योगी का ज्ञानवापी पर आह्वान - Punjab Kesari
Girl in a jacket

योगी का ज्ञानवापी पर आह्वान

हिन्दुओं के देवाधिदेव कहे जाने वाले भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी भारत की अस्मिता का प्रतीक इस स्वरूप

हिन्दुओं के देवाधिदेव कहे जाने वाले भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी भारत की अस्मिता का प्रतीक इस स्वरूप में रही है कि इस नगर को बसाने का श्रेय स्वयं भगवान शंकर को ही जाता है। बेशक यह भारतीय पौराणिक हिन्दू धर्म ग्रन्थों की मान्यता है परन्तु भारत के लोगों का इसमें विश्वास बताता है कि यह प्रश्न केवल आस्था का न होकर इस देश के पुरातन धार्मिक इतिहास का है। इतिहास भी हमें इसके पक्ष में ही दस्तावेज मुहैया काराता है और कहता है कि 1669 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने शाही फरमान जारी कर काशी या बनारस के विश्वनाथ मन्दिर को विध्वंस करने का आदेश दिया था। इस शाही फरमान के आलोक में यदि विश्वनाथ धाम परिसर में बने ज्ञानवापी क्षेत्र को मस्जिद का स्वरूप औरंगजेब काल में दिया गया तो निश्चित रूप से मुगलकाल में की गई यह ऐतिहासिक भूल या गलती थी जिसके परिमार्जन करने के अधिकार से हिन्दुओं को बेदखल नहीं किया जा सकता क्योंकि औरंगजेब का यह कृत्य इस देश की सांस्कृतिक धरोहर को ही नष्ट करने का था। जिस प्रकार औरंगजेब के पिता द्वारा आगरा में बनवाये गये ‘ताजमहल’ के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास कही जायेगी उसी प्रकार ज्ञानवापी क्षेत्र को मस्जिद स्वरूप में परिवर्तित करने के प्रयास को देखा जायेगा, बेशक यह प्रयास 17वीं सदी में क्यों न किया गया हो।
अतः उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ का यह कथन पूर्णतः तार्किक व वैज्ञानिक सबूतों पर आधारित है कि ज्ञानवापी क्षेत्र को मस्जिद कहना गलत है और इतिहास की इस गलती को स्वीकार करते हुए मस्जिद की इंतजामिया कमेटी को स्वयं ही एक प्रस्ताव करके ज्ञानवापी को हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए और अदालतों के चक्कर नहीं काटने चाहिए। योगी आदित्यनाथ उस ‘नाथ सम्प्रदाय’ की गोरखनाथ पीठ के महन्त हैं जो ‘अलख निरंजन’ में विश्वास रखती है। इसका अर्थ ईश्वर के निराकार स्वरूप से होता है और मानवता की प्रतिष्ठापना इसका लक्ष्य होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जरूरी होता है कि आदमी सबसे पहले इंसान बने और उसमें आपस में भाईचारा हो। इसी भाईचारे को आधार बना कर 1920 में देवबन्द इस्लामी विचार पर गठित जमीयत उल-उलमा-ए-हिन्द के प्रमुख मौलाना हसन मदनी ने पाकिस्तान निर्माण का विरोध करते हुए भारत के लोगों की संस्कृति को ‘मुत्तेहैदा कौमियत’ का नाम दिया था और मुस्लिम लीग के नेताओं को चुनौती दी थी कि वे भारत के मुसलमानों की अलग कौमियत के सिद्धान्त पर उनसे बहस करने की हिम्मत करें।
यह मुत्तेहैदा कौमियत यही है कि हिन्दू और मुसलमान सदियों से एक-दूसरे की भावनाओं व मान्यताओं का सम्मान करते हुए भारत में रहते आ रहे हैं और इस देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना का हिस्सा है। इसी मुत्तेहैदा कौमियत की मांग है कि कांशी के ज्ञानवापी क्षेत्र में मस्जिद का निर्माण मन्दिर के भग्नावशेषा के ऊपर ही करा कर औरंगजेब ने जो ऐतिहासिक गलती की थी उसमें स्वयं मुस्लिम बन्धुओं द्वारा ही सुधार करने की शुरूआत की जाये और भारत की एकता को सुदृढ़ बनाया जाये। हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत के मुस्लिम सुल्तानों से लेकर मुगल बादशाहों तक ने इसकी संस्कृति का सम्मान किया है। औरंगजेब या कुछ सुल्तान इसका अपवाद जरूर हो सकते हैं मगर भारतीय मुसलमानों ने भी भारत की संस्कृति का सम्मान करके ही शासन किया। मुस्लिम सुल्तान अलाऊद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक ने हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीर वाले सिक्के तक चलाये। मुगल सम्राट अकबर हिमाचल में स्थित ज्वाला देवी के मन्दिर में पैदल यात्रा करके गया।
यदि वर्तमान भारत की बात करें तो बरेली में ‘चुन्ना मियां’ का बनाया भगवान लक्ष्मी नारायण का मन्दिर भी हमारे सामने है और दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद को छुड़ाने के लिए नगर ‘सेठ छुन्ना मल’ द्वारा दिया गया धन भी यही कहानी कहता है। अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वारा जमुना जी किनारे शुरू कराई गई राम लीला भी इसकी गवाही देती है। यही तो मुत्तेहैदा कौमियत होती है। काशी विश्वनाथ की कथित मस्जिद की दीवारों से लेकर उसका पूरा स्थापत्य ढांचा चीख-चीख कर कह रहा है कि मन्दिर के ढांचे के ऊपर ही औरंगजेब काल में मस्जिद के गुम्बद बना दिये गये और शाही रुआब कायम करने के लिए वहां बाद में नमाज पढ़ना भी शुरू कर दिया गया। वरना मस्जिद के अन्दर हिन्दू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां व संस्कृत के श्लोक क्या कर रहे हैं। हालांकि यह मामला अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में है और 3 अगस्त को न्यायालय फैसला देगा कि ज्ञानवापी क्षेत्र का भारतीय पुरात्तव विभाग से सर्वेक्षण कराया जाये या नहीं मगर इस्लाम के सिद्धान्त भी कहते हैं कि किसी दूसरे धर्म के स्थल को मस्जिद में नहीं बदला जा सकता। इसलिए राष्ट्रहित व हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए ज्ञानवापी क्षेत्र पर कुछ मुस्लिम लोगों को जिद छोड़ कर उस भारत की सामाजिक एकता के बारे में सोचना चाहिए जिसके लिए लाखों हिन्दू-मुसलमानों ने अपनी कुर्बानियां दी हैं। योगी आदित्यनाथ ने जो सुझाव दिया है उसका एक कानूनी पहलू भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार के रिकार्ड में 1964 के करीब ही यह आ गया था कि पूरा विश्वनाथ धाम क्षेत्र काशी परिक्षेत्र ही है और उस समय राज्य में कांग्रेस की श्रीमती सुचेता कृपलानी की सरकार थी।  1993 से पहले हिन्दू भक्तों के लिए मस्जिद के अन्दर जाकर पूजा करने की भी छूट थी। यह कार्य मुस्लिम नागरिकों की सहमति से ही होता था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nineteen − 14 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।