गेहूं-चावल के दाम थमेंगे? - Punjab Kesari
Girl in a jacket

गेहूं-चावल के दाम थमेंगे?

देश में प्रमुख खाद्यान्न गेहूं व चावल की लगातार बढ़ती कीमतों को देखते हुए केन्द्र सरकार के उपभोक्ता

देश में प्रमुख खाद्यान्न गेहूं व चावल की लगातार बढ़ती कीमतों को देखते हुए केन्द्र सरकार के उपभोक्ता मन्त्रालय ने भारतीय खाद्य निगम की मार्फत 50 लाख मीट्रिक टन गेहूं व 25 लाख मीट्रिक टन चावल खुले बाजार में ई-नीलामी की मार्फत बेचने का फैसला किया है। मगर इसमें भी यह निर्णय किया गया है कि दोनों ही अनाज की आधारभूत नीलामी कीमत में 200 रुपए प्रति क्विंटल की कमी कर दी जायेगी जिससे थोक व्यापारी इनका उठान कर सकें। पिछले जून महीने में भी सरकार ने गेहूं व चावल नीलामी की मार्फत बेचा था मगर इन्हें खरीदने में व्यापारी ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आये थे। इस बार आधार नीलामी बोली गेहूं के लिए 2900 रुपए क्विंटल व चावल के लिए 3100 रुपए क्विंटल होगी जो जून महीने की बोलियों से 200 रुपए कम होगी। पिछली 28 जून से 9 अगस्त के बीच इन अनाजों की सात बार नीलामी की गई थी मगर केवल 8.2 लाख मीट्रिक टन गेहूं व 1995 मीट्रिक टन चावल ही बिक पाया था और बाजार में खुदरा भावों में कोई अन्तर नहीं आ पाया था और इनमें वृद्धि जारी रही थी। अगर हम तुलना करें तो खुदरा बाजार में पिछले वर्ष की तुलना में दोनों ही अनाज के मूल्य में 13 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। 
वास्तव में महंगाई हमारे देश में भी एक समस्या बनी हुई है। खास कर खाने-पीने की वस्तुओं के दामों में तेजी से बढोत्तरी हो रही है जिससे आम आदमी का जीवन दूभर होता जा रहा है। सब्जियों के दामों में बेतहाशा वृद्धि बताती है कि सामान्य व्यक्ति अपनी सीमित आय में अपने घर का खर्चा चलाने में काफी दुश्वारी महसूस कर रहा है। इसके साथ ही उसके बाल-बच्चों की पढ़ाई भी नये शिक्षा सत्र के साथ ही और भी महंगी हो गई है। यहां तक कि बच्चों की कापी-किताबों की कीमतें भी बहुत बढ़ चुकी हैं। मगर सबसे दुखद यह है कि आम आदमी का पेट भरने वाले आटा-चावल व दालें भी महंगे दामों पर बिक रहे हैं। यदि औसत लगाया जाये तो आय में वृद्धि न होने की वजह से आम व्यक्ति की सारी कमाई उसके खाने-पीने के सामान पर ही अब डेढ़ गुनी हो चुकी है। सरकार की तरफ से यह कोशिश जरूर की जा रही है कि महंगाई ज्यादा न बढ़ पाये। मगर हम गैर उपभोक्ता सामग्री का उठान भी बाजारों में कम देख रहे हैं जिसकी वजह से औद्योगिक उत्पादन पर भी असर पड़ता है।
 कोरोना काल के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में ठहराव जरूर आया है मगर इसमें उठान आशातीत नहीं रहा जिससे सकल विकास वृद्धि दर पर असर पड़े। फिर भी विश्व व्यापी महंगाई के चक्र को देखते हुए भारत में स्थिति नियन्त्रण में कही जा रही है। उम्मीद लगाई जा रही है कि चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर सन्तोषजनक रहेगी। रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्ति कान्त दास ने तिमाही की मौद्रिक नीति में बैंक ब्याज दरें इसीलिए न बढ़ाने का फैसला किया लगता है कि चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था उठान भर सकती है। परन्तु खाद्यान्न के मोर्चे पर जब बाजार में सप्लाई बढ़ाने के प्रयास सरकार लगातार कर रही हो और उसके बावजूद कीमतें बढ़ रही हों तो चिन्ता करने की जरूरत पड़ती है। 
भारत अब पूरी तरह बाजार मूलक अर्थव्यवस्था का हिस्सा है और इसके नियम के अनुसार माल की सप्लाई बढ़ने पर कीमतेंं नीची आनी चाहिएं। मगर एेसा नहीं हो रहा है। इसकी क्या वजह हो सकती है।  लगता है कि खाद्य सामग्री के क्षेत्र में कोई एेसी मुनाफाखोर लाबी सक्रिय हो गई है जो अपनी जेबें भरने में लगी हुई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है टमाटर जो भारत वर्ष के विभिन्न बाजारों में 200 से लेकर 300 रुपए किलो तक बिक रहा है जबकि सरकार ने बाजार हस्तक्षेप विपणन नीति के तहत इसे सरकारी केन्द्रों से 70 रुपए किलो तक बेचने का फैसला किया। इसके बावजूद टमाटर के भाव नीचे नहीं आ रहे हैं। हालांकि खाद्य तेल की कीमतों में अब कुछ नरमी दिखाई पड़ती है मगर गरीब आदमी का खाने का सरसों का तेल अभी भी उसकी पहुंच से दूर ही समझा जा रहा है। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के अपने हानि-लाभ भी होते हैं। इसमें सब कुछ बाजार की शक्तियों पर ही निर्भर करता है। मगर कृषि को हमने अभी तक बाजार की शक्तियों पर पूरी तरह नहीं छोड़ा है जिसकी वजह से सरकारी गोदाम अनाज से भरे रहते हैं। चावल के मामले में तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और विश्व के बाजारों में इसकी कमी को देखते हुए भी भारत को अपने पुराने निर्यात सौदों की भरपाई करनी होगी। 
हालांकि चावल की कुछ किस्मों के निर्यात पर अब प्रतिबन्ध भी लगा दिया गया है। इसके साथ ही कृषि उत्पादन में काम आने वाले कच्चे माल जैसे बीज-खाद आदि के दामों में भी खासी वृद्धि हुई है जबकि किसानों की पूरी उपज की खरीदारी सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं कर पाती है। जिसकी वजह से अपनी उपज फसल के मौके पर औने-पौने दाम पर बेचने वाला किसान जब स्वयं उपभोक्ता बन कर बाजार में खड़ा होता है तो बढे़ दाम उसका हौसला तोड़ देते हैं।  बाजार मूलक अर्थव्यवस्था का यह नकारात्मक पहलू भी है। फिर भी भारत में महंगाई की दर विश्व महंगाई दर से अपेक्षाकृत नियन्त्रण में बताई जा रही है, लेकिन मुद्रा के मोर्चे पर डालर लगातार महंगा और रुपया सस्ता होता जा रहा है। इसका असर भी हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ता ही है। कुल मिला कर स्थिति कमोबेश दिक्कत तो पैदा करती ही है। सन्तोषजनक यह है रिजर्व बैंक इस तरफ चौकन्ना है और समयानुरूप फैसले ले रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।