बार-बार भगदड़ क्यों ?
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बार-बार भगदड़ क्यों ?

सुरक्षा यदि आदत और कार्य संस्कृति संस्कार बन जाए तो अतीत की हर भूल से सबक लिया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा होता नजर नहीं आ रहा। अभी हाथरस में तथाकथित बाबा के सत्संग में मची भगदड़ के दौरान 123 मौतों का हाहाकार अभी शांत नहीं हुआ था कि ओडिशा के पुरी में विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ रथयात्रा में मची भगदड़ में एक श्रद्धालु की मौत हो गई और 400 से ज्यादा लोग घायल हो गए। जगन्नाथ यात्रा में 10 लाख से ज्यादा लोग उमड़ आये थे। क्या पुरी में भी वहीं हुआ जो हाथरस के सत्संग में हुआ था ? भगदड़ में जिस श्रद्धालु की मौत हुई है उसका दम घुट गया था। रथ यात्रा के दौरान सफोकेशन जैसी स्थिति बन गई ​थी। हाथरस में बाबा की चरण रज लेने की होड़ थी तो भगवान जगन्नाथ की यात्रा के दौरान रथ खींचने वाली रस्सी को छू लेने की होड़ थी। गर्मी के चलते लोग बाहर निकलने को भागने लगे। तो भगदड़ मच गई। ओडिशा के पुरी में कल जगन्नाथ रथयात्रा शुरू हुई। 53 साल बाद रथयात्रा 2 दिन की है। रथ यात्रा (गुंडिचा यात्रा) में पहाड़ी अनुष्ठान के बाद भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की विशाल मूर्तियों को 3 विशाल रथों पर रखा जाता है। लाखों श्रद्धालु पुरी शहर के बड़ा डांडा (ग्रैंड रोड) पर जुटते हैं और करीब 3 किलोमीटर तक रथ को खींचते हैं। मूर्तियों को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है, जिसे देवताओं का जन्म स्थान माना जाता है, जहां वे बहुदा यात्रा (वापसी रथ उत्सव) तक रहते हैं।

भगवान बलभद्र का रथ यात्रा की अगुवाई करता है, जबकि भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा के रथ पीछे चलते हैं। रथ को खींचने से पहले पुरी राजघराने के वंशज विशेष अनुष्ठान करते हैं, जिसे छेरा पन्हारा कहते हैं। इसमें वे सोने की झाड़ू से रथों के फर्श की सफाई करते हैं। आषाढ़ शुक्ल की द्वितीय से दशमी तक भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के यहां रहते हैं। दशमी के दिन 16 जुलाई को तीनों रथ पुरी के मुख्य मंदिर में वापस आ जाएंगे और वापसी की यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

इस वार्षिक उत्सव को देखने हर साल भीड़ बढ़ती ही जा रही है। सवाल उठता है कि इस तरह के धार्मिक आयोजनों में ही क्यों भगदड़ मचती है। दरअसल लोगों के आने की संख्या तय नहीं होती जिस कारण भीड़ का प्रबंधन बेहद मुश्किल हो जाता है। भीड़ भरे स्थलों को संभालने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। जब भी ऐसे हादसे होते हैं तब उन्हें स्थानीय प्रवृत्ति का मान ​लिया जाता है। आने वाले दिनों में उत्सव सीजन शुरू हो जाएगा। कांवड़ यात्रा भी शुरू होने वाली है। अगले वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने वाला है। श्रावणी मेलों में भीड़ भी जुटने वाली है। ऐसे में क्या हम श्रद्धालुओं की मौतों का इंतजार करेंगे या कोई व्यवस्था कायम होगी। इस प्रकार के आयोजनों को लेकर प्रबंधन के प्रति बहुत संजीदगी की जरूरत है। धार्मिक ही क्यों विश्व कप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम के स्वागत में मुंबई में मरीन ड्राइव पर उमड़े जनसैलाब के बीच भी कुछ लोग बेहोश हो गए थे। बड़ी संख्या में विनाशकारी घटनाएं मानव निर्मित होती हैं।

जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी के प्रोफैसर क्लाउडियो फेलिचियानी और ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के डॉ. मिलाद हागानी के शोध के मुताबिक भगदड़ के दौरान ज्यादातर लोग दम घुटने से मरते हैं। जब भीड़ एक-दूसरे के ऊपर चढ़ती है तो उसकी शक्ति बहुत अधिक होती है। इतनी ताकत से जब किसी का शरीर भिंचता है तो सांस लेना असंभव हो जाता है। गिरकर मरने से ज्यादा लोग खड़े-खड़े मरते हैं। जो लोग नीचे गिरकर मरते हैं वे भी दरअसल सांस घुटने से मरते हैं क्योंकि उनके ऊपर गिरे या भागते लोग उनका दम घोट देते हैं। ऐसे में सुरक्षा उपायों को मजबूत करने के लिए ऐसा डेटाबेस होना और उसका विश्लेषण करना जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके।

2013 में घटित केदारनाथ में प्राकृतिक आपदा में कई हजार लोग दफन हो गए थे। इसके बावजूद चारधाम की यात्रा में हर साल यात्रियों की संख्या बढ़ रही है। श्रद्धालु दर्शन, पूजा और भक्ति से यह अर्थ निकालने में लगे हैं कि इनको सम्पन्न करने से लोक-परलोक सुधर जाएगा। पुनर्जन्म हुआ भी तो वह समृद्ध और वैभवशाली होगा। युवा वर्ग तो धार्मिक स्थलों को केवल पर्यटन स्थल के रूप में ही देखने लगा है। इसलिए इस बात की उम्मीद कम है कि भीड़ कम हो जाएगी। बेहतर यही होगा कि केन्द्र और राज्य सरकारें धार्मिक आयोजनों को लेकर एक समान स्टैंडर्ड ऑफ प्रोसीजर तैयार करे। सत्संग और मेलों के लिए भीड़ को नियंत्रित या कम करने के लिए एक सीमा तय करे। सभी भीड़ भरे धार्मिक कार्यक्रमों का वार्षिक कैलेंडर तैयार कर आवश्यक पुलिस बल उपलब्ध कराया जाए और ऐसे आयोजनों को अनुमति देने के लिए भी कठोर नियम तैयार किए जाने चाहिए ताकि ऐसे हादसों से बचा जा सके।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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