महात्मा गांधी के देश में जब मणिपुर जैसी कोई पैशाचिक घटना होती है तो पूरी दुनिया का ध्यान उसकी तरफ इसीलिए जाता है कि 75 साल पहले अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने का जो रास्ता गांधी ने भारतवासियों को दिखाया था उसमें आपसी द्वेष व नफरत के लिए कोई जगह नहीं थी और इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए गांधी ने अपने प्राणों की आहुति भी दे दी थी। 1947 की आजादी की बेला में जब यह देश हिन्दू-मुसलमान के नाम पर हिंसा से जल रहा था तो गांधी जी ने ही अकेले बंगाल में जाकर अपनी अहिंसा के बूते पर हजारों लोगों का कत्ल होने से बचा लिया था और तब के भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माऊंट बेटन को भी कहना पड़ा था कि मुझे भारत के पूर्वी इलाके की कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि वहां एक अकेले आदमी की सेना दंगों को रोकने में सक्षम है। मगर मुझे पश्चिमी भारत (पंजाब) की चिन्ता है जहां सेना की बटालियनें हिन्दू-मुस्लिम फसाद रोकने का यत्न कर रही हैं। दुर्भाग्य यह है कि हमारे पास कोई गांधी नहीं है और हो भी नहीं सकता क्योंकि प्रख्यात वैज्ञानिक आइनस्टाइन ने महात्मा गांधी से अमेरिका में मुलाकात के बाद कहा था कि ‘आने वाली पीिढ़यां इस बात पर हैरत करेंगी कि कभी हाड़-मांस का बना कोई व्यक्ति गांधी भी इस धरती पर पैदा हुआ था’।
मणिपुर के मुद्दे पर भारत की संसद में जो कुछ चल रहा है उसे पूरे भारतवासी अपनी खुली आंखों से देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि राजनीति किस कदर संवेदनहीनता की हदें लांघती है? मणिपुर में जो कुछ भी पिछले तीन महीने में हुआ है वह पूर्वोत्तर की जन जातीय संस्कृति में एेसा सुराख करने का प्रयत्न है जिसे भरने में कितना समय लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि महिलाओं को नग्न करके परेड कराना इन राज्यों की संस्कृति कभी नहीं रही है। मगर गांधी ने इस देश के लोगों को जो संस्कार दिये हैं उनका अंश अभी भी कहीं न कहीं बाकी है। हालांकि विपक्षी दलों के गठबन्धन ‘इंडिया’ में शामिल राजनैतिक दलों ने यह कदम बहुत देर से उठाया है कि उनके 21 प्रतिनिधि सांसदों को इस राज्य का दौरा करके वहां के लोगों के घावों पर मरहम लगाना चाहिए परन्तु उनका यह प्रयास स्वागत योग्य है क्योंकि दुख की इस घड़ी में मणिपुरवासियों तक यह सन्देश जाना चाहिए कि उनके दुख के समय में पूरा भारत उनके साथ खड़ा हुआ है। इससे पहले कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी ही एकमात्र एेसे राष्ट्रीय राजनेता थे जो मणिपुर का दौरा करके आये थे और उन्होंने पीिड़त लोगों से मुलाकात करके उन्हें ढांढस बंधाने का काम किया था। मगर तब तक मणिपुर का वह वीडियो नहीं आया था जिसमें दो कुकी औरतों को नग्न करके भीड़ ने उनके साथ बाद में सामूहिक बलात्कार भी किया था।
इस घटना के सार्वजनिक होने के बाद पूरा देश सकते में आ गया था और विचार करने लगा था कि क्यों लोकतान्त्रिक भारत के किसी राज्य में एेसी घटना किसी संविधान के हिसाब से चुनी गई सरकार के साये में हो सकती है? इसी मणिपुर में वह घटना भी हुई जिसमें कारगिल युद्ध के एक वीर सैनिक की युवा पत्नी को भी दरिन्दगी का शिकार बनाया गया और उस वीर सैनिक को कहना पड़ा कि मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में तो सफल रहा मगर पत्नी की रक्षा नहीं कर सका। मणिपुर की घटनाएं सामान्य कानून- व्यवस्था को तोड़ने की घटनाएं नहीं हैं बल्कि ये सुनियोजित तरीके से पुलिस थानों से ही हथियार लूट कर उनका प्रयोग एक जनजाति के लोगों द्वारा दूसरी जनजाति के लोगों पर कहर बरपा करने की हैं। राज्य में संवैधानिक ढांचा ही समाप्त होने का स्वतःस्फूर्त संज्ञान देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय ने एेसे ही नहीं लिया है वरना हम रोज सुनते रहते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में महिलाओं से बलात्कार के कांड होते हैं।
कल ही मध्यप्रदेश के सतना जिले के ‘मैहर’ में स्थित मां शारदा के प्रतिष्ठित व लाखों लोगों की श्रद्धा के प्रतीक मन्दिर के दो कर्मचारियों ने एक 11 वर्ष की कन्या के साथ बलात्कार किया। ऐसे मामलों में पुलिस तुरन्त कार्रवाई करती है चाहे घटना किसी भी राज्य की हो। मगर मणिपुर में तो सुनियोजित सांस्थनिक तरीके से महिलाओं को जनजातीय संघर्ष का औजार बना कर उनके साथ दरिन्दगी की गई जिसने दुनिया के ‘काले इतिहास’ के दौर की यादें ताजा कर दीं। मणिपुर में अभी भी राज्य सरकार काम कर रही है और इसका मुख्यमन्त्री अपने पद पर विराजा हुआ है जबकि राजधानी इम्फाल में ही एक केन्द्रीय राज्यमन्त्री का घर फूंक दिया गया। अतः सवाल सत्ता से पूछे जा रहे हैं। लोकतन्त्र का कायदा भी यही होता है कि हमेशा सवाल सत्ता से ही पूछे जाते हैं। मगर इंडिया दलों के सांसदों का यह फर्ज बनता है कि वे जमीन पर पूरे हालात का जायजा लेकर बिना किसी राजनैतिक लाग-लपेट के सरकार को जन-जातीय हिंसा के उपजने के कारणों के बारे में बताये और अपने दो दिन के मणिपुर प्रवास में मैतेई व कुकी-जोमो जनजातीय लोगों के बीच आपसी प्रेम व सौहार्द बनाने की अपील करें। भारत हम सबका है जिसमें मणिपुर के लोग भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने की उत्तर प्रदेश के। मगर चिन्ता की बात यह है कि 40 लाख से भी कम आबादी वाले राज्य में यहां की चुनी सरकार जन-जातीय हिंसा के सुनियोजित प्रयासों को नहीं रोक पाई। इस समस्या का एक और आयाम आर्थिक भी हो सकता है। जिसके मूल में वह पहाड़ी जमीन है जिसमें अधिसंख्य कुकी व नगा समुदाय के लोग रहते हैं।