तस्वीरों में ही रह जाएंगे वन्य जीव - Punjab Kesari
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तस्वीरों में ही रह जाएंगे वन्य जीव

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वन्य जीवों का वनों से अटूट रिश्ता है। वन ही उनका घर हैं और वहां का वातावरण ही उनके लिए पारिवारिक परिवेश है। वन की धरती इन जीवों के लिए बिछौना और वृक्षों की छाया उनके लिए चादर है। वन्य जीव हमारे पर्यावरण की शोभा हैं। वन्य प्राणियों के बगैर वन सूने और अपूर्ण हैं। उसी तरह वनों के बिना वन्य प्राणी बेघर हैं। शेरों की दहाड़ वन के सूनेपन को तोड़ जीवंतता का आभास देती है। हाथी की मस्ती भरी चाल, हिरनों का कुलांचे भरना, खरगोश की धवल काया, प​िक्षयों का कलरव, कोयल की मधुर कूक, पपीहे की चाहत हमें एक अलग दुनिया में ले जाती है। हमें एक नैसर्गिक आनन्द की अनुभूति होती है लेकिन मानव ने वन्य जीवों का शिकार इस निर्ममता से किया कि कुछ वन्य प्राणियों की प्रजाति ही लुप्तप्रायः हो गई है और कुछ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वनों को काट-काटकर हमने उनके घर उजाड़ दिए। वन हमें तरह-तरह की सम्पदा देते हैं।

मानव को अब भी इन वनों और वन्य प्राणियों का महत्व स्वीकार नहीं जबकि पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया, मौसम का चक्र परिवर्तित हो चुका है। धरती पर पेयजल की कमी, सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं लगातार आने लगी हैं। वन्य जीवों की सुरक्षा करने आैर पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए पूरी दुनिया चिन्तित है। सभी देश पर्यावरण कानून अाैर नई-नई योजनाएं बनाकर पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। भारत में भी वन्य जीवों के संरक्षण के लिए 13 राज्यों में 18 बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए हैं। हर वर्ष वन्य जीवों के संरक्षण के लिए केन्द्रीय सहायता दी जाती है लेकिन अफसोस! वन्य जीवों को संरक्षण तो क्या दिया जाना था, उलटा उन पर अत्याचार ही हो रहे हैं। आये दिन शेरों के मरने की खबरें आती हैं। हाथी ट्रेनों से कटकर मर जाते हैं, कुछ अन्य को तस्कर मार डालते हैं। हर रोज समाचार पत्रों में खबरें आ रही हैं कि जंगली जीव मानव से टकरा रहे हैं। कभी शहरों में तेंदुआ घुस आता है तो पूरा शहर खौफ में रहता है।

वन्य जीवों और मनुष्य में टकराव से होने वाला नुक्सान भी कम नहीं होता। कभी मनुष्य की मौत होती है तो कभी वन्य जीव की। सवाल यह है कि बाघ, तेंदुआ इत्यादि अभयारण्यों की सीमा पार कर शहरों की तरफ क्यों आ रहे हैं? विकास की दौड़ में इन्सान इतनी तेजी से आगे बढ़ चुका है कि वह भूल गया कि अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए सभी का संतुलन बनाए रखना होगा। बढ़ती आबादी और जंगलों के होते शहरीकरण ने मानव जाति को पतन की ओर धकेल दिया है। इन्सान स्वार्थी बन खुद से इतना प्रेम करने लगा है कि वह उन साधनों के स्रोत को भूल चुका है, जिसके बिना उसका जीवन असम्भव है। मानव जाति का जंगलों में हस्तक्षेप बढ़ गया और वन्य जीव बेघर होते गए। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में जीवों की लगभग 130 लाख प्रजातियों में से लगभग 10 हजार प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। भारत में वन्य जीवों को विलुप्त होने से बचाने के लिए पहला कानून 1872 में ‘वाइल्ड एलीकेंट प्रोटेक्शन एक्ट’ बनाया गया। इसके बाद वर्ष 1927 में भारतीय वन अधिनियम बनाया गया जिसमें वन्य जीवों का शिकार और वनों की अवैध कटाई अपराध माना गया और इसमें सजा का प्रावधान रखा गया। 1956 में एक बार फिर भारतीय वन अधिनियम पारित हुआ।

वन्य जीवों के बिगड़ते हालात में सुधार के लिए राष्ट्रीय वन्य जीव योजना 1983 में शुरू की गई इसलिए नेशनल पार्क और वन्य प्राणी अभयारण्य बनाए गए। देश में सबसे पहला नेशनल पार्क 1905 में असम में बनाया गया था। दूसरा नेशनल पार्क जिम कार्बेट पार्क 1936 में उत्तराखंड में बनाया गया जो लुप्तप्रायः बंगाल टाइगर के लिए बनाया गया। अब तक लगभग 103 नेशनल पार्क और लगभग 530 वन्य जीव अभयारण्य हैं। आज सबसे ज्यादा नेशनल पार्क मध्य प्रदेश में हैं। 1994 से 2010 तक हमने 923 बाघ खो दिए हैं। देश में कभी बाघों की संख्या करीब 40 हजार थी जो अब मुट्ठीभर रह गई है। मानव ने वन्य जीवों के घर पर ऐसा अतिक्रमण किया जो उन्हें सहन नहीं हो रहा। यही कारण है कि वन्य जीव आहार की तलाश में शहरों की ओर दौड़ने लगे हैं।

कभी खेतों की खड़ी फसल बर्बाद कर देते हैं तो कभी इन्सानों पर हमला कर देते हैं। गिर के जंगल के मशहूर शेर भी कम हो रहे हैं। सवाल यह भी है कि राज्य सरकारें क्या कर रही हैं? कोई योजना काम नहीं कर रही। राष्ट्रीय वन्य उद्यानों में भी जानवरों की रक्षा नहीं बल्कि उन पर अत्याचार होते हैं। प्रबन्धन में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो शेर-हाथी केवल किताबों में ही रह जाएंगे आैर हम अपने बच्चों को जानकारी देंगे कि कभी भारत में ऐसे शेर हुआ करते थे, हाथी इतना बड़ा होता था। बेहतर होगा कि वन्य जीवों को बचाने के लिए वन्य अभयारण्यों की सीमाओं का विस्तार किया जाए और हादसों को रोकने के लिए उन क्षेत्रों में ट्रेनों की गति इतनी धीमी की जाए कि किसी जानवर की मौत न हो। विस्तृत वन क्षेत्र होंगे तो वन्य प्राणी उसमें स्वछंदतापूर्वक निवास कर सकेंगे। इस दिशा में गम्भीरता से कार्य करने की जरूरत है।

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