हम क्यों लड़ रहे हैं? - Punjab Kesari
Girl in a jacket

हम क्यों लड़ रहे हैं?

आज 26 नवम्बर संविधान दिवस है अतः हर भारतवासी के लिए यह गर्व करने का दिन है क्योंकि

आज 26 नवम्बर संविधान दिवस है अतः हर भारतवासी के लिए यह गर्व करने का दिन है क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान बनकर तैयार हो चुका था जिसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया था। प्रश्न वाजिब तौर पर उठता है कि इसके लिए 26 जनवरी की तारीख को ही क्यों चुनी गई? इसकी एक खास वजह थी कि देश को अंग्रेजों की दासता मुक्त कराने वाली कांग्रेस पार्टी स्वतन्त्रता से पूर्व 26 जनवरी को भारत की आजादी के दिन के रूप में मनाती थी और अपने पार्टी अध्यक्ष को ‘राष्ट्रपति’ कहती थी। अतः भारत को गणतन्त्र घोषित करने के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा दिन नहीं हो सकता था। इसके बाद से ही भारत संविधान से चलने वाला देश बना।

इस संविधान के अनुसार राज्य (सत्ता) का कोई धर्म नहीं होगा और प्रत्येक धर्म के प्रति उसकी एक समान दृष्टि होगी। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत पहले ही दिन से एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित हो गया जिसमें सभी धर्मों के अनुयायी आपसी सौहार्द के साथ बन्धुत्व की भावना से मिलजुल कर रहें। मगर आज संविधान लागू होने के 76 वर्ष के बाद भी हम हिन्दू-मुसलमान के झगड़े में संलिप्त पाये जा रहे हैं और वह भी तब हो रहा है जब 15 अगस्त 1947 को भारत से टूटकर पाकिस्तान अलग हो गया था। इस देश का निर्माण मजहब के आधार पर अंग्रेजों व मोहम्मद अली जिन्ना ने साजिश करके यह कहते हुए कराया था कि संयुक्त भारत में हिन्दू-मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते मगर यह पाकिस्तान केवल बंगाल व पंजाब का विभाजन करके ही बना था क्योंकि इन राज्यों में मुस्लिम आबादी बहुसंख्या में थी। इस विभाजन का बहुत तगड़ा विरोध तब भारत के गरीब-गुरबा मुसलमानों ने किया था और कहा था कि जब हमारा जीना-मरना और रोजी-रोटी संयुक्त भारत में ही है तो हम पाकिस्तान लेकर क्या करेंगे।

यह सनद रहनी चाहिए कि 23 मार्च 1940 को जिन्ना की मुस्लिम लीग का लाहौर में अधिवेशन हुआ था जिसमें मुसलमानों के लिए अलग से देश बनाने की मांग की गई थी मगर अप्रैल 1940 में इसके जवाब में दिल्ली में मुसलमानों की ही एक विशाल सभा हुई जिसमें सिंध के नेता अल्लाबख्श समरू व खान अब्दुल गफ्फार खां के साथ देवबन्द के जमीयत उल -उलेमाएं हिन्द के सरपराहों ने भी हिस्सा लिया और मांग की कि भारत के धर्म के आधार पर बंटवारे का वे पुरजोर तरीके से विरोध करते हैं। इस विशाल सभा में पूरे भारत के गरीब-गुरबा व कामगार मुसलमानों की एक दर्जन संस्थाओं ने भी हिस्सा लिया था। मुस्लिम लीग के साथ जमींदार व औहदेदार मुसलमान थे। मगर जिन्ना ने मुसलमानों के बीच नफरत का बाजार इस कदर गर्म किया कि इसके बाद संयुक्त भारत की सामाजिक संरचना में इन दोनों धर्मों के लोगों के बीच दीवार सी खड़ी होने लगी। जिसका प्रमाण 1946 में हुए प्रान्तीय एसेम्बलियों के चुनाव थे। इन चुनावों में मुस्लिम लीग को पंजाब व बंगाल में अच्छी सफलता मिली जबकि 1936 में हुए एसेम्बलियों के चुनाव में जिन्ना की मुस्लिम लीग को पंजाब में केवल दो सीटें ही मिल पाई थीं और बंगाल में इसकी कुछ बेहतर सीटें आ गई थीं।

खैर यह पुराना इतिहास है, वर्तमान में भारत की राजनीति में हिन्दू-मुसलमानों के बीच जिस प्रकार की दीवार खड़ी हो रही है वह राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत खतरनाक है। उत्तर प्रदेश के संभल शहर में जिस तरह यहां की शाही मस्जिद को लेकर विवाद खड़ा हुआ है वह बहुत अधिक चिन्ता की बात है। सवाल खड़ा किया जा रहा है कि 16वीं सदी में यह मस्जिद शिव मन्दिर थी। मगर इसके साथ यह भी सवाल है कि जब 1991 में भारत की संसद ने यह कानून बना दिया कि 15 अगस्त 1947 की आधी रात तक भारत में जिस धर्म स्थान की स्थिति जैसी थी वह वैसी ही रहेगी तो फिर इस दावे का क्या औचित्य है? यह कानून स्व. पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार के जमाने में तब बना था जब अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि को लेकर पूरे देश में आन्दोलन चल रहा था और जिसके चलते इस स्थान पर खड़ी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था। संसद ने इस स्थान को छोड़कर शेष सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति यथावत रखने का कानून बना दिया था। मगर हम जानते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में इस कानून को चुनौती दी गई है जिस पर अभी कोई फैसला नहीं आया है।

इसी प्रकार मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थान का मामला है। हालांकि यहां एक पुरातन इमारत के एक हिस्से में श्रीकृष्ण जन्म स्थान मन्दिर स्थित है और दूसरे हिस्से में मस्जिद है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत में छह सौ वर्षों तक सुल्तानी व मुगलिया राज रहा है। इस दौरान प्रजा पर अपना रुआब गालिब करने के लिए ही सुल्तान बहुसंख्यक आबादी के धार्मिक स्थानों को अपना निशाना बनाते थे जिससे लोगों को यह आभास हो सके कि उनकी किस्मत का फैसला अब राजा के हाथ में नहीं बल्कि सुल्तान के हाथ में है। वैसे मुगलिया सल्तनत के दौर में सिवाये औरंगजेब के किसी अन्य बादशाह ने मन्दिरों को अपना निशाना नहीं बनाया।

अब प्रमुख सवाल यह है कि हम नये स्वतन्त्र भारत में यह मन्दिर-मस्जिद का पिटारा क्यों खोल रहे हैं और आपस में क्यों लड़ रहे हैं जबकि भारत की मिट्टी में हिन्दू व मुसलमान दोनों का ही साझा श्रम विद्यमान है और 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम कई पीढ़ियों पहले ही धर्मान्तरित हुए थे। आखिर हम लड़ किससे रहे हैं? स्थानीय अदालतें यदि मस्जिदों के सर्वेक्षण कराने का आदेश देने लगेंगी तो संसद के बनाये कानून का क्या होगा। पूरे भारत में न जाने कितनी मस्जिदें होंगी जिन पर पहले मन्दिर होने का दावा ठोका जाएगा। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय को संज्ञान लेना चाहिए। संभल में जिस तरह पुलिस और नागरिकों के बीच संघर्ष हुआ है उसमें चार लोग मारे जा चुके हैं तथा शहर का साम्प्रदायिक वातावरण जहरीला हो चुका है। भारत की एकता व अखंडता के लिए बहुत जरूरी है कि हम संयम से काम लें और साम्प्रदायिक वातावरण को बिगड़ने न दें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × two =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।