बुजुर्ग जाएं तो जाएं कहां - Punjab Kesari
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बुजुर्ग जाएं तो जाएं कहां

जिन्दगी में हर इंसान अच्छा कार्य करके पुण्य कमाना चाहता है और अगले जन्म को सुधारना चाहता है।

जिन्दगी में हर इंसान अच्छा कार्य करके पुण्य कमाना चाहता है और अगले जन्म को सुधारना चाहता है। बहुत से लोग करते भी हैं। कोई गऊ दान को बड़ा मानता है, कोई कन्यादान को बड़ा मानता है,  परन्तु पिछले 20 वर्षों में c के लिए काम करते हुए मैंने जाना है कि इससे बड़ा पुण्य नहीं है और इससे बड़ी नि:स्वार्थ सेवा नहीं है। क्योंकि लड़कियों और गऊदान या स्पेशल चिल्ड्रन के लिए सभी आगे आते हैं, परन्तु बुजुर्गों के लिए कोई बिरले ही आगे आते हैं, क्योंकि इसमें कोई नाम नहीं है। यहां सिर्फ आशीर्वाद हैं दुआएं हैं, क्योंकि आज बुजुर्ग हैं कल नहीं हैं और इस उम्र की पीड़ा का अहसास कोई-कोई कर सकता है। यह उम्र सब पर आती है। इसीलिए पिछले 20 वर्षों में हमने  अच्छे घरों के बुजुर्ग और जरूरतमंद बुजर्गों के लिए सेवा का काम शुरू किया हुआ है, क्योंकि पीड़ा दोनों वर्गों में अकेलापन, बीमारी जिसके पास पैसे हैं वो भी दु:खी। उन्हें पैसों के लिए नौकर मार देते हैं या बच्चे लड़ पड़ते हैं और जिनके पास नहीं वह दवाई और खाने को तरसते हैं,  जिसके लिए हमने जरूरतमंदों के लिए एडोप्शन की प्रथा चलाई गई है। जो बहुत से लोग कर रहे हैं और बहुत से लोगों को फायदा होता है। परन्तु एक बात मेरे सामने आई है कि बुजुर्गों को एडोप्ट कई लोग बड़े खुशी से शान से करते हैं, परन्तु जब उन्हें लगता है उनका नाम नहीं हो रहा तो वह उन्हें बीच में छोड़ देते हैं तो ऐसे में बुजुर्ग कहां जाएं। मेरी ऐसे लोगों से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि झूठी शान के लिए आगे आकर बुजुर्गों को एडोप्ट न करें, दिल से आशीर्वाद पाने के लिए और अपना अगला जीवन सुधारने के लिए करें, नहीं तो यह बुजुर्ग कहां जाएंगे।
कई तो इतने अच्छे व्यक्ति हैं जो अपने माता-पिता की एडोप्शन को भी आगे लेकर चल रहे हैं। जैसे महाशय जी ने जीते जी वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब को बहुत सपोर्ट किया, क्योंकि वो इस अवस्था के दर्द को जानते थे।  हर स्थान पर फिजिकल मौजूद रहते थे और सहायता भी  करते थे। उनके जाने के बाद भी यह काम रुका नहीं, इस काम को उनका बेटा राजीव गुलाटी कर रहे हैं, जो अपने पिता के आशीर्वाद के साथ-साथ इन बुजुर्गों का  आशीर्वाद भी ले रहे हैं। ऐसे ही मालती सिंगल जी ने बुजुर्ग एडोप्ट किए हुए थे। उनके जाने के बाद अब उनके बेटे मनोज सिंघल उनका काम आगे बढ़ा रहे हैं। वो बुजुर्गों की सहायता कर रहे हैं। सिटी पार्क होटल के मालिक राजेन्द्र  अग्रवाल जो हर साल महामृत्युंजय मंत्र का जाप  के लिए स्थान व बुजुर्गों की सहायता भी करते थे। अब बेटे विजय अग्रवाल ने उनकी सेवा को रुकने नहीं दिया। वो वैसे ही सेवा देने को तैयार हैं भगवान ऐसे पुत्र सबको दें। तलवाड़ परिवार तो तीन पीढिय़ों से सहायता कर रहा है और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो शौंक से एडोप्ट कर अपनी फोटो खिंचवा कर बीच में छोड़ देते हैं। उनको लगता है इन बुजुर्गों का क्या वे उम्र भुगत चुके हैं। इनकी क्या सहायता करनी। ऐसे लोगों को तो ध्यान रखना चाहिए की यह उम्र तो उन पर भी 
आनी है। 
