पिछले कुछ समय से यूके में खालिस्तानी गतिविधियों में निरन्तर बढ़ौतरी देखी जा रही है जिसके चलते यूके की सरकार पर खालिस्तानियों के प्रति सख्त रवैया अपनाने के लिए दबाव बढ़ रहा है। हाल ही में यूके के चैरिटी कमीशन ने स्लाउघ गुरुद्वारा साहिब से खालिस्तानी सर्मथन वाले बैनर तुरन्त हटाने के लिए समय सीमा तय कर दी है। जिसे देखकर लगता है कि अब यूके की सरकार खालिस्तानियों के प्रति अपने रवैये को सख्त करते हुए आने वाले समय में उन पर कठोर कार्यवाही कर सकती है। साल 2019 में एक भारतीय पत्रकार लोवीना टोंडन ने इस गुरुद्वारा साहिब के दर्शनों के दौरान पाया था कि गुरुद्वारा साहिब में खालिस्तानी बैनर जगह-जगह पर लगे हुए थे जिसकी शिकायत उसने चैरिटी कमीशन के पास की थी जिसके बाद चैरिटी कमीशन हरकत में आया और उसके बाद से अनेक बैठकें गुरुद्वारा साहिब की कमेटी और कमीशन के बीच हुई। गुरुद्वारा कमेटी हालांकि लगातार खालिस्तानियों के प्रति नरम रुख अख्तियार किऐ हुए थी बावजूद इसके चैरिटी कमीशन ने उनकी मांग को नजरअंदाज करते हुए अपना फैसला दिया है जिसके बाद गुरुद्वारा साहिब से खालिस्तानी बैनर जल्द हटाने होंगे।
वहीं देखा जा रहा है कि पिछले कुछ माह में भारत में पुनः खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ने लगी हैं। रामनवमी पर इनके द्वारा पंजाब के मन्दिरांे पर हमला करने की तैयारियां की जा रही थी जिसमें इन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी। अब इनके मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू के द्वारा डा. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को नुक्सान पहुंचाने की धमकी दी गई है जिसके बाद से पंजाब ही नहीं जम्मू-कश्मीर में भी दलित भाईचारे के द्वारा खालिस्तानी नेता पन्नू के पुतले तक फूंके जा रहे हैं। भाजपा नेता मनोरंजन कालिया के निवास पर ग्रेनेड हमले के पीछे भी खालिस्तानियों का हाथ होने का अंदेशा लगाया जा रहा है। कई नेताओं के द्वारा खालिस्तानियों को सीधी चुनौती दी है कि अगर उनमें हिम्मत है तो भारत में आकर बाबा भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को छूकर दिखाएं। स. बिट्टा का यह भी कहना है कि सभी देशों की सरकारों को चाहिए कि जो लोग खालिस्तानी गतिविधियों में लिप्त दिखाई दें उन पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।
वक्फ संशोधन बिल पर अकाली सांसद को एतराज क्यों?
देश की संसद में वक्फ संशोधन बिल पास होने से मुस्लिम समाज के लोगों को इतना एतराज नहीं होगा जितना कि अकाली दल के नेताओं को होता दिख रहा है। अकाली नेता अब सिख समाज के लोगों को भ्रमित करते दिख रहे हैं कि आने वाले समय में उनके लिए भी इस तरह का बिल सरकार ला सकती है। मगर ऐसा कतई संभव नहीं हो सकता क्योंकि सिख समाज के धार्मिक स्थलों की कोई भी संपत्ति वक्फ बोर्ड की भान्ति नहीं है और दूसरी बात यह कि इस कानून को जिसने भी ध्यानपूर्वक पढ़ा है उसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि जिसे वैध रूप से वक्फ की संपत्ति घोषित किया गया है उस पर किसी तरह की कार्यवाही नहीं होगी। किसी भी मुस्लिम की व्यक्तिगत जमीन अधिग्रहित नहीं की जाएगी। वक्फ की जमीनों का सर्वेक्षण होगा और जिला क्लैक्टर के द्वारा पूरी जांच की जाएगी और अवैध पाए जाने के बाद ही कार्यवाही होगी। किसी भी मस्जिद यां कब्रिस्तान की जमीन अगर वह अवैध या सरकारी कब्जे पर नहीं है तो उसे छेड़ा नहीं जाएगा।
