मतदाता और राष्ट्रपति चुनाव - Punjab Kesari
Girl in a jacket

मतदाता और राष्ट्रपति चुनाव

अगले महीने 24 जुलाई को देश के वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद पदमुक्त हो जायेंगे अतः इस दिन

अगले महीने 24 जुलाई को देश के वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद पदमुक्त हो जायेंगे अतः इस दिन से पहले नये राष्ट्रपति को चुनने की प्रक्रिया को चुनाव आयोग ने प्रारम्भ कर दिया है। नामांकन पत्र भरने से लेकर अन्य सभी औपचारिकताओं के पूरा होने के बाद 18 जुलाई को मतदान होगा और 21 जुलाई को परिणाम घोषित कर दिया जायेगा। भारत की संसदीय प्रणाली की शासन व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद विशिष्ट महत्ता रखता है। यह राजप्रमुख का पद देश की सैन्य व्यवस्था से लेकर संसदीय व्यवस्था तक का प्रमुख होता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने राष्ट्रपति की गरिमा प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में चलने वाली मन्त्रिमंडलीय शासकीय प्रणाली में इस प्रकार निश्चित की है कि वह राजप्रमुख के रूप में अपना कार्य पूर्णतः अराजनीतिक व्यक्ति के रूप में कर सकें क्योंकि संसदीय प्रणाली के तहत प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में चलने वाली सरकार राजनीतिक दल या विभिन्न दलों के गठबन्धन की ही होती है। बेशक भारत ने आजादी के बाद ब्रिटेन की द्विसदनीय संसदीय प्रणाली अपनाई मगर इस देश की भांति अपने राजप्रमुख को वंशानुगत व्यवस्था से दूर रखते हुए सीधे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से जोड़ा और हर पांच साल बाद इसके चुनाव की एेसी पद्धति नियत की जिसमें भारत के आम वयस्क मतदाता की भागीदारी परोक्ष रूप से हो सके। नव स्वतन्त्र भारत राष्ट्र के लिए यह एक बहुत बड़ा कदम था।
 राष्ट्रपति चुनाव की प्रणाली को लेकर संविधान सभा में बहुत गरमा-गरम बहस भी हुई थी और कुछ विद्वान सदस्यों ने चुनाव प्रत्यक्ष अर्थात आम मतदाता के वोट से कराने का सुझाव भी रखा था जिसे बहुमत ने अस्वीकार कर दिया था और इस बारे में पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा रखे गये परोक्ष चुनाव प्रणाली प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। इसमें राज्य विधानसभाओं में चुने गये सदस्यों के साथ ही लोकसभा व राज्यसभा के चुने हुए सदस्यों को राष्ट्रपति चुनाव में मत देने के लिए अधिकृत किया गया था। यह काम इस प्रकार किया गया कि राज्यों के विधायकों व सांसदों के मतों का मूल्य बराबर-बराबर हो। इस नियम से परोक्ष रूप से देश के सभी वयस्क मतदाता राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेते हैं और राष्ट्रपति उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः यह स्पष्ट होना चाहिए कि भारत एेसा अनूठा लोकतान्त्रिक देश है जिसके राजप्रमुख (राष्ट्रपति) और शासन प्रमुख (प्रधानमन्त्री) दोनों का ही चुनाव आम जनता करती है।
हालांकि प्रायः यह समझा जाता है कि जो दल भी केन्द्र में सत्ता में होता है उसका प्रत्याशी ही चुनाव जीत जाता है मगर भारत की बहुराजनीतिक दलीय व्यवस्था को देखते हुए इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती क्योंकि राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं या हो सकती हैं। इस सन्दर्भ में 1969 के ऐतिहासिक राष्ट्रपति चुनाव का संज्ञान लिया जाना बहुत स्वाभाविक है। इस वर्ष चुने गये राष्ट्रपति स्व. वी.वी. गिरी मात्र 15 हजार के मतों के अन्तर से सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रत्याशी स्व. नीलम संजीव रेड्डी से जीत गये थे। मगर श्री गिरी को भी व्यावहारिक दृष्टि से कांग्रेस का उम्मीदवार ही कहा जा सकता है क्योंकि तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने स्व. नीलम संजीव रेड्डी के नाम का प्रस्ताव करने के बाद मतदान से केवल एक दिन पहले ही सभी कांग्रेसी विधायकों व सांसदों से अपील की थी कि वे अपनी ‘अन्तर्आत्मा की आवाज’ पर वोट डालें। श्री वी.वी. गिरी उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति पद का चुनाव  स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में लड़े थे। इन्दिरा जी के इस आह्वान के बाद कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी चुनाव हार गये थे जबकि जनसंघ, स्वतन्त्र पार्टी व अन्य दलों के प्रत्याशी प्रख्यात अर्थशास्त्री स्व. सी.डी. देशमुख थे। हालांकि 1967 के राष्ट्रपति चुनाव में भी जमीनी हलचल हुई थी क्योंकि तब कांग्रेस के प्रत्याशी स्व. डा. जाकिर हुसैन के मुकाबले विपक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे स्व. कोका सुब्बाराव को अपना प्रत्याशी बनाया था।
दूसरे मार्च 1967 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस की नौ राज्यों में हार हुई थी लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव के लिए अभी तक न तो सत्तारूढ़ भाजपा ने और न ही विपक्षी दलों ने अपने प्रत्याशियों का चयन किया है। अतः यह सवाल उठना वाजिब है कि नया राष्ट्रपति कौन बनेगा। इस प्रक्रिया से ही यह परिणाम निकाला जा सकता है कि भारत में राष्ट्रपति का पद सजावटी नहीं है हालांकि वह जो भी निर्णय करते हैं वह केन्द्रीय मन्त्रिमंडल की सिफारिश पर ही करते हैं । संविधान की अनुसूची छह और सात के अन्तर्गत देश के आदिवासियों के जीवन से जुड़े मुद्दों पर उन्हें स्वयं विवेक से फैसला करने का भी अधिकार है।  संविधान निर्माताओं ने राष्ट्रपति को संविधान का संरक्षक बनाया जिसके अनुसार पूरे देश में संविधान की अनुपालना देखना उनका अधिकार होता है। यही वजह है उन्हें पद की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिलाते हैं। इतनी बेजोड़ व शास्त्रीय संवैधानिक प्रणाली हमारे पुरखे जो हमें सौंप कर गये हैं, राष्ट्रपति चुनाव उनके प्रति कृतज्ञ होकर श्रद्दानत होने का समय भी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 + 15 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।