आधुनिक दुनिया में विकसित राष्ट्र क्रांति के गवाह, स्वतंत्रता, समानता जैसे महत्वपूर्ण अधिकारों को आम लोगों को दिलाने वाला फ्रांस पिछले दो दिन से हिंसा की आग में धधक रहा है। फ्रांस की सड़कों पर युद्ध जैसे हालात हैं। फ्रांस में 17 साल के मुस्लिम किशोर की पुलिस की गोली से मौत हो जाने के बाद पूरे देश में हिंसा फैल गई है। उसका कसूर यह था कि ट्रैफिक पुलिस ने उसे रुकने का आदेश दिया था, लेकिन उसने अपनी गाड़ी नहीं रोकी। इस पर एक पुलिस अधिकारी ने उसे नजदीक से गोली मार दी। मृतक किशोर नाहेल की मां के आह्वान पर हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया जिसके बाद हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारियों ने देशभर के स्कूलों, टाऊन हाल और पुलिस स्टेशनों को निशाना बनाया। अलग-अलग शहरों में आगजनी की घटनाएं हुईं जिसमें कई वाहन और सरकारी इमारतें नष्ट हो गईं। हालांकि पुलिस ने आरोपी अफसर को हिरासत में ले लिया है और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस घटना की निंदा करते हुए शूट आउट को अक्षम्य बताया और कहा किसी भी एक युवा की मौत को सही नहीं ठहराया जा सकता। पुलिस यूनियन ने राष्ट्रपति के बयान का विरोध किया है और कहा है कि किशोर पुलिस वालों को निशाना बनाने के लिए ही तेज गति से वाहन चला रहा था।
फ्रांस में हो रही हिंसा भारी-भरकम पुलिस बल की तैनाती के बावजूद भी नहीं रुक रही। इसका अर्थ यही है कि फ्रांस के लोग मानवाधिकारों को लेकर कितने सजग हैं। विदेशों में भी मानवाधिकारों के लिए लोग काफी जागरूक हैं और वे अपने अधिकारों के लिए जूझने से भी पीछे नहीं हटते, जबकि भारत में न्याय से इत्तर घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन कोई आवाज नहीं उठाता। ट्रैफिक चैकिंग के दौरान फ्रांस में इस साल की यह तीसरी घटना है जब फायरिंग में किसी की जान गई है या फिर गोली लगी है। वहीं पिछले साल फायरिंग की ऐसी 13 घटनाएं रिपोर्ट की गई थीं। 2021 में तीन और 2020 में ऐसी दो घटनाएं देखने को मिली थीं। इस तरह पुलिस का ट्रैक रिकार्ड अच्छा नहीं है। फ्रांस में आगजनी और हिंसा कोई नई बात नहीं है। नस्लीय दंगों के अलावा मुस्लिम कट्टरपंथियों ने फ्रांस को कई बार निशाना बनाया। फ्रांस में बढ़ते कट्टरपंथ ने काफी नुक्सान पहुंचाया है। फ्रांस की कुल जनसंख्या 6 करोड़ 56 लाख है, जिनमें 50 लाख मुस्लिम हैं।
इस देश में मुस्लिम अधिकांश उत्तरी अफ्रीका और मुख्य रूप से अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनीशिया से आए थे। पेरिस के ग्लैमर के चश्मदीद और अति आधुनिक जीवन जीने वाले देश में इस तरह की हिंसा स्वीकार नहीं की जा सकती। फ्रांस के लोगों को मानवाधिकार दिलाने में फ्रांसीसी क्रांति का अहम योगदान रहा है। 1789 में हुई फ्रांसीसी क्रांति ने न केवल दुनिया को राजतंत्र के खिलाफ खड़े होने का हौसला दिया बल्कि उसे खत्म करने की राह भी दिखाई। इसके अलावा क्रांति के दौरान तैयार हुआ मानव अधिकार घोषणा पत्र पूरी दुनिया में मानव अधिकारों के लिए नजीर बना। जिसमें समानता और स्वतंत्रता जैसे अधिकार मिले। अपनी आधुनिक सोच का ही परिणाम है कि फ्रांस की राजधानी पेरिस फैशन की राजधानी कहलाती है। दुनिया के मशहूर फैशन ब्रांड लुई विटॉन, गारनियर, ऑरेंज भी दुनिया को मिले। ऐसे में सवाल उठता है आधुनिकता और लोकतंत्र का संगम होने के बावजूद फ्रांस में दंगे क्यों हो रहे हैं। फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता पर लाए गए 2004 और 2010 के कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को अपनी आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं है। यही कारण है कि वहां पर सिखों को पगड़ी पहनने से रोका गया और मुस्लिम महिलाएं भी बुर्का नहीं पहन सकतीं। 2014 में तो हिजाब को लेकर भी विवाद शुरू हो गया। इसी तरह फ्रांस की जनगणना में भी लोगों के धर्म को शामिल नहीं किया जाता। अगर फ्रांस की धर्मनिरपेक्षता की तुलना भारत से की जाए तो यह काफी अलग दिखती है क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब ऐसा नहीं है कि कोई अपने धर्म के अनुसार पगड़ी या बुर्का नहीं पहन सकता।
2015 में पत्रिका चार्ली एब्दोे ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के कार्टून छापे थे, जिसके बाद आतंकवादियों ने उसके दफ्तर पर हमला कर सम्पादकों और कार्टूनिस्टों को मौत के घाट उतार दिया था। यह फ्रांस के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। 2020 में सैमूअल पेटी नाम के शिक्षक का सर कलम किए जाने की घटना ने मुस्लिम और समाज के दूसरे लोगों के बीच खाई को और गहरा कर दिया। इसके बाद कट्टरपंथियों ने कुछ और हमले भी किये। राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा फोरम ऑफ़ इस्लाम का गठन कर नई बहस छेड़ दी है। फ्रांस कट्टरपंथ को कम करने के प्रयास कर रहा है। हालांकि मुस्लिम आबादी इसका विरोध कर रही है। पूरी दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इस्लामी कट्टरपंथ को कैसे कम किया जाए। जब भी फ्रांस कोई कदम उठाता है तो मुस्लिम देश इकट्ठे हो जाते हैं। फिर भी इस्लामिक आतंकवाद को रोकने के लिए फ्रांस दुनिया का नेतृत्व करता नजर आ रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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