मुझे आज भी याद है कि दसवीं की परीक्षा में हम दो फास्ट फ्रैंड्स का बहुत ही कम्पीटीशन था। दोनों का आपस में बहुत प्यार था परन्तु पढ़ाई की बात एक-दूसरे से नहीं करते थे क्योंकि हमेशा डर था कि किसके नम्बर ज्यादा आएंगे। तब बड़ी हैल्दी कम्पीटीशन स्प्रिट थी। जब भी हम दोनों बात करतीं कि कितना पढ़ लिया तो दोनों का जवाब था-अभी तो शुरू किया है। आखिर मधु मेरे से 2 नम्बर से आगे रही। दोनों की फर्स्ट डिवीजन थी परन्तु उसके मैथ्स में मेरे से अधिक मार्क्स थे। बुरा बहुत लगा था परन्तु टैंशन नाम की चीज नहीं थी। यूथ ही एक ऐसा वर्ग है जाे मस्ती में जीना जानता है। भारत ही क्या पूरी दुनिया का युवा वर्ग हर मौके पर खुशियां मनाना जानता है लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू हमारे यहां उस वक्त देखा जा सकता है जब दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं होती हैं।
स्टूडेंट्स टेंशन में नज़र आते हैं। पेपर देने से लेकर पेपर खत्म होने तक और परीक्षा परिणाम आने से लेकर पसन्द के कालेज में दाखिले तक हर स्टूडेंट को एक अजीब सी टेंशन का सामना करना पड़ता है। पिछले एक दशक से मैं स्टूडेंट्स की इस टेंशन का एक बड़ा कारण यही समझ पाई हूं कि कम्पीटीशन बहुत बढ़ गया है। बच्चों पर स्ट्रैस और टेंशन का लेवल इतना बढ़ गया है कि दसवीं या बारहवीं या फिर अन्य बड़ी परीक्षाओं को लेकर, अपने इंटरव्यू को लेकर अगर सफलता न मिले तो वे आत्महत्या तक करने लगे हैं। जिसे रोका ही जाना चाहिए। बढ़ता मैंटल स्ट्रैस परिवारों के लिए भी बहुत घातक होता जा रहा है। अपनी पसन्द के स्कूल और कालेज में दाखिला न मिलने को लेकर भी दसवीं और बारहवीं के स्टूडेंट्स डिप्रैशन में जाने लगे हैं। सीबीएसई के तहत जब दसवीं और बारहवीं परीक्षा के परिणाम आते हैं और बच्चों के शत-प्रतिशत मार्क्स आते हैं तो बहुत खुशी होती है।
इन स्टूडेंट्स के इंटरव्यू जब हम अखबारों में पढ़ते आैर टी.वी. पर देखते हैैं तो उनके शब्द बड़े अच्छे लगते हैं कि किस प्रकार उन्होंने प्रतिदिन स्कूल में पढ़ाए जाने वाले कोर्स को नियमित रूप से पढ़ा है। उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा शिक्षा के लिए प्यार से प्रेरित किया। मासूमियत से भरे ये शब्द सचमुच हमें यह अहसास कराते हैं िक इन बच्चों के दम पर देश का भविष्य सुरक्षित है लेकिन अगर उनके मार्क्स कम रहते हैं तो वे आत्महत्या जैसे पग क्याें उठा लेते हैं? इस सवाल को लेकर मैं कई बार बहुत असहज हो जाती हूं। एक मां होने के नाते, एक सामाजिक नारी होने के नाते मैं इन बच्चों को केवल यही कहना चाहूंगी कि अगर मार्क्स कुछ हद तक थोड़े कम आते हैं तो भी घबराने की जरूरत नहीं क्योंकि आज का समय शिक्षा के मामले में बहुत ही ज्यादा ओप्शन्स वाला है। हमारे समय में कभी 50 प्रतिशत या 55 प्रतिशत अंक तक को सैकिण्ड डिवीजन और हाई सैकिण्ड डिवीजन के रूप में देखा जाता था।
फर्स्ट डिवीजन तो बहुत कठिन और दुर्लभ थी जबकि आज के समय में 500 में से 489 अंक वाले को टेंशन इस बात की है कि यदि एक अंक और होता तो वह 490 से 500 अंक प्राप्त करने वाले टॉप टैन में शामिल होता या जिसके 460 से 470 हैं वह भी संतुष्ट नहीं। माता-पिता और शिक्षकों का भी यह फर्ज है कि वे बच्चों पर ज्यादा से ज्यादा मार्क्स लाने के लिए दबाव न डालें। आगे चलकर यह दबाव स्ट्रैस बन सकता है। ज्यादा कुछ न कहते हुए यही कहना चाहूंगी कि स्टूडेंट्स टेंशन न लें और अपने मार्क्स के मुताबिक खुद को एडजस्ट करें। जीवन कीमती है। आगे बहुत कुछ किया जा सकता है। किसी भी स्तर की परीक्षा को अन्तिम न मानें बल्कि हर परिणाम को एक अच्छी शुरूआत के रूप में स्वीकार करें। सभी स्टूडेंट्स को अच्छे मार्क्स लाने और अच्छे मार्क्स की कोशिश करने के लिए बहुत-बहुत आशीर्वाद और गुड लक।