युद्ध और अफ्रीकी देश - Punjab Kesari
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युद्ध और अफ्रीकी देश

रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला किया। इस युद्ध के जल्दी खत्म होने के कोई

रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला किया। इस युद्ध के जल्दी खत्म होने के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे। लिहाजा एक ही झटके में लड़ाई का निपटारा कर देने के नाम पर अपनी सारी ताकत झोंक देने की गलती रूस नहीं करने वाला। विश्व युद्ध या परमाणु युद्ध का रूप ले लेना इस युद्ध में असम्भव तो नहीं लेकिन ट्रिगर प्वाइंट पर अंगुली रखने की भूल रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी नहीं कर रहे। यद्यपि उन्होंने बेलारूस में परमाणु हथियार पहुंचने की घोषणा कर दी है। रूस-यूक्रेन युद्ध का असर समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। दुनियाभर में अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल चुका है। युद्ध से विश्व दो गुटों में बंट गया है। तेल, ऊर्जा और खाद्यान्न की आपूर्ति प्रभावित होने से कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। कई देशों में खाद्यान्न संकट बढ़ता जा रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित अफ्रीकी देश हुए हैं। इन अफ्रीकी देशों में भूखमरी की आशंका बढ़ती जा रही है। पहले से ही गरीबी की मार झेल रहे अफ्रीकी देशों में घबराहट और परेशानी है। युद्ध के चलते यूक्रेन और रूसी अनाज निर्यात में भी काफी कमी आई है। जिस कारण संकट गहराता जा रहा है।
दाने-दाने को तरस रहे अफ्रीकी देशों का प्रतिनिधिमंडल युद्ध को समाप्त करने के तरीकों की तलाश करने यूक्रेन पहुंचा हुआ है। इस प्रतिनिधिमंडल में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति शिरिन रामाफोसा और जांबिया, सेनेगल, युगांडा, मिस्त्र और कांगो के वरिष्ठ नेता और अधिकारी शामिल हैं। अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधिमंडल के यूक्रेन पहुंचते ही राजधानी कीव में रूसी हवाई हमले का सायरन बजा और विस्फोटों की आवाज सुनाई दी। इससे रूस ने यह सीधा संकेत दे दिया है कि वह युद्ध जल्द खत्म करने का इच्छुक नहीं है। यद्यपि ब्लादिमीर पुुतिन ने भी अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधिमंडल से बैठक करने पर सहमति व्यक्त की है। अफ्रीकी प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की सहमति पहले ही दे दी थी और अफ्रीकी प्रतिनिधिमंडल ने सैंट पीटर्सबर्ग में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्मेलन में पुतिन से मुलाकात भी कर ली है। अफ्रीकी नेताओं का उद्देश्य युद्ध समाप्त करने के लिए न केवल एक शांति प्रक्रिया शुरू करना है, बल्कि यह भी आंकलन करना है कि वे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते रूस को उर्वरक निर्यात का भुगतान कैसे कर सकते हैं जिसकी अफ्रीकी  देशों को सख्त जरूरत है। 
रूस आैर यूक्रेन की दुनिया के कुल गेहूं निर्यात में 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। ऐसे में अपनी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के ​िलए जो अफ्रीकी देश विशुद्ध आयात पर आश्रित हैं वे चाहते हैं कि युद्ध जल्दी खत्म हो। उन्हें न तो गेहूं मिल रहा है, न उर्वरक और न ही अन्य वस्तुएं। एक तरफ जलवायु परिवर्तन ने पहले ही वैश्विक औसत कृषि उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है। कोरोना महामारी ने भी खाद्यान्न उत्पादन पर मार की। महामारी के समाप्त हो जाने के बाद गतिविधियों ने धीरे-धीरे जोर पकड़ा तो रूस-यूक्रेन युद्ध ने आपर्ति शृंखला को ही छिन्न-भिन्न करके रख दिया। अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका के देशों में बाढ़ और सूखे से फसलों को काफी नुक्सान पहुंचा। खाद्यान्न संकट मानव जीवन से जुड़ी परिस्थितियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है जिससे सामाजिक अशांति का खतरा बढ़ गया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, अफ्रीका में खाद्य कीमतों में “2020-22 में औसतन 23.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सबसे अधिक है। खाद्य सामग्रियों की कीमतों में हो रही लगातार वृद्धि का कई अफ्रीकी देशों पर बहुत विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। अफ्रीकी विकास बैंक (एएफडीबी) के अनुसार अफ्रीकी देश सालाना 1100 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक अनाज आयात करने के लिए 75 बिलियन डालर से अधिक खर्च करते हैं। 2020 में 15 अफ्रीकी देशों ने रूसी संघ या यूक्रेन से अपने गेहूं उत्पादों का 50 प्रतिशत से अधिक आयात किया। एएफडीबी के अनुसार रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण अफ्रीका महाद्वीप के देशों में लगभग 30 मिलियन टन अनाज की कमी होने की पूरी सम्भावना है और साथ ही अनाज के दामों में भी लगातार बढ़ाैतरी संभावित है।
इस तरह की स्थिति कई देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में उथल-पुथल मचा सकती है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब तक युद्ध समाप्त नहीं होता तब तक स्थितियों में सुधार नहीं हो सकता। युद्ध को लेकर अफ्रीकी देश भी आपस में बंटे  हुए हैं। यूक्रेन से रूस की वापसी की मांग करने वाले दो संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों पर मतदान करने की बात आई थी तो आधे से अधिक अफ्रीकी देशों के वोट यूक्रेन के पक्ष में थे। जबकि दक्षिण अफ्रीका ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था। इसके चलते अमेरिका भी उससे नाराज हो 
गया था कि उसने तटस्थ रुख क्यों अपनाया? अब देखना यह है कि रूस का अफ्रीकी देशों के प्रति क्या रवैया रहता है। अफ्रीकी नेताओं को अपने हितों की रक्षा भी करनी है। यह भी देखना होगा कि मास्को और अफ्रीका के संबंध किस करवट बैठते हैं। मानवता की रक्षा के लिए युद्ध को समाप्त करने का मार्ग तलाशना ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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