क्या स्मृति को अकेला छोड़ दिया गया? - Punjab Kesari
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क्या स्मृति को अकेला छोड़ दिया गया?

इन आम चुनावों में एक दिलचस्प बात यह है कि मोदी ने अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए एक भी रैली को संबोधित नहीं किया है। पिछला चुनाव याद है? मोदी से लेकर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ आदि तक भाजपा के हर शीर्ष नेता उनका समर्थन करने के लिए अमेठी पहुंचे थे। 2019 में भाजपा का हर स्टार प्रचारक अमेठी पहुंचा था और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हराने में जी-जान लगा दी थी। इस बार शाह एक बार गए तो योगी ने दो सभाओं को संबोधित किया। इसकी तुलना पार्टी उम्मीदवार केएल शर्मा के लिए कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी के प्रयासों से करें। वह दस दिनों तक रायबरेली और अमेठी में रहीं और सैकड़ों रैलियों, नुक्कड़ सभाओं को संबोधित किया और घर-घर गईं। विडंबना यह है कि स्मृति ईरानी के सभी भाषण राहुल गांधी के बारे में हैं, हालांकि वह अमेठी से नहीं लड़ रहे हैं। इस बात को लेकर चर्चा है कि स्मृति को इस बार हाईकमान ने अकेला छोड़ दिया है। राज ठाकरे को एनडीए में शामिल पर भाजपा को पछतावा
भाजपा को महाराष्ट्र में एनडीए अभियान के लिए उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे और उनके मनसे को शामिल करने के अपने फैसले पर पछतावा हो रहा होगा। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे प्रवासियों के खिलाफ अपशब्दों से कल्याण संसदीय क्षेत्र में बेटे श्रीकांत की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए राज ठाकरे से नाराज हैं।

राज ठाकरे के आलोचनात्मक रवैये के कारण भाजपा को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। उद्धव ठाकरे का पूरा अभियान गुजराती वर्चस्व बनाम मराठी गौरव के इर्द-गिर्द रचा गया है और राज ठाकरे ने मुंबई में गैर-मराठियों की आमद की निंदा करके उस कथा को आगे बढ़ाया। शिंदे ने राज ठाकरे को कल्याण में एक रैली को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था, जहां बेटे श्रीकांत को उद्धव ठाकरे की उम्मीदवार वैशाली दारेकर राणे से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
राज ठाकरे ने इस दौरान छग्गन भुजबल की भी आलोचना करके शिंदे को नुक्सान पहुंचाया। छगन भुजबल अब अ​िजत पवार के साथ है जो भाजपा के सहयोगी हैं।
राज ठाकरे ने कई साल पहले अपने और उद्धव ठाकरे के बीच दरार पैदा करने के लिए भुजबल को जिम्मेदार ठहराया था। ऐसा माना जाता है कि महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उनकी एमएनएस को एनडीए लाइन अप में शामिल करने का निर्णय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा आगे बढ़ाया गया था। शिंदे-अजित पवार के बीच सब कुछ सही नहींभाजपा और महाराष्ट्र सरकार में उसके सहयोगियों, शिवसेना के एकनाथ शिंदे के गुट और एनसीपी के अजित पवार के गुट के बीच संबंध चुनाव अभियान के दौरान ख़राब होते दिख रहे हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत वे नए होर्डिंग हैं जो 20 मई को शहर में मतदान से पहले दिखाई दिए। होर्डिंग्स में शिंदे या अ​िजत पवार का नाम नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें बहुत बड़ी थी और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को थोड़ी कम प्रमुखता दी गई थी। ऐसा लगता है कि भाजपा शिंदे से नाराज है क्योंकि उन्होंने राज्य में अंतिम चरण के मतदान में भाजपा उम्मीदवारों के लिए शायद ही प्रचार किया हो। वह बेटे श्रीकांत के लिए कल्याण सीट पर ही प्रचार करने में जुटे रहे। जहां तक अजित पवार की बात है तो वह चौथे चरण के मतदान के बाद भूमिगत हो गए हैं। उनके खेमे की ओर से अनौपचारिक स्पष्टीकरण यह है कि पांचवें चरण में जिन निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ, वहां एनसीपी कोई कारक नहीं है।

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