‘सच मानो मेरी रफ्तार का यकीं शायद हवाओं को भी न हो पाएगा
चल पड़ेंगे मेरे कदम जिस तरफ उस ओर ही आंधियों का शोर होगा’
यूं तो खेलों का कोई एक रंग नहीं होता, बस राष्ट्रीयता की डोर में बंधा देश प्रेम के जज्बे का एक शर्तिया ऐलान होता है। दिल्ली के निज़ाम के नाको तले जब देश की बहादुर पहलवान बेटियों के साथ अन्याय हुआ तो उन्होंने जनतंत्र के विरोध प्रदर्शन के सबसे बड़े रिंग जंतर-मंतर को भी अपने हुंकार से चित्त कर दिया। अब कांग्रेस हरियाणा के इस हालिया विधानसभा चुनाव के चुनावी अखाड़े में कुछ सचमुच के पहलवानों को उतारने का इरादा रखती है। इसके लिए बाकायदा प्रदेश में कांग्रेस के सिरमौर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक रोड मैप तैयार किया है।
पहले कांग्रेस का इरादा विनेश फोगाट को भिवानी-महेंद्रगढ़ की किसी सीट से मैदान में उतारने का था पर विनेश से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि विनेश अभी अपने पहलवानी कैरियर की इतिश्री नहीं चाहती, सो इस बार वह चुनाव लड़ने से हिचक रही है, चुनांचे देश का मान बढ़ाने वाली इस जीवट पहलवान से कहा गया है कि ‘अगर वह चाहे तो पार्टी उन्हें राज्यसभा के रास्ते भी ऊपरी सदन में भेज सकती हैं।’ भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध की पहली दुंदुभि फूंकने वाली साक्षी मलिक से कहा गया है कि ‘अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें सोनीपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया जा सकता है’, वैसे भी सोनीपत एक ऐसी सीट है जहां मलिक वोटरों का दबदबा है, इस बार के चुनाव में ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पूनिया को झज्जर की बादली सीट से मैदान में उतारा जा सकता है, जो कि एक जाट बाहुल्य सीट है और पूनिया इसी क्षेत्र से आते हैं और स्वयं भी जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
बिन राहुल सब सून
बीआरएस प्रमुख व तेलांगना के पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव अपनी चुनावी हार से उबर कर विपक्षी एकता का नया अलख जगाने के लिए मेढ़क में एक बड़ी रैली प्लॉन कर रहे थे। इस रैली में शामिल होने के लिए उन्होंने बाकायदा ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, तेजस्वी यादव, शरद पवार जैसे विपक्षी धुरंधरों को मना भी लिया था। पर जैसे ही यह प्रस्ताव सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के पास पहुंचा उन्होंने इस आइडिया को सिरे से नकार दिया।
अखिलेश का तर्क था कि ‘आज आपके प्रदेश यानी तेलांगना में कांग्रेस की सरकार है, सो कहीं न कहीं यह रैली भी कांग्रेस के खिलाफ अलख जगाने की शुरूआत होगी, हमें अपने उद्बोधनों में कांग्रेस पर भी निशाना साधना होगा, जबकि आज का सबसे बड़ा सच यही है कि कांग्रेस मौजूदा दौर में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका मजबूती से निभा रही है और हमारी जैसी पार्टियां भी कंधे से कंधा मिला कर संसद व संसद के बाहर कांग्रेस का साथ दे रही हैं, हमारे राज्यों में कांग्रेस हमारी गठबंधन साथी है, राहुल गांधी हमारे नेता प्रतिपक्ष हैं। ऐसे में हम राहुल जी के साथ दगा करने की सोच नहीं सकते। सो, बेहतर होगा आप ऐसी किसी रैली की प्लानिंग 2-3 साल बाद करें, फिलहाल इस रैली के आइडिया को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
रंग चंपई में मुरझाते भगवा चेहरे
कोई चालीस साल तक आदिवासियों के हक की बात कहने वाले चंपई सोरेन भी आखिरकार अब भाजपाई हो गए हैं। हेमंत सोरेन व उनकी झारखंड मुक्ति मोर्चा को शायद चंपई के बेवफा हो जाने से रत्ती भर फर्क नहीं पड़ रहा हो, पर चंपई के नए घर में उनके आने से कोहराम मचा है। भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी चंपई की एंट्री से सबसे ज्यादा परेशान बताए जाते हैं। परेशान तो अर्जुन मुंडा भी हैं, पर उनके लिए राहत की सांसें भी हैं क्योंकि अब तलक वे अकेले ही बाबूलाल के निशाने पर थे। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह अब भी आश्वस्त नज़र आता है कि ‘झारखंड में अगली सरकार भगवा होगी।’
भाजपा ने इस चुनाव को भी एक तरह ‘आदिवासी’ बनाम ‘गैर आदिवासी’ मुद्दों पर केंद्रित कर दिया है। सो, सीएम पद पर अब तक सबसे बड़ा दावा बाबूलाल का ही माना जा रहा था पर अर्जुन मुंडा भी चुपचाप रिंग में उतर आए हैं। मुंडा 2024 का चुनाव खूंटी से हार गए थे, बावजूद इसके वे इस बार का विधानसभा चुनाव भी लड़ना चाहते हैं। अब चंपई सोरेन के भाजपा ज्वॉइन कर लेने के बाद मरांडी करीबियों को लग रहा है कि उनकी छोटी सी पार्टी ही ठीक थी, कम से कम हमेशा पूछ तो बनी रहती थी, दिल्ली परिक्रमा का चक्कर नहीं था।
स्टालिन क्यों नहीं कर पा रहे अपने उत्तराधिकारी का ऐलान?
विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने अपने परिवार के 6 सदस्यों की एक अहम बैठक बुलाई, कहते हैं इस बैठक में स्टालिन ने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए सरकार में मंत्री अपने बेटे उदयानिधि स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने की इच्छा जताई। इस पर परिवार के बाकी सदस्यों की राय थी कि अभी उनका यह कदम उठाना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि उनके इस घोषणा से उनके भाई अझागिरी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है और वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, इससे पार्टी का काफी नुकसान हो सकता है। स्टालिन ने इस विचार पर मंथन के लिए थोड़ा वक्त मांगा है।
मोदी-शाह के लिए नरम पड़ते अखिलेश
पिछले कुछ समय से सपा के सोशल मीडिया के निशाने पर सीधे पीएम मोदी व शाह आ गए हैं। खटाखट तीर छोड़े जा रहे हैं, तीखे निशाने साधे जा रहे हैं। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव इस बात से किंचित परेशान नज़र आए, पिछले सप्ताह उन्होंने सपा के सोशल मीडिया कॉऑर्डिनेशन कमेटी की एक अहम बैठक आहूत की। अखिलेश ने अपनी टीम को समझाना चाहा कि ‘सीधे शीर्ष के दोनों व्यक्तियों को टारगेट करने के बजाए उन्हें दिल्ली व यूपी सरकार की गलत नीतियों को निशाने पर लेना चाहिए, ज्यादा से ज्यादा योगी जी पर हमला बोलना चाहिए’। इस पर अखिलेश की टीम का कहना था कि ‘पर भाजपा की डिजिटल आर्मी तो सीधे उन्हें यानी अखिलेश को ही निशाने पर लेती है तो फिर वे क्यों उदारता दिखाएं’? इस पर अखिलेश ने अपनी टीम को समझाना चाहा कि ‘यूपी चुनाव में अभी पूरे 2 साल का वक्त बाकी है, हमें पूरा यकीन है प्रदेश में अगली सरकार हमारी ही होगी, ऐसे में दिल्ली को ज्यादा छेड़ना ठीक नहीं रहेगा।’ अखिलेश की सोशल मीडिया टीम ने एक गहरी चुप्पी साध ली, इसके निहितार्थ से सपा सुप्रीमो बखूबी वाकिफ थे।
…और अंत में
गांधी परिवार में काम का बंटवारा अघोषित तौर पर ही हो जाता है। राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका के सियासी खूबियों व महत्वाकांक्षाओं को बखूबी समझते हैं। सो, बिना कहे ही प्रियंका के लिए वे एक रोड मैप तैयार रखते हैं। जैसे इस दफे जम्मू-कश्मीर व हरियाणा में विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हो रहे हैं, तो राहुल ने अपने कोर ग्रुप को संकेत दे दिया है कि ‘वे इस बार जम्मू-कश्मीर में ज्यादा सक्रिय रहेंगे तो प्रियंका हरियाणा के मसलों को हेंडल करेंगी’। ऐसा पहले भी हो चुका है जब प्रियंका ने राजस्थान के साथ हिमाचल में अपनी सक्रियता दिखाई थी, तो राहुल ने छत्तीसगढ़ और कुछ हद तक मध्य प्रदेश पर अपना फोकस रखा था। (एनटीआई)
– त्रिदिब रमण