पिछले 20 वर्षों से वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब अपने बुजुर्गों को खुशियां बांट रहा है। महीने की हर 6 तारीख को उन जरूरतमंदों का प्रोग्राम होता है जिनको आर्थिक सहायता और जरूरत का सामान दिया जाता है। अडोप्शन हमने पहली बार वल्र्ड में प्रथा चलाई कि बच्चों को तो सब अडोप्ट करते हैं परन्तु ह्यद्गठ्ठद्बशह्म् ष्द्बह्लद्ब5द्गठ्ठ को एडोप्ट करने की पहल हमने कराई। दरअसल बहुत से बुजुर्गों के बच्चे हमारे पास आते हैं कि हम अपने बुजुर्गों को अपने पास नहीं रख सकते। महंगाई का जमाना है। हम अपने बुजुर्ग पालें या अपने बच्चे। तो मुझे पहले तो बड़ी हैरानगी होती थी कि यह क्या मां-बाप ने कितने प्यार से अपने बच्चों को पाला बड़ा किया पढ़ाया-लिखाया। जब उनका समय आया तो यह बात सोच रहे हैं वो मां-बाप जिन्होंने ऊंगली पकड़ उन्हें चलना सिखाया जिन्होंने तंगी में कभी बच्चे को मालूम नहीं पडऩे दिया। उन माता-पिता के अन्दर रोटी नहीं जाती थी जब तक बच्चे के अन्दर न जाये। वह मां-बाप जो अपना सब कुछ बेच कर बच्चे को पढ़ाते हैं कि यह बच्चा बड़ा होकर हमारे दु:ख काट देगा। हमारे बुढ़ापे का सहारा होगा, वो बच्चे जिनके मुंह में दांत नहीं थे तो वह उन्हें मुलायम चीजें बना कर खिलाते थे। विटामिन टॉनिक देते थे ताकि उनकी अच्छी तरह  ग्रोथ हो। आज जब उनके माता-पिता के मुंह में दांत नहीं तो वह मुलायम चीज क्या उन्हें दो वक्त खिचड़ी, दलिया भी नहीं खिला सकते। बचपन में जिन बच्चों को हल्का बुखार भी हो जाता था माता-पिता सारी रात नहीं सोते  थे और आज मां-बाप बुढ़ापे में शुगर, बी.पी. जोड़ों के दर्द की बीमारियों से जूझ रहे हैं तो उनको प्यार से पूछ भी नहीं सकते। तब मैं उनको समझाती हूं कि वृद्ध आश्रम छतए रोटी तो दे सकते हैं परन्तु अपनापन नहीं, प्यार और अहसास नहीं। उन्हें इस समय दो शब्द प्यार के अपनापन और आपका साथ चाहिए। हम उनके खाने और दवाई का खर्च देते हैं। आप उन्हें साथ रखिये। हम सम्पन्न लोगों को प्रार्थना करते हैं और कहते हैं कि आप इन्हें एडोप्ट कीजिए। एक-दो या अपनी क्षमता अनुसार 10, 15, 50, 100 बुजुर्ग एडोप्ट कीजिए। उनको घर ले जाने की जरूरत नहीं आप उन्हें खाने और दवाइयों का खर्च दो ताकि जो अपने ही घर अपने बच्चों के साथ एक ही छत के नीचे अपने पोते-पोतियों के साथ अपनेपन के अहसास से रह सकें। इस तरह हर महीने जो हमें दानकर्ताओं से राशि आती है या जो लोग एडोप्ट करते हैं उन्हें पैसों से सभी सहायता होती है और वह बुजुर्ग दुआएं देते हुए अपने घरों में रह सकते हैं।
बहुत से बुजुर्ग 6 तारीख को सहायता पाते हैं और बहुत से इंतजार की कतार में हैं क्योंकि जैसे ही राशि आती है उतने बुजुर्ग एडोप्ट होते जाते हैं और कई बुजुर्ग इस दुनिया से चले जाते हैं तो दूसरे उनका स्थान ले लेते हैं। हम एक दिन में जहां हमारे बच्चे एक सैकेंड में 2,000, 5,000 या 10,000 खर्च कर देते हैं क्यों न हम यह पुण्य कमायें। अपने जीवन की  कमाई से किसी एक न एक बुजुर्ग या क्षमता अनुसार अधिक बुजुर्गों को एडोप्ट करें और अपना अगला जीवन भी सुधार लें। मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिद में भगवान को कुछ नहीं चाहिए वो तो देने वाले हैं। अगर हम इन साक्षात भगवानों की तरह पूजा करें, इनकी सेवा करें तो हमें सफलता मिलेगी। आशीर्वाद मिलेगा। आओ आगे बढ़ें, ज्यादा से ज्यादा बुजुर्गों को एडोप्ट करें हमारा ट्रस्ट 80 त्र के ठ्ठस्रद्गह्म् है। हम जो भी सहायता राशि देंगे उसमें क्रद्गड्ढड्डह्लद्ग मिलेगा। आपको रसीद मिलेगी। मेरा मानना है हर इन्सान को लोगों की भलाई के लिए जिन्दगी का कुछ समय और कुछ राशि खर्च करनी चाहिए। द्य
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का गम मिल सके तो ले उधार।
जीना इसी का नाम है। 

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