जन्म और मृत्यु सब भगवान के हाथ में है। यह एक यथार्थ है लेकिन फिर भी विज्ञान प्रयोग करता रहता है। हम जन्म और मृत्यु के मामले में कुछ भी निर्धारित नहीं कर सकते अर्थात इन्हें टाल नहीं सकते परंतु कोशिशें जारी रहती हैं। किसी भी बच्चे को जन्म लेने से रोकने का हमें कोई अधिकार नहीं है और ऐसी कोशिशें होनी भी नहीं चाहिए। आज भी देश में अनेक रूढि़वादी सोच है जिसके तहत बेटी को एक अभिशाप माना जाता है। जन्म लेते ही बेटी को मार देना ऐसी घटनाएं हम सुनते रहे हैं। बेटे की चाहत में हमारे यहां भ्रूण हत्या अर्थात गर्भ में ही बेटी को एबोरशन के माध्यम से मार डालना यह अपराध होते रहे हैं। हालांकि इसके खिलाफ अच्छी मुहिम चली और आज की तारीख में बेटी के जन्म लेते ही जश्न मनाए जाने का एक नया दौर शुरू हो गया है। हम इसका स्वागत करते हैं। अभी दो दिन पहले ही भोपाल के कोलार इलाके में एक गोलगप्पे की रेहड़ी लगाने वाले अंचल गुप्ता नाम के व्यक्ति ने जब उसके यहां बेटी हुई इसका नाम अनोखी रखा। उसके जन्मदिन के मौके पर पूरे शहर में एक लाख गोलगप्पे फ्री बंटवाये गये। उसने कहा बेटी के जन्मदिन का जश्न इससे बढ़िया नहीं हो सकता और मैं यह संदेश देना चाहता हूं कि बेटियां बहुत भाग्यशाली होती हैं और सब इसी तरह बेटियों के जन्मदिन खुशियों के साथ मनाएं। जब पिछले साल उनके यहां बेटी हुई तो उन्होंने पचास हजार गोलगप्पे फ्री बांटे थे।
कुल मिलाकर अगर हम बेटी के होने पर उसकी सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने की दिशा में ऐसे खुशियां मनाते हैं तो बेटियों का भविष्य सचमुच उज्जवल है और हमें इसका सम्मान करना चाहिए। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान यद्यपि मोदी सरकार का है लेकिन लोग ऐसे तरीके से बेटी के जन्म पर जश्न मना रहे हैं तो इसका सम्मान किया जाना चाहिए। आज से दस साल पहले हरियाणा और पंजाब में जब बेटियों के जन्म से पहले ही गर्भ में ही उन्हें मार डालने की खबरें वायरल हुई तो यह रिपोर्ट भी सामने आईं कि लड़के और लड़कियों के बीच में लिंग अनुपात तेजी से बढ़ रहा है। सवाल उठने लगे कि अगर बेटियां ही नहीं रहेंगी और उनको यूं ही मारा जाता रहेगा तो फिर बहू कहां से लाओगे? अनेक उदाहरण पंजाब और हरियाणा और दिल्ली से सामने आये कि जब बेटियों के होने पर जश्न मनाये जाने लगे। मुझे याद है जब अश्विनी जी करनाल से सांसद थे तो मुझे कई बेटियों-बहनों और माताओं ने एक ही गुहार लगाई कि श्री अश्विनी कुमार जी के एमपी बनने पर आप एक काम करवाना कि हमें खुले में शौच न जाना पड़े। मैंने और श्री अश्विनी जी ने उनसे यह वादा किया था कि हम इसे जीत के बाद निभायेंगे। प्रधानमंत्री श्री मोदी का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान जब शुरू हुआ तो उससे पहले बेटियों के सम्मान में हमने उन्हें खुले में शौच से मुक्ति का अभियान शुरू कर दिया था। हालांकि खुशी इस बात की है कि बेटियों ने अपने दमखम, अपनी मेहनत और अपने शौर्य के दम पर देश और दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है।
सड़क से लेकर संसद तक, जमीन से लेकर आसमान तक, दुकान से लेकर कारपोरेट तक, साइकिल से लेकर ट्रेन, मैट्रो, लड़ाकू विमान तक देश की बेटियां उड़ा रही हैं। सेना में बार्डर पर बेटियां ड्यूटी निभा रही हैं। जीवन के हर क्षेत्र में बेटियां देश की शान बन चुकी हैं। माउंट ऐवरेस्ट तक अपने कदम पहुंचा चुकी हैं। कुल मिलाकर बेटियों की सुरक्षा भी हमारा एक सामाजिक ही नहीं राजनीतिक कर्तव्य भी है। बेटियों की सुरक्षा को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा में आता है कि उनके साथ रेप और यौन शोषण से जुड़े डेढ़ करोड़ मामले अदालतों में पेंडिंग हैं तथा इसका समाधान अर्थात निष्पादन होना चाहिए। यद्यपि सरकार बहुत कुछ कर रही है परंतु फिर भी बेटियों की सुरक्षा हम सबकी सामाजिक जिम्मेवारी है।
भारत की संस्कृति में बेटों को महत्व दिया जाता है। सत्ययुग, द्वापर और त्रेताकाल से लेकर कलयुग तक बेटों का गुणगान किया जाता है लेकिन देश की बेटियों ने जो उदाहरण आज स्थापित किये हैं वह सब आज की तारीख में भारत की संस्कृति बन चुका है। हमारी बेटियां तिरंगे की आन-बान-शान की तरह देश की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन चुकी हैं। बेटियां देश की एक बड़ी उपलब्धि है। हम बेटियों के सम्मान में और उनकी सुरक्षा में जो कुछ कर रहे हैं वह कम है। मध्यप्रदेश के भोपाल में पिता अंचल गुप्ता ने जो किया वह उदाहरण है और इसे प्रेरणा के तौर पर स्वीकार करना चाहिए। हमें देश की बेटियों पर नाज था, है और रहेगा।