जत्थेदार अकाल तख्त की दोहरी मानसिकता क्यों? - Punjab Kesari
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जत्थेदार अकाल तख्त की दोहरी मानसिकता क्यों?

सिख कौम में तख्तों के जत्थेदारों को विशेष स्थान दिया गया है मगर वहीं …

सिख कौम में तख्तों के जत्थेदारों को विशेष स्थान दिया गया है मगर वहीं श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की भूमिका सबसे अहम रहती है क्योंकि यह सबसे बड़ा तख्त माना जाता है और यहीं से समूची सिख कौम को मार्ग दर्शन मिलता आया है। मगर राजनीतिक लोगों के हस्तक्षेप के चलते श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। जत्थेदार किसी एक दल या जत्थेबंदी का नहीं बल्कि समूची कौम का होता है जिसके चलते उनके द्वारा जो भी निर्देश दिये जाते हैं उसकी पालना करना हर सिख का धर्म बन जाता है, पर अगर जत्थेदार कौम को दरकिनार कर केवल एक परिवार, दल को ध्यान में रखकर आदेश देने लगे तो निश्चित तौर पर कौम में कई तरह की दुविधाएं पैदा होना स्वभाविक है। बीते दिनों श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी रघुबीर सिंह के द्वारा सिंह साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह एवं अन्य जत्थेदार साहिबान के साथ मिलकर पंथक फैसले लिए गए उसे देखकर ऐसा महसूस होने लगा था कि लम्बे अरसे बाद फिर से कोई ऐसा जत्थेदार कौम को मिला है जो किसी भी दबाव या निजी स्वार्थों से दूर हटकर कौम की चढ़दीकला की सोच रखता है जो शायद सिख कौम का भ्रम था। जत्थेदार रघुबीर सिंह भी पहले के जत्थेदारों की भान्ति ही कहीं ना कहीं बादल परिवार के दबाव में ही घिरे दिख रहे हैं तभी तो अकाली दल बादल के नुमाईंदों द्वारा श्री अकाल तख्त साहिब के आदेश को दरकिनार कर भर्ती अभियान की शुरुआत की गई जबकि श्री अकाल साहिब से 7 सदस्यी कमेटी को भर्ती करने को कहा गया था। अफसोस इस बात का है कि जत्थेदार अकाल तख्त साहिब को इस पर कोई सख्त एक्शन बादल दल के खिलाफ लेना चाहिए था, पर उन्होंने तो उल्टा इसकी प्रशंसा कर समूचे सिख जगत को सोचने पर मजबूर कर दिया। वैसे देखा जाए तो जिस मीटिंग में सुखबीर सिंह बादल और अन्य अकालियों के खिलाफ कार्यवाही की गई थी उसमें भी ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा ही सख्त रुख अपनाया गया था, ज्ञानी रघुबीर सिंह तो उस समय भी मूकदर्शन बने रहे थे। इन्हीें कारणों के चलते आम सिख में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों के प्रति सम्मान कम होता चला जा रहा है मगर कौम की बेहतरी और युवा वर्ग को सिखी से जोड़े रखने के लिए इसे बहाल रखना जरूरी है।

कनाडा में अापराधिक गतिविधियों में शामिल पंजाबियों के कारण समूचा देश शर्मशार आमतौर पर देखा जाता है कि लोग अपना देश छोड़कर विदेशों में जा बसे और वहां जाकर वे ऐसी ऊंचाईयों पर पहुंचे जिससे पूरे देश को गर्व हुआ मगर पिछले कुछ समय से कैनेडा की धरती पर पंजाब से पहुंचे पंजाबियों द्वारा जिस तरह के कारनामे किए जा रहे हैं उससे पंजाब ही नहीं समूचा देश शर्मशार होता है। पंजाब से भोले-भाले सिख युवक-युवतियों को लालच देकर कनाडा बुला लिया जाता है और फिर युवकों से ड्रग्स तस्करी करवाई जाती है व लड़कियों को सेक्स रेकेट तक में धकेल दिया जाता है। जब हमारे युवा वहां पहुंच जाते हैं तो उनके पास ऐसे लोगों की बात मानने के सिवाए कोई चारा नहीं रह जाता क्योंकि वह अपने माता-पिता की सारी जमा पूंजी लगाकर विदेशी धरती पर कदम रखते हैं इनमें से कई लोगों के परिवार अपने बच्चों को बाहर भेजने के लिए भारी कर्ज तक लेते हैं। हाल ही में एक कनाडाई ट्रक ड्राइवर, अमरजीत सिंह मठारू, को एरिज़ोना में 250 किलोग्राम कोकीन ले जाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जिसकी अनुमानित कीमत 32 मिलियन डॉलर (276.7 करोड़) है। पुलिस ने ड्रग्स को उनके ट्रक में छिपा हुआ पाया जो कैलिफ़ोर्निया से कनाडा की ओर जा रहा था। यह कोई पहला मामला नहीं है निंरतर इस तरह के मामले देखने को मिलते हैं। इससे पहले अक्तूबर 2024 में, 29 वर्षीय सुखजिंदर सिंह जो पील क्षेत्र का निवासी है, को सेंट क्लेयर काउंटी शेरिफ़ कार्यालय द्वारा गिरफ्तार किया गया, जब पुलिस ने पोर्ट ह्यूरोन में एक ट्रैफ़िक स्टॉप के दौरान उनके सेमी-ट्रैक्टर ट्रेलर से 370 पाउंड कोकीन जब्त की।

