‘वक्फ’ और ममता सरकार - Punjab Kesari
Girl in a jacket

‘वक्फ’ और ममता सरकार

प. बंगाल में वक्फ कानून पर हिंसा, ममता सरकार पर सवाल…

मुस्लिम वक्फ संशोधन कानून पर जिस तरह प. बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हिंसा हुई है उसकी जितनी निन्दा की जाये वह कम है। बीते जुम्मे (शुक्रवार) को हुई हिंसा में तीन व्यक्तियों को बलि का बकरा बनाया गया जिनमें से दो पिता-पुत्र हैं। इस अमानुषिक कृत्य का कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सूरत में समर्थन नहीं कर सकता है, चाहे उसका धर्म कोई भी हो। अतः कलकत्ता उच्च न्यायलय ने मुर्शिदाबाद में केन्द्रीय बलों की तैनाती का हुक्म देकर हिंसा रोकने का इन्तजाम किया है। वक्फ संशोधन कानून हाल ही में संसद में सारी संसदीय प्रक्रियाओं का पालन करते हुए बनाया गया है। अतः इसकी वैधता पर किसी प्रकार का सवालिया निशान केवल सर्वोच्च न्यायालय को छोड़कर कहीं नहीं लगाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय में इस कानून की वैधता को लेकर कई राजनैतिक दलों की ओर से याचिकाएं दाखिल की गई हैं जिन पर आगामी 16 अप्रैल को सुनवाई होनी है। जहां तक कानून का सड़कों पर विरोध का प्रश्न है तो इसका विरोध शान्तिपूर्ण तरीके से लोकतान्त्रिक मर्यादाओं के साथ ही किया जा सकता है।

मगर प. बंगाल के कई जिलों में इस कानून का विरोध हिंसात्मक तरीकों से किया गया जिसकी लोकतन्त्र इजाजत नहीं देता। चूंकि कानून-व्यवस्था राज्यों का विशेषाधिकार होता है अतः राज्य की तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार का यह कर्त्तव्य बनता था कि वह विरोध-प्रदर्शन को किसी भी रूप में हिंसक न होने दे। मगर हकीकत यह है कि वक्फ कानून के मामले में ममता सरकार स्वयं एक पक्ष है। ममता दी कह रही हैं कि उनके राज्य में वक्फ कानून लागू नहीं होगा। जगजाहिर है कि उनकी पार्टी ने संसद में इस कानून का जमकर विरोध किया था। इतना ही नहीं वक्फ विधेयक पर विचार करने के लिए जो संयुक्त संसदीय समिति बनी थी उसमें भी उनकी पार्टी के सांसदों ने विधेयकों के विभिन्न प्रावधानों का विरोध किया था।

इस समिति के अध्यक्ष भाजपा के सांसद श्री जगदम्बिका पाल थे। उनकी सदारत में समिति की जो बैठकें हुईं वे भी विपक्षी पार्टियों के सांसदों के रवैये की वजह से विवादास्पद बनीं। इसके बावजूद समिति ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट कुछ संशोधनों के साथ लोकसभा में पेश की और इसे बहुमत से पारित किया गया।

जब यह कानून संसद में पारित हो गया तो इसका विरोध सड़कों पर करने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय में होना चाहिए था परन्तु वक्फ कानून पर राजनीतिक दलों ने जिस तरह हिन्दू-मुसलमान की राजनीति की है वह भी लोकतन्त्र में स्वीकार नहीं की जा सकती। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया है कि यह कानून प. बंगाल में लागू नहीं होगा। ममता दी का यह कथन केवल राज्य के मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के अलावा और कुछ नहीं है वरना वह कानून को सर्वोच्च न्यायालय की परीक्षा के लिए छोड़ देतीं। माना कि राज्य में मुस्लिम जनसंख्या 30 प्रतिशत के आसपास है मगर इसका मतलब यह कैसे हो सकता है कि ममता दीदी उस कानून को स्वीकार करने से इन्कार कर दें जो भारत की संसद ने बनाया है। बेशक उनकी पार्टी के सांसदों ने इस कानून का संसद के भीतर चली बहस में विरोध किया था मगर संसद में हर फैसला बहुमत के आधार पर ही होता है। हमारी संसदीय प्रणाली में सरकार के किसी भी काम की आलोचना करने का अधिकार विपक्ष को होता है मगर अन्ततः उन्हें बहुमत का निर्णय ही मानना पड़ता है।

