मोबाइल फोन, लैपटॉप के असीमित प्रचलन ने भारतीय किशोरों और युवाओं में अनेक विकृतियों को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम तो किया ही है लेकिन सोशल मीडिया ने भी समाज को तनावग्रस्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। क्या वास्तव में सोशल फाेबिया मनोविकार की श्रेणी में आता है? शारीरिक व्याधि तो पकड़ में आती है, महसूस की जाती है। उसे लेकर लोग सहानुभूति बटोर लेते हैं लेकिन मानसिक रोगों के साथ ऐसा नहीं है। इन्सान कब कैसा और किस बात को लेकर क्या प्रतिक्रिया देता है, कुछ कहा नहीं जा सकता। मानव मन बहुत रहस्यमय है, बड़े से बड़े मनोवैज्ञानिक भी इसकी गुत्थी नहीं सुलझा पाए हैं। यह सही है कि सोशल मीडिया कामकाजी क्षेत्र के लिए वरदान है। सूचनाओं का आदान-प्रदान पलभर में हो जाता है लेकिन व्हाट्सएप, फेसबुक और अन्य सोशल साइटों पर भोंडे और अपशब्दभरी राजनीतिक बयानबाजी को फैलाया गया।
फर्जी खबरों आैर भ्रामक सूचनाओं से मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ीं। पिछले कुछ महीनों में देश में व्हाट्सएप पर बच्चे चुराने वाले गिरोह की खबरें फैलाई गईं, जिसके चलते ऐसा वातावरण सृजित हुआ कि बच्चा चोर समझकर कुछ लोगों की पीट-पीटकर हत्याएं कर दी गईं। कहीं भी सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं के वीडियो डाले गए जिससे अन्य क्षेत्रों में भी स्थिति तनावपूर्ण बन गई। चुनावों के दिनों में भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग लोगों की विचारधारा को बदलने के लिए किया गया। फेसबुक पर तो लोगों का डाटा चोरी करने आैर उस डाटा का इस्तेमाल लोगों के मूड को भांपने और उन्हें प्रभावित करने के लिए िकया गया। व्हाट्सएप पर अफवाहों के चलते संवेदनशील क्षेत्रों में ऐसे हालात पैदा कर दिए कि भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हाे गया। जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी गिरोहों के एजेंटों ने सोशल मीडिया का जमकर दुरुपयोग किया। अफवाहें फैलाने वाले संदेशों को लेकर जब विवाद बहुत गहराया तो सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने व्हाट्सएप को पत्र लिखकर अवांछित संदेशों पर रोक लगाने को कहा था। व्हाट्सएप ने उसके बाद कुछ कदम उठाए थे लेकिन सरकार उन कदमों से संतुष्ट नहीं थी। लिहाजा मंत्रालय ने फिर पत्र लिखा और कुछ और सख्त कदम उठाने को कहा था।
व्हाट्सएप ने भारत सरकार की चिन्ताओं को समझा आैर कम्पनी ने कहा कि खासतौर पर चुनावों के दौरान अफवाह फैलाने से लेकर अपशब्दों के जरिये छवि खराब करने वाले संदेश अधिक चिन्ता की वजह बनते हैं, इसलिए व्हाट्सएप भारत में होने वाले आगामी चुनावों को लेकर अधिक संवेदनशील हैं। व्हाट्सएप ने भी माना कि इस संबंध में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है इसलिए भारत में एक स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करने का निर्णय किया गया। केंद्र सरकार ने व्हाट्सएप से मांग की थी कि ऐसी प्रौद्योगिकी लगाई जाए जिससे फेंक न्यूज फैलाने वालों का पता चल जाए। सरकार ने यह भी कहा था कि व्हाट्सएप भारत में काम करने के लिए कार्यालय बनाएं आैर शिकायतों का निपटारा करने के लिए अधिकारी की नियुक्ति हो। फेंक न्यूज और अफवाहों को रोकने के लिए प्रभावी समाधान किया जाए लेकिन व्हाट्सएप ने अपने प्लेटफार्म पर मैसेज के स्रोत का पता लगाने के लिए साफ्टवेयर विकिसत करने से इन्कार कर दिया है। कम्पनी का कहना है कि सभी प्रकार की संवेदनशील सूचनाओं के आदान-प्रदान करने के लिए लोग व्हाट्सएप पर निर्भर हैं। चाहे वह डाक्टर हो या बैंक कर्मचारी या परिवार के सदस्य। जरूरत है लोगों को जागरूक करने की।
अब सवाल यह है कि व्हाट्सएप यदि संदेशों का मूल स्रोत बताने को तैयार नहीं तो फिर जवाबदेह कौन होगा? सोशल मीडिया अगर समाज को ही नुक्सान पहुंचाने लगे तो फिर उपाय क्या है? जवाबदेही तय करने के लिए सरकार को अपने कदम बढ़ाने होंगे। सरकार को व्हाट्सएप जैसी कम्पनियों की जवाबदेही को तय करने के लिए गाइडलाइन्स लानी होगी और अपने पुराने कानूनों में बदलाव करना होगा। कम्पनी का कहना है कि संदेशों का स्रोत पता लगाने के लिए साफ्टवेयर बनाने में एक किनारे से दूसरे किनारे तक कूटभाषा प्रभावित होगी आैर व्हाट्सएप की निजी प्रवृत्ति पर भी असर पड़ेगा। ऐसा करने से इसके दुरुपयोग की आैर संभावना पैदा होगी आैर वह निजता के संरक्षण को कमजोर नहीं होने देंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि फर्जी सूचनाओं के चलते हत्याएं कैसे रुकें। इस संबंध में लोगों को जागरूक करने की बातें कहीं गई हैं।
एक रिपोर्ट से पता चलता है कि लोगों ने बीते तीन महीनों में व्हाट्सएप पर 85 अरब घंटे समय बिताया। इस एप काे दुनियाभर में 1.5 अरब प्रयोगकर्ता इस्तेमाल करते हैं। दुनियाभर में प्रयोगकर्ता इस एप पर सबसे ज्यादा समय बिताते हैं। समाज के लोगों में संवादहीनता की स्थिति पैदा हो रही है, बैडरूम कल्चर बढ़ रहा है। ऐसे में जागरूकता अभियान कैसे चलाया जाए, यह भी शोध का विषय है। लोग आभासी दुनिया काे ही सच मान लेते हैं जबकि यह अर्द्धसत्य है। बेहतर होगा कि लोग आभासी दुनिया से बाहर आकर आपसी रिश्ते बनाएं। नई प्रौद्योगिकी के चलते कितना दुःखद है कि लोग ‘आत्महत्या’ करने का पूरा वीडियो लाइव कर रहे हैं। कोई नहीं सोच रहा कि समाज में इसका क्या प्रभाव होगा। समाज को खुद भी आभासी दुनिया के गुण और दोषों को परखना होगा।