राजनीति में युवा - Punjab Kesari
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राजनीति में युवा

हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत यहां की युवा पीढ़ी है। दुनिया में भारत एक मात्र ऐसा देश…

हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत यहां की युवा पीढ़ी है। दुनिया में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां की सबसे ज्यादा आबादी युवा है। जब भी किसी देश की सत्ता हिली है वो उस देश के युवाओं ने हिलाई है। युवाओं को राजनीति​ में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। राजनीति को लेकर आम जनता के मन में जो गलत धारणाएं हैं। इसी के कारण आज के युवा राजनीति से दूर भागते हैं, क्योंकि वे किसी प्रपंच या झंझट में नहीं पड़ना चाहते। मेरा मानना है कि अगर किसी जगह आपको कहीं कुछ गलत होता दिखाई दे, तो बजाय दूर खड़े होकर उसकी निंदा करने के, उसका समाधान करने के लिए उसकी जड़ तक जाना चाहिए। हमारे युवाओं को भी राजनीति के नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने के लिए कुछ ऐसा ही करना चाहिए। युवाओं की राजनीति में भागीदारी, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का सबसे सशक्त माध्यम बन सकती है। जब युवा राजनीति में कदम रखेंगे, तो वे अपने नए विचार, नई सोच, लीक से हटकर काम करने के तरीके, ऊर्जा, और उत्साह के साथ समाज की समस्याओं का समाधान नए दृष्टिकोण से खोज सकेंगे। यही कारण है कि राजनीति में युवाओं की भागीदारी न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा कि विकसित भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। जब युवा दिमाग एकजुट होकर देश के भविष्य की यात्रा के बारे में विचार-विमर्श करते हैं, तो सकारात्मक रूप से ठोस रास्ते निकलते हैं।

प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से युवाओं से राजनीति में आने का आग्रह किया था। राजनीति में प्रवेश करने के लिए युवाओं में रुचि विकसित करने के प्रयास के तहत अगले साल स्वामी विवेकानंद की जयंती पर की जाने वाली पहल ‘विकसित भारत युवा नेता संवाद’ स्वागत योग्य है। इसमें पूरे भारत से युवा हिस्सा लेंगे। एक लाख नए युवाओं को राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई विशेष अभियान चलाए जाएंगे। इससे युवाओं को सीधे अपने विचार हमारे सामने रखने का अवसर मिलेगा। इन विचारों को देश कैसे आगे बढ़ा सकता है?जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रवाद जैसे हथकंडे सत्ता हासिल करने के आसान टोटके बन गए थे। आज भी कई नेता इन्हें आजमाते रहते हैं, उन्हें कहीं-कहीं कामयाबी मिल जाती है। ये सब खराबियां अपनी जगह थीं। इनके अलावा राजनीति में परिवारवाद, धनबल और बाहुबल के प्रयोग ने लोकतंत्र को बहुत नुकसान पहुंचाया है। पुराने जमाने में जिस तरह बादशाह का बेटा बादशाह बनता था, उसी तरह विधायकों-सांसदों की संतानें सत्ता में हिस्सेदारी पाने लगीं।

चुनाव प्रचार इतना महंगा हो गया कि आम आदमी तो उस स्तर पर मुकाबला करने के बारे में सोच ही नहीं सकता। अस्सी और नब्बे के दशक में कई बाहुबली नेताओं का दबदबा था, जो लठैतों के जोर पर आम जनता को धमकाते और बूथों पर कब्जा कर लेते थे। हालांकि समय के साथ बाहुबली नेताओं की पकड़ ढीली हुई। चुनाव आयोग और अदालतों की सख्ती के कारण उनकी मनमानी काफी हद तक बंद हो गई।

राजनीति एक ऐसा माध्यम है, जहां कोई व्यक्ति सच्ची निष्ठा और पूर्ण मनोयोग से काम करे तो वह बहुत सकारात्मक बदलाव ला सकता है। विडंबना है कि आज ‘राजनीति’ को बहुत नकारात्मक सन्दर्भ में लिया जाता है। हालांकि इसके लिए कुछ नेताओं के कारनामे जिम्मेदार हैं। इसी देश में महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे महान राजनेता हुए, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देशसेवा के लिए समर्पित कर दिया था। वास्तव में जो भारत का भविष्य बनाने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए यह एक उत्तम अवसर है। कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड और आस्ट्रेलिया ऐसे कुछ प्रमुख देश हैं, जहां 18 साल का पड़ाव पार करते ही चुनाव लड़ने की अर्हता प्राप्त हो जाती है। वहीं, अमेरिका के कुछ राज्यों, ब्राजील और इंडोनेशिया में 21 वर्ष की आयु सीमा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु वर्ग के रूप में स्वीकार्य है।

विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि युवा लोग औपचारिक राजनीतिक प्रक्रियाओं में शामिल हों और आज और कल की राजनीति को तैयार करने में उनकी भूमिका हो। समावेशी राजनीतिक भागीदारी न केवल एक मौलिक राजनीतिक और लोकतांत्रिक अधिकार है, बल्कि स्थिर और शांतिपूर्ण समाजों के निर्माण और युवा पीढ़ियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने वाली नीतियों को विकसित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। हमारी असली दिक्कत राजनीति में मध्यवर्ग का न होना है। ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों की बात करें, तो वहां हालात अलग हैं। वहां मध्यवर्ग के लोग राजनीति में आए, तो उन्होंने काफी कुछ बदला। मारग्रेट थैचर को ही ले लें, तो उनके पिता किराने की दुकान चलाते थे। हमारे यहां मध्यवर्ग के लोग हर क्षेत्र में सामने आ रहे हैं सिवाय राजनीति के। राजनीति में लोकतंत्र के नाम पर वंशतंत्र ने जगह बना ली है। ज्यादातर उच्च वर्ग वाले लोग राजनीति में सक्रिय हैं। बाकी जगह माफियाओं और अपराधियों ने ले ली है। तभी हमारे देश में लंबे वक्त को ध्यान में रखकर फैसले नहीं लिए जाते। राजनीतिक परिदृश्य से जुड़ी नकारात्मकता भी युवाओं को इसमें आने से हतोत्साहित करती है। वह सोचता है कि यह क्षेत्र उसी के लिए है, जिसके पास खूब धन हो, जिसके परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि हो तथा जाति, सांप्रदायिकता और अन्य सियासी समीकरण पक्ष में हों। इस सोच को बदलना होगा। ऐसे सेवाभावी और प्रतिभाशाली युवाओं को आगे लाना होगा, जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। राजनीति को परिवारवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता से मुक्त करने के लिए बहुत जरूरी है कि जनता भी ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करे।

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