स्टालिन ने राहुल में क्या देखा? - Punjab Kesari
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स्टालिन ने राहुल में क्या देखा?

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जब दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य तमिलनाडु से यहां की सबसे प्रमुख पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) के नेता श्री एम.के. स्टालिन ने पिछले दिनों यह कहा कि कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष के प्रधानमन्त्री पद के दावेदार होने चाहिएं तो अन्य भाजपा विरोधी दलों में थिरकन सी दौड़ गई और यह कहा जाने लगा कि इस बारे में फैसला चुनावों के बाद होगा। दरअसल यह वह डर है जो आज के राजनैतिक माहौल को एक सिरे से बदलने की क्षमता इस तरह रखता है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसी महानायक का उदय हो सके।

लोकतान्त्रिक राजनीति में नेता वही कहलाता है जिसके पीछे जनता चलने लगती है, वह जनता को दिशा दिखाता है और जनता उसी की दिखाई राह को सही मानती है लेकिन जनता आसानी के साथ किसी भी नेता को अपना रहनुमा नहीं बताती बल्कि वह अपनी आवाज से उसकी आवाज मिलाकर देखती है और जब दोनों की लय एक समान लगती है तो जनता उस नेता को सिर-माथे पर बैठा लेती है परन्तु महानायक वह बनता है जो वक्त की नब्ज देखकर जनता की अपेक्षाओं को आवाज देता है। ऐसा होते ही आम जनता नेता की आवाज में अपना सुर मिलाकर आसमान हिला देती है जिसकी प्रतिध्वनि से जननायक का जन्म होता है। सवाल उठना लाजिमी है कि श्री स्टालिन ने श्री राहुल गांधी में ऐसा क्या देखा कि उन्होंने उन्हें अगला प्रधानमन्त्री देखने की चाहत रख दी? स्टालिन ने ठीक वही किया जो लगभग 48 साल पहले 1969 में उनके पिता स्व. करुणानिधी ने किया था।

उस समय राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी पहले विभाजन के कगार पर थी और प्रधानमन्त्री रहते हुए श्रीमती गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अाधिकारिक प्रत्याशी स्व. नीलम संजीव रेड्डी के विरुद्ध स्व. वी .वी. गिरी की उम्मीदवारी को अघोषित रूप से कांग्रेस का प्रत्याशी बनाते हुए सभी कांग्रेसी सांसदों व विधायकों से अपनी अन्तरात्मा की आवाज पर वोट डालने का आह्वान किया था। तब तमिलनाडु मंे स्व. करुणानिधी की द्रमुक सरकार से इंदिरा जी ने श्री गिरी को समर्थन दिये जाने की अपील की थी जबकि तमिलनाडु के सबसे बड़े कांग्रेसी नेता स्व. कामराज नाडार अाधिकारिक कांग्रेस प्रत्याशी संजीव रेड्डी के समर्थन में थे। तीसरे प्रत्याशी स्व. सी.डी. देशमुख जनसंघ व स्वतन्त्र पार्टी जैसे दलों के समर्थन से विपक्ष के उम्मीदवार कहला रहे थे परन्तु इनके जीतने की संभावना दूर-दूर तक नहीं थी। उस समय स्व. करुणानिधी ने बहुत दूर की कौड़ी चलते हुए श्री गिरी को समर्थन देने की घोषणा कर डाली थी।

उनके फैसले को राजनैतिक क्षेत्रों में बहुत हैरत से देखा गया था क्योंकि 1967 के चुनावों में ही पहली बार तमिलनाडु विधानसभा में उनकी पार्टी द्रमुक ने कांग्रेस को ही करारी शिकस्त देकर अपनी सरकार बनाई थी। करुणानिधी ने उस समय वक्त की रफ्तार को देखते हुए जो राजनैतिक फैसला किया था उसमें इन्दिरा गांधी के आगे चलकर राष्ट्रीय स्तर पर महानायक के रूप में उभरने की क्षमता का पक्का अन्दाजा था। इसकी असली वजह यह थी कि इन्दिरा गांधी कांग्रेस पार्टी के उन मठाधीशों के टकरा गई थीं जो मुल्क की सियासत को बने-बनाये ढर्रे पर चलाने को आमादा थे। आश्चर्यजनक रूप से इनमें वह स्व. कामराज भी शामिल थे जिन्होंने 1966 में लालबहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से इन्दिरा जी को प्रधानमन्त्री बनाया था।

इन्दिरा गांधी ने 1969 में कांग्रेस से विद्रोह की लड़ाई को पूरी तरह विचारधारा की लड़ाई में तब्दील कर दिया था और जनसंघ व स्वतन्त्र पार्टी को छोड़कर अन्य विपक्षी दलों के सामने भी विकल्प नहीं छोड़ा था कि वे वी.वी. गिरी या संजीव रेड्डी में से किसी एक को ही चुनें। अतः एम.के. स्टालिन द्वारा राहुल गांधी के नाम की घोषणा किये जाने के पीछे के उद्देश्य को समझने में हमें गलती नहीं करनी चाहिए और सियासी माहौल का जायजा लेना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर विचारधारा की राजनीति के स्थापित होने का वातावरण बनता जा रहा है और वह इसके केन्द्र में आते जा रहे हैं जिससे लोकसभा चुनावों में व्यक्तित्वों की टकराहट बेमानी बनती जा रही है बल्कि इसके विपरीत उत्तर भारत के तीन राज्यों में भाजपा के चुनाव हार जाने से क्षेत्रीय खासकर जातिमूलक दलों में अपने वजूद को बचाये रखने की तिकड़में शुरू हो गई हैं।

ये दल श्री स्टालिन के राजनैतिक सन्देश को पढ़ने से हिचकिचा रहे हैं जिसमें साफ लिखा हुआ है कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की उतनी जरूरत लोकसभा चुनावों में नहीं पड़ेगी जितनी क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस की क्योंकि ये चुनाव राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने वाले होंगे। हर सूबे में कांग्रेस पार्टी का वजूद आज भी मौजूद है। इसलिए यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि किस तरह भाजपा इन चुनावों में कांग्रेस की घेराबन्दी करेगी?

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