5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतगणना की धीमी प्रक्रिया ने चुनावों को काफी दिलचस्प बनाया। मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम आने में तो कई घण्टे लग गए, जिन राज्यों में सीटें कम थीं चुनाव परिणाम आने में देरी तो हुई लेकिन शाम तक वहां की स्थिति स्पष्ट हो चुकी थी। मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं, इसलिए अन्तिम तालिका रात के समय जाकर सामने आई। चुनावों के इतिहास में कांग्रेस और भाजपा में इतनी जबर्दस्त कांटे की टक्कर देखने को नहीं मिली। कभी भाजपा ऊपर तो कभी कांग्रेस। दिन में दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के दिल की धड़कनें तेज आैर धीमी होती रहीं। चुनाव आयोग ने भी स्वीकार किया है कि चुनाव परिणामों में देरी के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। इस बार डाक मतपत्रों की संख्या में काफी वृद्धि हुई।
मतदान का प्रतिशत बढ़ा, ईवीएम में पड़े वोटों का वीवी पैट स्लिपों से मिलान के चलते भी विलम्ब हुआ। साथ ही चुनाव आयोग ने इसी वर्ष नगालैंड के विधानसभा चुनाव में हुई परेशानी से बचने के लिए भी सतर्कता बरती। नगालैंड के चुनावों में मतदान अधिकारी की गलती से तेनिंग निर्वाचन क्षेत्र से नेशनलिस्ट डैमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रत्याशी नामरी नचांग की बजाय नगा पीपुल्स फ्रंट के प्रत्याशी एन.आर. जेलांग को विजयी घोषित कर दिया था। निर्वाचन आयोग के पास आर्टिकल 324 के तहत चुनाव परिणाम पलटने का कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं है। उस समय चुनाव आयोग काे काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। फिर दूसरे दिन जाकर परिणाम को पलटना पड़ा। इस बार मतगणना के दौरान वेबकास्टिंग वाई-फाई नेटवर्क को प्रयोग में लाने पर विपक्षी दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग से आपत्ति जताई थी। विपक्षी नेताओं की मांग को मानते हुए आयोग ने फैसला लिया था कि इस दौरान सिर्फ सीसीटीवी कैमरों का इस्तेमाल निगरानी रखने के लिए िकया जाएगा।
चुनाव आयोग ने यह भी नियम बनाया था कि मतगणना के हर राउंड की गिनती के बाद रिटर्निंग आफिसर जब तक राउंड सर्टिफिकेट जारी नहीं करेंगे, तब तक अगले राउंड की गिनती शुरू नहीं की जाएगी। ईटीपीवीएस के तहत मतपत्र इलैक्ट्रोनिकली सशस्त्र बलों में कार्यरत मतदाताओं को भेजे जाते हैं, फिर मतदाता वोट डालकर मेल के माध्यम से मतपत्र रिटर्निंग अधिकारियों को पहुंचाते हैं। ऐसे डाक मतपत्रों की संख्या में काफी वृद्धि होने से मतगणना में काफी लम्बा समय लगा। 2017 के गुजरात और हिमाचल चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने प्रत्येक विधानसभा सीट के किसी भी मतदान केन्द्र की ईवीएम की वोटों का वीवी पैट की पर्चियों से मिलान अनिवार्य बना दिया था। इस प्रक्रिया में भी काफी समय लगता है। मध्य प्रदेश में तो हार-जीत का अन्तर काफी कम रहा।
पहले कोई प्रत्याशी अगर हजारों की बढ़त बना लेता था तो राजनीतिक दल उसे विजयी मानकर स्वयं भी घोषणाएं करने लगते थे लेकिन इस बार ऐसा करना खतरे से खाली नहीं था। अब सवाल उठता है कि ईवीएम को तो इसलिए अपनाया गया था कि समय की बचत हो और चुनाव परिणाम भी जल्द मिल सके। अगर इससे भी मतगणना में दो-दो दिन का समय लग जाए तो फिर ईवीएम से मतदान का फायदा ही क्या रहा। राजनीतिक दलों और मतदाताओं में ईवीएम को लेकर काफी संदेह है। यद्यपि चुनाव आयोग ने ईवीएम में गड़बड़ी को संदेह से परे बताया है लेकिन लोगों के दिलों से शंकाएं दूर नहीं हुईं। राजनीतिक दलों का कहना है कि दुनिया के सभी बड़े लोकतांत्रिक देशों ने ईवीएम को अपनाने के बाद छोड़ दिया। अब अमेरिका और अन्य लोकतांत्रिक देशों में मतपत्रों के माध्यम से ही वोटिंग कराई जाती है। राजनीतिक विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि ईवीएम इतना भरोसेमंद है तो लगभग ढाई सौ साल पुराने लोकतंत्र यानी अमेरिका में बैलेट पेपर का इस्तेमाल क्यों हो रहा है? वहां का चुनाव आयोग इसकी एक वजह बताता है कि अमेरिकी नागरिक को इलैक्ट्रोनिक सिस्टम पर उतना भरोसा नहीं, अगर बात वोटिंग जैसी महत्वपूर्ण हो।
अमेरिकी नागरिक मानते हैं कि ईवीएम हैक की जा सकती है और पेपर बैलेट ज्यादा भरोसेमंद है, जिससे उनका वोट वहीं जाना है, जहां वे चाहें। पेपर बैलेट अमेरिका में 18वीं सदी से चला आ रहा है इसलिए इसे चुनाव में एक रिचुअल की तरह भी देखा जाता है। छेड़छाड़ या हैकिंग के डर से दुनिया के कई देशों ने ईवीएम पर बैन लगा दिया है। इसकी शुरूआत नीदरलैंड ने की थी, इसके बाद जर्मनी ने इसे वोटिंग के लिए गलत और अपारदर्शी बताते हुए इसे बन्द कर दिया। इटली, इंग्लैंड, फ्रांस में बैलेट पेपर ही इस्तेमाल हुए। सवाल अहम है कि अगर ईवीएम पर संदेहों के चलते मतगणना की प्रक्रिया में मतपत्रों की गिनती जितना समय लगना शुरू हो जाए तो फिर निर्वाचन आयोग को मतपत्रों से वोटिंग के मुद्दे पर सोचना होगा।