विश्व के प्रतिष्ठित विंबलडन टेनिस टूर्नामेंट में इस बार बहुत बड़ा उल्टफेर हुआ जिसने खेल प्रेमियों को चौंका दिया है। चैक गणराज्य की 24 वर्षीय खिलाड़ी मार्केटा वोंद्रोसोवा ने महिला एकल के फाइनल में पिछले साल की उपविजेता और छठी वरीयता ओन्स जावेउर को हराकर टूर्नामेंट का खिताब अपने नाम कर लिया। सबसे बड़ी बात यह है कि मार्केटा सबसे कम रैंकिंग और गैर वरीयता प्राप्त खिलाड़ी है। बाएं हाथ से खेलने वाली मार्केटा की विश्व रैंकिंग 42 है और वह पिछले 60 वर्षों में विंबलडन फाइनल में खेलने वाली पहली गैर वरीयता प्राप्त खिलाड़ी बन गई है।
टूर्नामेंट शुरू होने से पहले यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि वोंद्रोसोवा चैंपियन बनेगी। वर्तमान टूर्नामेंट से पहले विंबलडन में उनका रिकॉर्ड 1-4 था लेकिन इस बार उन्होंने लगातार सात मैच जीतकर खिताब अपने नाम किया। वह चोटिल होने के कारण पिछले साल विंबलडन में भाग नहीं ले पाई थी। वोंद्रोसोवा चोटिल होने के कारण पिछले साल अप्रैल से अक्तूबर तक बाहर रही थी और 2022 के आखिर में उनकी विश्व रैंकिंग 99 पहुंच गई थी।
खास बात यह है कि वोंद्रोसोवा 9 माह पहले ही मां बनी। मां बनने के 9 महीने बाद पूरी ऊर्जा से खेलने के लिए उसने कड़ी मेहनत की। पिछले साल उसने कलाई की सर्जरी कराई थी और वह टूर्नामेंटों में भाग नहीं ले सकी। उसने टेनिस के प्रति अपने जुनून को कायम रखा। वह चैक गणराज्य में जन्मी चौथी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ग्रैंड स्लैम अवार्ड जीता है। पेशेवर युग में इससे पहले मार्टिना नवरातिलोवा, जाना नवोत्ना और पेत्रा ऐसा कर चुकी हैं। विंबलडन में इस बार यूक्रेन की एलिना स्वितोलीना भी सेमीफाइनल में पहुंची थी और वह भी 9 महीने पहले ही मां बनी थीं। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते उसने युद्ध के साये में बिना रुके टेनिस की प्रैक्टिस की। वास्तव में जंग ने उसे और भी मानसिक रूप से मजबूत बना दिया। उसका सेमीफाइनल तक पहुंचना भी अपने आप में उपलब्धि है। एलिना को नन्हीं बिटिया भी प्रेरित करती रही। इस तरह विंबलडन टूर्नामेंट में महिलाओं ने यह दिखा दिया कि अगर उनमें जज्बा हो तो वे कुछ भी कर सकती हैं।
चैम्पियन बनी मार्केटा के जीवन का सफर आसान नहीं रहा। उनके पिता ने उन्हें महज 4 साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू करवाया था। इतना ही नहीं बल्कि उनकी मां वाॅलीबाल की खिलाड़ी रह चुकी हैं। मार्केटा महज तीन साल की थी तो उसके माता-पिता का तलाक हो गया था लेकिन दोनों ने उसे टेनिस खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। 15 साल की उम्र में मार्केटा ने घर छोड़ कर प्राग पहुंच कर रैग्यूलर बेस पर ट्रेनिंग की और उसने अमेरिका में हुए नाइक जूनियर इंटरनैशनल मास्टर्स का खिताब जीता। 2014 में उसने चैक गणराज्य में अन्तर्राष्ट्रीय टेनिस फैडरेशन सर्किट में खेलना शुरू किया आैर अगले ही साल 2 आईटीएफ एकल और 3 युगल खिताब जीते। वह 2017 में पहली बार फ्रैंचओपन, यूएस ओपन और विंबलडन में खेली। 2019 में उसने फ्रैंच ओपन के फाइनल में जगह बनाई थी लेकिन वह हार गई थी। मां बनकर जीत हासिल करना भारतीयों के लिए नया नहीं है।
तीन बच्चों की मां मैरीकॉम ने मुक्केबाजी में शीर्ष मुकाम हासिल किया हुआ है। किसी भी महिला खिलाड़ी का निर्भीक और साहसी होना बहुत जरूरी है। मैरीकॉम का बचपन भी काफी संघर्ष में ही रहा है। वह जिस मुकाम पर पहुंची हैं उसके पीछे हर मिनट की मेहनत, समर्पण और त्याग है। 18 साल की उम्र में उन्होंने अपने बॉक्सिंग करियर की शुरूआत कर दी थी। अब वो भारत की शान हैं। उन्होंने 6 बार बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती और 8 बार भारत के लिए मेडल लेकर आई। 2012 में ओलम्पिक ब्रॉन्ज़ जीत कर बॉक्सिंग में मेडल लाने वाली वो पहली भारतीय महिला बॉक्सर बनीं। सिर्फ वर्ल्ड चैंपियनशिप नहीं, उन्होंने 5 बार एशियन चैंपियनशिप जीती और 1 बार एशियन इंडोर गेम्स की विजेता भी बनीं। एशियाई खेलों में और कॉमनवैल्थ में उनके जिताए गोल्ड मेडल्स को कौन भूल सकता है। पद्मभूषण, पद्मविभूषण और पद्मश्री से सम्मानित मेरीकॉम का सपना अपने आखिरी ओलंपिक्स में गोल्ड लाने का था। भले ही ऐसा न हो पाया लेकिन उनका सफ़र इसे कहीं ज्यादा शानदार रहा। तीन बच्चों की मां बनने के बाद भी जिस तरह से रिंग में अपने मुक्कों से विरोधी को हराती रही वो समाज को हमेशा प्रेरित करेगा। इसी तरह विंबलडन में मार्केटा वोंद्रोसोवा की जीत दुनियाभर की युवा खिलाड़ियों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा बनेगी। खेल प्रेमियों को विंबलडन का यह उल्टफेर हमेशा याद रहेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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