अमेरिकी रक्षामंत्री का भारत दौरा - Punjab Kesari
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अमेरिकी रक्षामंत्री का भारत दौरा

संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का बहुत शक्तिशाली देश है और उसके इशारे पर ही पलभर में समीकरण बदलते

संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का बहुत शक्तिशाली देश है और उसके इशारे पर ही पलभर में समीकरण बदलते हैं। द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व जिन दो गुटों में बंटा था उनमें से एक गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया था और दूसरे का नेतृत्व सोवियत संघ ने किया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत और अमेरिका के संबंध मधुर नहीं रहे। दोनों देशों के संबंध 2001 तक विभिन्न मुद्दों पर तनावपूर्ण ही रहे। दोनों देशों के मधुर संबंधों की शुरूआत 2005 में भारत-अमेरिका में हुए असैन्य परमाणु समझौते से हुई। आज भारत और अमेरिका के संबंध काफी मधुर हैं और अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड जे ऑस्टिन अपनी अधिकारिक यात्रा पर दिल्ली पहुंच चुके हैं। जनवरी 2021 में रक्षामंत्री का पदभार सम्भालने के बाद यह उनकी दूसरी भारत यात्रा है। उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य रक्षा साझेदारी को मजबूत करना, नए रक्षा इनोवेशन और औद्योगिक सहयोग की पहल को आगे बढ़ाना और भारतीय सेनाओं के बीच परिचालन सहयोग का विकास करने के प्रयासों को जारी रखना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका दौरे के ठीक पहले वहां के रक्षामंत्री का भारत दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 
इसी बीच एक शक्तिशाली कांग्रेस कमेटी ने भारत को शामिल कर नाटो प्लस को मजबूत करने की सिफारिश की है। यह कदम चीन को डराने की अमेरिकी चाल का हिस्सा है। लॉयड आस्टिन की कल रक्षामंत्री राजनाथ से मुलाकात होगी। अगर इतिहास को देखा जाए तो अमेरिका रक्षा मामलों में कभी भी कसौटी पर खरा नहीं उतरा। अमेरिका के बारे में यह मशहूर है कि वह अपने हितों को हमेशा सर्वोपरि रखता है। 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने कश्मीर के सवाल पर हमेशा पाकिस्तान का समर्थन किया तथा भारत का विरोध किया। भारत द्वारा अपनाई गई गुटनिरपेक्ष नीति से भी अमेरिका नाराज रहा। 1965 तथा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की हर तरह से मदद की। उसकी सैन्य शस्त्र और डॉलरों से सहायता की। 1971 में भारत ने जब सोवियत संघ के साथ 20 वर्षीय मैत्री संधि की तो अमेरिका ने भारत से नाराजगी जताई थी। परमाणु अप्रसार संधि को लेकर भी वह भारत पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालता रहा है लेकिन भारत ने कभी उसका दबाव नहीं माना। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1998 में सरकार बनी और भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किए तो अमेरिका ने भारत पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए। धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलती गईं और दोनों देशों के संबंधों में काफी विस्तार हुआ। अब दोनों देशों में सहयोग काफी बढ़ा है और रक्षा क्षेत्र में संबंधों के विस्तार में लगातार बढ़ौतरी हो रही है।
असैन्य परमाणु समझौते (2005) के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2008 में चार निर्यात नियंत्रण व्यवस्था समूहों को भारत की सदस्यता का समर्थन किया। तब से भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) को छोड़कर वासेनार समझौते, ऑस्ट्रेलिया समूह एवं मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का सदस्य बन गया है। आर्थिक क्षेत्र में संबंधों को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी ट्रेजरी सचिव टिमोथी गेथनर ने 2010 में अपनी भारत यात्रा के दौरान तत्कालीन भारतीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ अमेरिका-भारत आर्थिक तथा वित्तीय भागीदारी शुरू की। मंत्री स्तरीय बैठकों में दोनों देशों के बीच मजबूत द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों की नींव रखी गई। भारत और अमेरिका ने भी अपनी पहली सामरिक वार्ता (2010) में आपसी सुरक्षा और आर्थिक बदलावों को शामिल किया। तब से भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर देते हुए साइबर सुरक्षा, बैंकिंग और ऊर्जा क्षेत्र पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों राष्ट्रों ने सुरक्षा सिद्धांतों की स्थापना की जो 2015 में एशिया प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए संयुक्त सामरिक विजन की घोषणा करके संबंधों को निर्देशित करने में मदद करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में दोस्ती और परवान चढ़ी। अनेक मुद्दों पर दोनों की राय एक समान रही। चाहे वह आतंकवाद का मुद्दा हो या फिर चीन का। अमेरिका और भारत अब रणनीतिक साझेदार हैं। अमेरिका से कई रक्षा समझौते भी किए गए। बदलती दुनिया में अमेरिका को भारत की जरूरत है। भारत के बढ़ते महत्व को देखते हुए उसे भारत की जरूरत है आैर चीन के बढ़ते दबदबे को देखते हुए उसे भारत का साथ चाहिए। भारत हथियारों के लिए भी एक बड़े बाजार का प्रतिनिधित्व करता है। आतकंवाद के खिलाफ भी दोनों के हित काफी साझा हैं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह काफी परिपक्व राजनीतिज्ञ हैं और उन्हें अमेरिका के संबंधों का काफी अनुभव है। कई बार ऐसा महसूस होता है कि वह चीन का मुकाबला करने के लिए  भारत के कंधे का इस्तेमाल करना चाहता है। उसने अफगानिस्तान में भी अपने हित साधने के लिए भारत का इस्तेमाल करने की कोशिश की थी। रूस से मैत्रीपूर्ण संबंधों को लेकर भी अमेरिका ने भारत पर काफी दबाव डाला था। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए भारत के रक्षा संबंधों में काफी सतर्कता बरतनी होगी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने होंगे।

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