पूरा होगा डॉक्टर बनने का सपना? - Punjab Kesari
Girl in a jacket

पूरा होगा डॉक्टर बनने का सपना?

यूक्रेन से जान बचाकर लौटे भारतीय छात्रों को अब अपनी मेडिकल शिक्षा पूरी करने की चिंता सताने लगी

यूक्रेन से जान बचाकर लौटे भारतीय छात्रों को अब अपनी मेडिकल शिक्षा पूरी करने की चिंता सताने लगी है। 18 हजार से अधिक मेडिकल छात्रों का भविष्य अधर में दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि इन मेडिकल छात्रों को भारतीय कालेजों में प्रवेश देने के​ लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। यूक्रेन में फिलहाल स्थिति सामान्य होने की कोई उम्मीद नहीं है। याचिका में आग्रह किया गया है कि इन छात्रों को प्रवेश नियमों में छूट देकर सरकारी और मेडिकल कालेजों में जगह दी जाए। सोमवार को संसद के दोनों सदनों में यह मामला गूंजा और सांसदों ने एक स्वर में सरकार से आग्रह किया​ कि इन छात्रों के भविष्य की सुरक्षा के लिए समग्र नीति बनाई जाए। सांसदों ने यह भी कहा कि बहुत सारे छात्र सामान्य परिवारों से हैं। अनेक छात्रों ने ऋण ले रखा है, इसलिए मेडिकल की पढ़ाई का शुल्क कम किया जाए और नए मेडिकल कालेज खोले जाएं। कांग्रेस, वाईएमआर कांग्रेस, तेलगूदेशम और अन्य दलों के सांसदों ने सरकार से आग्रह किया कि वह छात्रों और सभी हितधारकों से बातचीत कर ठोस कदम उठाएं लेकिन यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्रों का मामला बहुत उलझा हुआ है। इस पर बहुत काम करने की जरूरत है। सरकार ने ‘आपरेशन गंगा’ चलाकर काफी विषम परिस्थितियों में इन छात्रों को यूक्रेन से निकाला है, यह केन्द्र सरकार की बड़ी कूूटनीतिक सफलता है। 
छात्रों के परिजनों का सपना बच्चों को डाक्टर बनाने का रहा है, अब उनके सपने को साकार करने का दायित्व सरकार पर है। युद्ध के बावजूद यूक्रेन के मेडिकल कालेज आनलाइन कक्षाएं चला रहे हैं लेकिन इससे उनका डाक्टर बनना सम्भव नहीं है। इन छात्रों को नियमित शिक्षा की जरूरत है। यह सरकार की सकारात्मक सोच का परिणाम है कि उसने यूक्रेन से लौटे छात्रों से इटर्नशिप फीस नहीं लेने का निर्णय किया है। यह सुविधा उन्हीं छात्रों को होगी जो अंतिम वर्ष के छात्र हैं या वह पढ़ाई पूरी करने वाले हैं। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने लोकसभा में आश्वासन दिया कि सरकार इन छात्रों का सपना पूरा करने के ​लिए हर सम्भव व्यवस्था करेगी। फिलहाल यह समय तो संकट से सुरक्षित लौटे छात्रों को सम्भालने और उन्हें दहशत से बाहर निकालने का है। 
यूक्रेन संकट के चलते देश में मेडिकल शिक्षा के हालातों पर नए सिरे से चिंतन करने की जरूरत आ गई है। देश में वर्तमान में एक हजार लोगों पर एक डाक्टर है जबकि इसका वैश्विक औसत एक हजार पर चार डाक्टर होना चाहिए। इस लिहाज से देखा जाए तो देश में वैश्विक औसत की तुलना में एक चौथाई डाक्टर हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा व्यवस्था का बुरा हाल है। लाख कोशिशों के बावजूद डाक्टर ग्रामीण इलाकों में जाने को तैयार नहीं होते। इससे साफ है कि देश के मेडिकल कालेजों में सीटें बढ़ाने और नए कालेजों को शुरू करने की जरूरत है। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों से योजनाबद्ध तरीके से सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में मेडिकल कालेज खोले गए हैं। सरकार ने देश में ही फीस स्ट्रक्चर में सुधार किया है। सीटें बढ़ाने के विकल्पों पर सुझाव देने के ​लिए सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और नीति आयोग को भी कहा है। सरकारी स्तर पर समस्या के हल की शुरूआत तो हुई है परन्तु  आज तत्कालिक आवश्यकता यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों की ​शिक्षा का है। देश में एमबीबीएस की सीटें कम होने के कारण डाक्टर बनने की चाहत रखने वाले छात्र विदेशों का रुख इसके लिए करते हैं क्योंकि वहां की फीसें कम हैं और वहां नीट जैसी परीक्षा की अनिवार्यता भी नहीं है। अगर यूक्रेन से लौटे छात्रों को नियमों में परिवर्तन कर देश के मेडिकल कालेजों में प्रवेश दिया जाए तो देश में डाक्टरों के अनुपात का स्तर सुधारा जा सकता है लेकिन यह काम जल्द होना चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस​ दिशा में काम करना शुरू कर दिया है और उसने नैशनल मैडिकल कमीशन को नियमों में परिवर्तन करना चाहिए ताकि बाहर से आने वाले छात्रों को प्रवेश मिल सके। भारत में किसी भी मेडिकल कालेज में दाखिले के लिए उसी साल ​नीट की परीक्षा पास करनी होती है, जबकि विदेशों के नियम के मुताबिक मेडिकल कालेज में नीट परीक्षा पास करने के तीन साल के अन्दर कभी भी दाखिला ले सकते हैं। यूक्रेन से ​जितने भी छात्र लौटे हैं उनमें ज्यादातर एमबीबीएस स्टूडेंट्स हैं। हालांकि छात्रों को सरकारी कालेजों में दाखिला मिलना सम्भव नहीं है लेकिन निजी कालेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटी में उन्हें खपाया जा सकता है। यूक्रेन के युद्ध में मारे गए कर्नाटक के भारतीय छात्र नवीन के​ पिता का यह बयान कि देश में महंगी मेडिकल शिक्षा के कारण बच्चे बाहर जाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं और प्राइवेट कालेज में मेडिकल की एक-एक सीट के लिए करोड़ों देने पड़ते हैं। इससे साफ है कि भारतीय मेडिकल कालेजों में एडमिशन लेना कितनी बड़ी चुनौती है। सरकार को मौजूदा प्रणाली की मूलभूत कमजोरियों को दूर करना होगा और इन सब समस्याओं का निराकरण कर छात्रों का डाक्टर बनने का स्वप्न पूरा करना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।