वक्फ बोर्ड संशोधनों पर इतनी हाय-तौबा क्यों? - Punjab Kesari
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वक्फ बोर्ड संशोधनों पर इतनी हाय-तौबा क्यों?

जिस प्रकार से वक्फ बोर्ड के संशोधनों पर विपक्षियों ने हाय-तौबा मचा रखी…

जिस प्रकार से वक्फ बोर्ड के संशोधनों पर विपक्षियों ने हाय-तौबा मचा रखी है उससे साफ जाहिर है कि इन स्वयंभू सेक्युलरवादी नेताओं ने मुस्लिमों के लिए धरातल पर तो कुछ किया नहीं है, हां झूठी प्रशंसा बटोरने के लिए कहीं भी तूफ़ान खड़ा कर देते हैं, जैसे संसद में और जगदंबिका पॉल अध्यक्ष, वक्फ जेपीसी के साथ हुआ। वक्फ के संबंध में वास्तव में मुस्लिम समाज एक बात नहीं समझ पा रहा कि इस में संशोधनों की आवश्यकता इसलिए है कि इसमें हो रही धांधली, बेईमानी और जालसाजी की मुस्लिमों ने ही शिकायतें करी हैं। ख़ुद उन्हीं मुस्लिम नेताओं ने लंबी-चौड़ी वक्फ संपत्तियां दबा रखी हैं जो संसद के अंदर और बाहर मुस्लिमों के अधिकारों के लिए ढिंढोरा पीटते हैं।

भारतीय मुसलमानों द्वारा सदियों से दान की गई करोड़ों डॉलर की संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले दशकों पुराने कानून में संशोधन के प्रस्ताव से देश में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया है। इन संपत्तियों में मस्जिदें, मदरसे, मकतब, यतीम खाने, कब्रिस्तान, दरगाहें, आश्रय गृह और हजारों एकड़ जमीन शामिल हैं, जिन्हें वक्फ कहा जाता है और इनका प्रबंधन एक बोर्ड द्वारा किया जाता है और सरकार यही चाहती है कि इस अथाह संपत्ति को सही से अर्जित कर बेवाओं, तलाकशुदा महिलाओं, बेरोजगारों और निर्धन बच्चों की मेडिकल, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर आदि शिक्षा पर लगाया जाए। उसकी नियत में कोई खोट नहीं है कि स्वयं इसे हड़प ले जैसे ओवैसी और अन्य सरकार विरोधी तत्व कह रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो कि मुस्लिमों के बारे में कहते हैं कि वे उनकी संतान की भांति हैं और वे उनके साथ बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं, उनकी सरकार का कहना है कि इन संपत्तियों के प्रबंधन में भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने तथा मुस्लिम समुदाय की सुधार संबंधी मांगों को पूरा करने के लिए प्रस्तावित परिवर्तन आवश्यक है लेकिन कई मुस्लिम समूहों और विपक्षी दलों ने इन बदलावों को राजनीति से प्रेरित बताया है और कहा है कि यह मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर करने का प्रयास है।

अब ये संपत्तियां वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत शासित हैं, जिसके तहत राज्य स्तरीय बोर्ड के गठन का प्रावधान है। इन बोर्डों में राज्य सरकार के नामित व्यक्ति, मुस्लिम विधायक, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधक शामिल होते हैं।

सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड भारत के सबसे बड़े भूमिधारकों में से है। पूरे भारत में कम से कम 872,351 वक्फ संपत्तियां हैं जो 940,000 एकड़ से ज़्यादा में फैली हुई हैं, जिनकी अनुमानित कीमत 1.2 ट्रिलियन रुपए (14.22 बिलियन, रु. 11.26 बिलियन) है। इसमें सुधार की आवश्यकता है? मुस्लिम समूह इस बात पर सहमत हैं कि वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार एक गंभीर मुद्दा है -इसके सदस्यों पर कई बार अतिक्रमणकारियों के साथ मिलकर वक्फ की जमीन बेचने का आरोप लगाया गया है लेकिन आलोचकों का यह भी कहना है कि इनमें से बड़ी संख्या में संपत्तियों पर व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारी निकायों द्वारा अतिक्रमण किया गया है – जिस पर भी तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

भारत में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आंकलन करने के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति सच्चर समिति द्वारा 2006 में प्रस्तुत रिपोर्ट में वक्फ सुधार की सिफारिश की गई थी, क्योंकि इसमें पाया गया था कि वक्फ बोर्डों से प्राप्त राजस्व, उनके द्वारा प्रबंधित संपत्तियों की विशाल संख्या की तुलना में कम था।

समिति ने अनुमान लगाया कि भूमि के कुशल उपयोग से लगभग 120 बिलियन रुपए (1.4 बिलियन 1.1 बिलियन) का वार्षिक राजस्व उत्पन्न होने की संभावना है। कुछ अनुमानों के अनुसार, वर्तमान वार्षिक राजस्व लगभग 2 बिलियन रुपए है। समिति ने यह भी कहा कि ‘‘राज्य द्वारा अतिक्रमण, जो वक्फ हितों का संरक्षक है, आम बात है’’ और सरकारी अधिकारियों द्वारा वक्फ भूमि पर ऐसे ‘अनधिकृत कब्जे’ के सैकड़ों उदाहरण सूचीबद्ध किए।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 58,889 वक्फ संपत्तियों पर वर्तमान में अतिक्रमण है, जबकि 13,000 से अधिक पर मुकदमे चल रहे हैं। 435,000 से अधिक कार्य संपत्तियों की स्थिति अज्ञात बनी हुई है। सरकार का कहना है कि ये संशोधन इन मुद्दों को संबोधित करते हैं तथा सच्चर समिति द्वारा की गई सिफारिशों को आगे बढ़ाते हैं। अतः मुसलमानों को धैर्य से काम लेना होगा।

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