क्रिसमस पर बच्चों को गिफ्ट देने वाले सैंटा क्लॉस की कहानियां आपने सुनी होगी, जिनकी सफेद रंग की दाढ़ी होती हैं और वह लाल रंग के कपड़े पहनते हैं आदि। बता दें, सैंटा क्लॉस का असली नाम संत निकलोस है, वह बच्चों को गिफ्ट देते थे, लोगों को दान दिया करते थे। उन्होंने ही सैंटा क्लॉस के किरदार को गढ़ा था। जिन्हें सैंटा क्लॉस, क्रिस क्रिंगल, फ़ादर क्रिसमस और सेंट निक जैसे नाम से भी जाना जाता हैं। पर आज भी उनकी कब्र कहां मौजूद है इसकी गुत्थी आजतक विद्वानों भी नहीं सुलझा पाए हैं।
माना जाता है कि मेव और जो कॉनेल परिवार के घर में सेंट निकोलस चर्च टावर के खंडहर मौजूद हैं। 13वीं सदी के इस खंडहर में क़ब्रिस्तान भी है जो हरे घास के मैदान और पहाड़ियों के बीच है। इस क़ब्रिस्तान में दफ़्न अधिकतर लोग इस जागीर के शुरुआती निवासियों में हैं और स्थानीय लोगों के मुताबिक़ इन लोगों में मायरा के सेंट निकोलस भी हैं।
120 एकड़ में फैला 12वीं सदी का मायरा शहर, आयरलैंड के किलकेनी शहर से दक्षिण में 20 किलोमीटर दूर है। जहां जो कॉनेल जेरपाइंट पार्क के अकेले मालिक और रहने वाले अकेले शख्स हैं। आइए जानते है कि सेंट निक कौन थे और उनके अवशेष आयरलैंड कैसे पहुंचे।
कौन है संत निकोलस?
माना जाता है कि संत निकोलस का जन्म ईसा मसीह की मौत के 280 साल बाद हुआ था। उनका जन्म पतारा शहर में हुआ था। संत बनने से पहले वह अनाथ बच्चे थे। अन्य रिपोटर्स के मुताबिक, उन्होंने अपनी पूरी विरासत ज़रूरतमंदों, बीमारों और ग़रीबों को दान कर दी थी। इसके बाद वो मायरा के बिशप बन गए जो अब तुर्की का हिस्सा है।
वो बिशप साल 325 में उसी काउंसिल ऑफ़ नाइसिया में बने थे जिसमें ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र घोषित किया गया था। सेंट निकोलस की मौत 6 दिसंबर 343 में मायरा में हुई। हालांकि आज भी सेंट निकोलस की क़ब्र कहां है इसको लेकर विद्वानों के बीच गुत्थी उलझी हुई है।
कुछ लोगों का दावा है कि तुर्की के अंतालया के सेंट निकोलस चर्च के अंदर उनका मकबरा है। वहीं कुछ का मानना है कि उनके शव को चुरा लिया गया था और इटली के बरी में उसे दफ़नाया गया था। ऐसा माना जाता है कि शव को इटली के बासिलिका दी सैन निकोला के चर्च के तहख़ाने में दफ़नाया गया था। वहीं कुछ यह भी कहते हैं कि सेंट निक के शव से उनकी चीज़ें छीनकर या तो बेच दी गई थीं या तो लोगों को तोहफ़े में दे दी गई थीं।
पहले बसा शहर अब खंडर
माना जाता है कि जहां संत निक की कब्र दफ्न है वह जगह नोर और लिटिल एरिंगल नदी के क्रॉसिंग पॉइंट पर बसी है, जिसे नोरमंस ने आबाद किया था जो साल 1160 में आयरलैंड आए थे। जिसके बाद आयरलैंड की हेरिटेज काउंसिल ने एक संरक्षण योजना के मुताबिक़, इस शहर को 15वीं सदी में और निखारा गया। पुरातात्त्विक साक्ष्य बताते हैं कि इस दौरान घर, बाज़ार, एक टावर, एक पुल, गलियां, एक मिल, वाटर मैनेजमेंट सिस्टम और क़रीब में ही जेरपॉइंट एबी बनाया गया. ये जेरपॉइंट एबी आज भी वहीं खड़ा है।
लेकिन 17वीं सदी में इस शहर के लोग ग़ायब हो गए, अनुमान है कि हिंसक हमलों या महामारी की वजह से लोग यहां से चले गए। जिसके बाद ये गांव एक प्राइवेट प्रॉपटी बन गया। इस प्रोपर्टी को दिखाते समय मेव और टिम ने बताया कि यहां हमेशा से सेंट निक मौजूद थे।
तुर्की से आयरलैंड आए अवशेष
मेव एक प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए दिखाती हैं जिसमें दो शख़्स सेंट निकोलस के कंधों से झांक रहे हैं। वो बताती हैं कि ये दोनों क्रूसेडर के योद्धाओं को दिखाता है जो सेंट निकोलस के शव को तुर्की से इटली सुरक्षित रखने के लिए ले जा रहे हैं।
मेव बताती हैं कि इस मिशन के दौरान वो योद्धा संत के कुछ अवशेष आयरलैंड ले आए और उन्होंने न्यूटाउन जेरपॉइंट के सेंट निकोलस चर्च में उन्हें दफ़ना दिया गया, जिसके बाद उन्हें चर्च के क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, आयरलैंड के इमीग्रेशन म्यूज़ियम एपिक के एग्ज़िबिशन और प्रोग्राम प्रमुख नैथन मेनियन कहते हैं, “वो जगह जहां पर क़ब्र है वो उसकी असली लोकेशन नहीं है। साल 1839 में इसको यहां पर लाया गया था।” मालूम हो, मेनियन काउंटी किलकेनी के रहने वाले हैं और वह भी जेरपॉइंट पार्क में सेंट निक के मकबरे से जुड़ी अफ़वाहों को सुनते हुए बड़े हैं।
क्या सच में यहीं दफ्न है सैंटा?
जेरपाइंट पार्क मकबरे में क्या है इस पर मेनियन कहते हैं कि कुछ मानते है कि यहां पर सेंट निकोलस के अवेशष दफ़्न हैं तो वहीं कुछ का कहना है कि क़ब्र के बारे में ग़लतफ़हमी है और ये वास्तव में एक स्थानीय पादरी की क़ब्र है।
मेनियन मानते हैं कि क़ब्र के ऊपर बनी प्रतिमा के नीचे क्या है इसे बिना खोदा नहीं जा सकता है। उनका मानना है कि यह आस्था का मामला है और संतों के शरीर के अवशेष पूरी दुनिया में पाए जाते रहे हैं और इसकी पुष्टि का इकलौता सहारा डीएनए सैंपल्स हैं।
हालांकि, मेव कहती हैं कि उनके मकबरे को खोदने की कोई योजना नहीं है और उनका मानना है कि इसमें संत के अवशेष हैं। वो कहती हैं, “तथ्य ये है कि जो प्रतिमा है उसमें उन अवशेषों को दिखाया गया है, इसलिए लोग इस जगह को अहम मानते हैं। आप किसी भी बड़ी प्रतिमा को बिना बात के नहीं लगाएंगे। आप जानते हैं कि यहां पर कुछ तो है”।
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