कर अधिक से अधिक प्राथमिक विद्यालयों को शामिल करने के लिए कार्यक्रम का विस्तार दिया। कार्यक्रम में सरकार का योगदान सिर्फ 10 पैसे प्रति बच्चा था, स्थानीय अधिकारियों से 05 पैसे के योगदान की संभावना थी, जो ज्यादातर नहीं हो पाती थी। इसके चलते इस कार्यक्रम को लगातार चलाने के लिए स्वयंसेवक योगदान का सहारा लेना होता था।

वहीं, कामराज ने पूरे राज्य में जाकर मध्याम भोजन योजना के लिए लोगों को जागरूक किया। इसके बाद स्थानीय लोगों ने धन और वस्तुओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए समितियों को संगठित और स्थापित किया। इन समितियों के गैर-सदस्य सचिव आमतौर पर स्कूलों के प्रधानाध्यापक होते थे। स्थानीय समितियों बरतन जैसे सामानों की पूरी लागत वहन करती थीं।

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कामराज की योजना की तहत क्लास 01 से 08 तक के लगभग 20 लाख प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को प्रत्येक वर्ष 200 दिनों के लिए भोजन दिया जाता था। बता दें, जुलाई 1961 से, ‘कोऑपरेटिव अमेरिकन रिलीफ एवरीव्हेयर’ (CARE) ने सरकार के इस मिड-डे मील प्रोग्राम में जुड़ना मंजूर किया। इसमें ये संस्था आर्थिक तौर पर मदद करने लगी। उन्होंने खाद्य आपूर्ति, जैसे दूध पाउडर, खाना पकाने का तेल, गेहूं, चावल और अन्य पोषण संबंधी सामान की आपूर्ति शुरू कर दी।

देश के अन्य राज्यों में पहुंची योजना

Mid Day Meal in India: यह योजना पांच सालों के अंदर ही सफल हो गई थी। 1957 और 1963 के बीच इसका खर्च 17 गुना बढ़ गया, जिससे इसका फायदा उठाने वाले बच्चों की संख्या में भी 06 गुना बढोतरी हुई। कम आय वाले परिवारों के जिन बच्चों को स्कूल से बाहर रखा गया, उन्होंने स्कूल जाना शुरू कर दिया, क्योंकि इससे बच्चे के लिए रोज कम से कम एक टाइम पौष्टिक भोजन सुनिश्चित हो गया। मिड-डे मील योजना ने बच्चों में एकता भी बढ़ाई। अलग अलग पृष्ठभूमियों के बच्चे एक साथ बैठते थे। एक साथ एक ही तरह का भोजन करते थे।

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बता दें, कामराज की मिड-डे मील योजना हिट थी। एम.जी. रामचन्द्रन ने 1982 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान इसे और बढ़ाया। फिर जल्द ही केंद्र सरकार ने इसे अपनाया और ये देश के अन्य राज्यों तक भी पहुंच गई।

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