अतः जब तक सर्वोच्च न्यायालय वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटरा नहीं करता है तब तक कानून यथा रूप में ही लागू रहेगा। मुसलमान नागरिक यदि इसका विरोध कर रहे हैं तो उन्हें भी इसी दायरे में सोचना होगा लेकिन मुस्लिम राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ इस कानून को असंवैधानिक और मुसलमानों के वाजिब हक छीनने वाला बताकर मुस्लिम नागरिकों में रोष पैदा करना चाहते हैं जिसे किसी भी हालत में कबूल नहीं किया जा सकता। 2013 में संसद द्वारा संशोधित किया गया वक्फ कानून वक्फ बोर्डों को बेहिसाब अधिकार इस प्रकार से देता था कि वक्फ जिस जमीन को भी चाहे वक्फ की जमीन घोषित कर सकता था। 2013 के बाद से 2023 तक वक्फ की सम्पत्तियों में 13 लाख एकड़ से भी अधिक का इजाफा हुआ और कुल सम्पत्तियां बढ़कर 39 लाख एकड़ से भी ज्यादा हो गईं।

वक्फ बोर्डों की इस मनमानी को रोकने के लिए ही मोदी सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन किया मगर मुस्लिमों की राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ चाहते हैं कि भारत के मुसलमान धर्म के दायरे से बाहर जाकर सोचें ही नहीं इसलिए वे उन्हें धार्मिक सीमाओं में ही कैद रखना चाहते हैं और जो लोग मुसमानों को प्रगतिशील बनाना चाहते हैं उनका विरोध करते हैं। जरा एेसे नेताओं से यह पूछा जाये कि कोई भी धर्म क्या अपने साथ किसी भी देश में जमीन-जायदाद लेकर आता है ?

भारत तो धर्म के आधार पर ही 1947 में अपने दो टुकड़े कराये बैठा है। भारतीयों ने 1947 में अपने दो टुकड़े कराके ही पाकिस्तान का निर्माण किया था। पाकिस्तान को दी गई जमीन क्या भारतीयों की नहीं थी? क्या इससे भी बड़ा कोई वक्फ हो सकता है। वक्फ की जमीनों पर जिस तरह पांच सितारा होटल और रिहायशी अपार्टमेंट व दुकानें आदि बनाई गईं उनका कितना लाभ भारत के मुसलमानों को हुआ? इसका जवाब कोई देने को ही तैयार नहीं है। वक्फ का मतलब दान ही होता है जिसमें आम भारतीय मुसलमान भी अपनी जमीन वक्फ करता है। यह वक्फ का प्राथमिक कार्य है कि वक्फ में की गई जमीनों का इस्तेमाल गरीब मुसलमानों या आमजनों के कल्याण के लिए हो। मगर क्या कयामत है कि साढे़ नौ लाख करोड़ रुपए की वक्फ की कुल सम्पत्तियों से केवल 166 करोड़ की ही सालाना आमदनी होती है।

उस पर तुर्रा यह कि सरकार मुस्लिमों के मामले में हस्तक्षेप कर रही है। लोकतन्त्र में लोगाें की चुनी हुई सरकार ही सम्पत्तियों की संरक्षक होती है और ममता दी कह रही हैं कि नया वक्फ कानून उनके सूबे में लागू नहीं होगा। बेशक भूमि या जमीन के मामले राज्यों का विषय होते हैं लेकिन केन्द्र द्वारा इस बाबत बनाये गये कानूनों को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − sixteen =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।