अगर देखा जाए तो गुरु का सिख नशे के पास कभी नहीं जाता क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह जी ने ऐसे खालसा पंथ की स्थापना की जिसने नशे जैसी सामाजिक बुराई का डट कर विरोध किया व हमेशा मानवता के भले के लिए काम किया है। गुरु साहिब के पास जो घोड़ा हुआ करता है वह भी उस धरती पर जाने से रुक गया जहां तंबाकू की खेती हुई थी। मगर इस तरह के मामले सामने आने से समूचा सिख जगत बदनाम होता है। सिख बुद्धिजीवी हरजीत सिंह का मानना है कि पंजाब के लोगों को अब गंभीरतापूर्वक इस पर विचार करना होगा तथा अपने बच्चों को बाहर भेजने से गुरेज़ करना होगा। इससे जहां उनका परिवार और समाज बदनामी के दाग से बचेगा वहीं पंजाबियों के बाहर जाने से आपराधिक प्रवृति के उन लोगों पर भी नकेल डाली जा सकेगी जो पंजाबियों के बाहर जाने का फायदा उठाकर दूसरे राज्यों से पंजाब में आकर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं जिससे बदनामी पंजाब की होती है। इसलिए अगर इस दोहरी मार से बचना है तो पंजाबियों को अपनी सोच में बदलाव करना होगा।

रवनीत बिट्टू द्वारा सिख मसलों का समाधान

रवनीत सिंह बिट्टू जिनका पारिवारिक रिश्ता कांग्रेस से रहा। उनके दादाजी जो कि काले दौर के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री रहे, मगर उस समय कुछ ऐसी परिस्थितियां बन गई जिसमें उनकी हत्या तक कर दी गई। आज भी पंजाब के लोगों के दिलों में उनके प्रति कहीं ना कहीं नाराजगी देखी जा सकती है। रवनीत सिंह बिट्टू ने कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थामा और भाजपा ने उन्हें लुधियाना से चुनाव भी लड़वाया मगर वह हार गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी काबलियत को देखते हुए उन्हें केन्द्रीय राज्यमंत्री बनाया और आज देखते ही देखते रवनीत बिट्टू अपनी कार्यशैली और सिख मसलों के प्रति गंभीरता दिखाते हुए सिखों के दिलों में स्थान बनाने लगे हैं। तख्त पटना साहिब के अध्यक्ष से उनकी निकटता के चलते बीते दिनों तख्त पटना साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी के प्रकाश पर्व मनाने हेतु पंजाब से आने वाली संगत को उस समय निराशा हुई जब रेल विभाग ने श्री अकाल तख्त ट्रेन को प्रकाश पर्व से दो दिन पहले रद्द कर दिया। मगर रवनीत सिंह बिट्टू ने तुरन्त संज्ञान लेते हुए इसे बहाल करवाया जिसके चलते हजारों की गिनती में संगत तख्त साहिब नतमस्तक होकर प्रकाश पर्व में शामिल हुई। हाल ही में तख्त हजूर साहिब के सलाहकार जसवंत सिंह बोबी की रवनीत सिंह बिट्टू से मुलाकात हुई जिसके बाद शहीद उदम सिंह नगर, उत्तराखण्ड को भी नांदेड़ से रेलमार्ग के रास्ते जोड़ने पर विचार हुआ क्योंकि यहां भी बड़ी गिनती सिख समुदाय की है जो तख्त हजूर साहिब के दर्शन के इच्छुक हैं मगर सीधी रेल सेवा ना होने के चलते दिक्कत पेश आती है। इससे पहले भी तख्त हजूर साहिब नांदेड़ से स्पैशल ट्रेन उन्होंने अपनी निगरानी में पांच तख्त साहिब के भेजकर सिख संगत को दर्शन करवाए।

वृद्ध लोगों की संस्था सीनियर सेवा सदन

बचपन में पढ़ाई और फिर सारी उम्र परिवार के पालन-पोषण हेतु कामकाज में इन्सान का सारा जीवन बीत जाता है और जब वह 60 पार करता है तो सरकार भी उन्हें रिटायर कर देती है जिसके बाद ज्यादातर वृद्ध इस उम्र में आकर केवल बच्चों की सेवा में लग जाते हैं अपने बारे में या समाजिक कार्यों में शामिल होना उन्हें कभी भी नसीब नहीं होता। मगर सीनियर सेवा सदन जैसी कुछ संस्थाएं कार्यरत हैं जो इन वृद्धा को अकेलेपन का अहसास ही नहीं होने देते। सीनियर सेवा सदन के मुखिया बलजीत सिंह मारवाह, चरनजीत सिंह सलूजा के अनुसार साल में 3 से 4 बार देश के अलग- अलग राज्यों में ले जाया जाता है जहां वृद्ध लोगों का भरपूर मनोरंजन भी किया जाता है। इसके साथ ही हर दिन त्यौहार भी संस्था के सभी लोग मिलकर मनाते हैं। हाल ही में संस्था के द्वारा केरला का ट्रिप करवाया गया जिसका मुझे भी हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और देखा कि किस प्रकार सभी मिलकर एक दूसरे को अपना परिवार समझकर रह रहे हैं, 80 साल के वृद्ध भी गाने गाते, डांस करते दिखाई दिये।

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