अकाली सांसद हरसिमरत कौर बादल के द्वारा संसद में चीख चीख कर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला गया और वक्फ बिल की खामियां बताई गई। जानकारों की मानें तो यह बौखलाहट सिर्फ इसलिए है क्यांेकि मौजूदा समय में वह सरकार का हिस्सा नहीं हंै। इससे पहले जब किसानी बिल संसद में पास हुआ था तो उस समय वह सरकार का हिस्सा थी इसलिए उन्होंने किसानी बिल को किसानों के लिए लाभप्रद बताया था। इतना ही नहीं उन्हांेने अपने ससुर मरहूम प्रकाश सिंह बादल से भी इसके हक में बयान दिलवाया था मगर जब से उन्होंने सरकार से अपने को अलग किया तो किसानी बिल की खामियां गिनवाने में लग गई। आज भी अगर वह सरकार का हिस्सा होती तो निश्चित तौर पर वक्फ बिल को भी मुस्लिम समाज के प्रति लाभदायक बताती दिख रही होती।
जत्थेदार अकाल तख्त को समूचे पंथ की मान्यता नहीं
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की पदवी सिख पंथ में सर्वोच्च मानी जाती है और उनके द्वारा दिये गये हर फैसले को सिख मानने के लिए मजबूर होते हैं मगर कुछ राजनीतिक लोगों ने सिर्फ अपने निजी स्वार्थों के लिए इस पदवी का मजाक बनाकर रख दिया है। सिखों के एक गुट के द्वारा केवल एक परिवार को लाभ पहुंचाने हेतु पंथक मर्यादा को दरकिनार कर एक शख्स को अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के पद पर बिठाकर रात के अन्धेरे में बिना गणमान्य धार्मिक शख्सीयतों की मौजूदगी के उन्हें जत्थेदार बना दिया। जबकि आधे से ज्यादा सिख उन्हें जत्थेदार मानने को ही तैयार नहीं हैं इसके कई उदारहण देखने को मिल रहे हैं। बीते दिनों एक भोग समागम में जब मौजूदा जत्थेदार पगड़ी की रस्म अदा करते हुए परिवार के सदस्य को पगड़ी देने लगे तो वहां मौजूद लोगों ने उन्हें रोक दिया और साफ कहा कि आप कौम के जत्थेदार नहीं हो। मगर इसके बाद भी वह निरन्तर अपने पद का इस्तेमाल करते हुए रोजमर्रा के कार्यों को करते आ रहे हैं। हाल ही में उनके द्वारा 5 सिंह साहिबानों को एकत्र कर कई फैसले लिए गए जिस पर सवाल उठना स्वभाविक है क्योंकि आमतौर पर श्री अकाल तख्त साहिब पर होने वाली बैठक में पांच तख्तों के जत्थेदार मौजूद रहते हैं मगर इस मीटिंग में ना तो तख्त पटना साहिब और ना ही तख्त हजूर साहिब से किसी को शामिल होने का न्यौता भेजा गया था। जिसके चलते इस बैठक की कार्यवाही पर किन्तु-परन्तु होता दिख रहा है। जत्थेदार कुलदीप सिंह गढ़गज को कौम जत्थेदार के रूप में प्रवानगी दे या ना दे मगर इस पदवी का मजाक जरूर उड़ रहा है जो कि कौम के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। जत्थेदार अकाल तख्त ने रागी सिंह और प्रचारकों को विदेशों का रुख करने के बजाए पंजाब में रहकर प्रचार करने की नसीहत दी है, अगर यह हो जाता है तो कौम के लिए बेहतर होगा क्यांेकि मौजूदा समय में प्रचार की सबसे अधिक आवश्यकता पंजाब में है जहां तेजी से डेरावाद पैर पसार रहा है, धर्मान्तरण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
पंजाबियों को भाजपा सरकार से उम्मीद
दिल्ली में पंजाबी समाज के लोगों को भाजपा की रेखा गुप्ता सरकार से काफी उम्मीद लग रही है कि सरकार पंजाबियों के हित में काम करेगी और पिछली सरकार के द्वारा पंजाबियों से जिस प्रकार सौतेला व्यवहार किया गया, उनके बनते हक से उन्हें दूर रखा गया। मौजूदा सरकार पंजाबियों के सम्मान को पुनः बहाल करेगी। भाजपा से जुड़े पंजाबी नेता राजिन्दर निझावन ने सरकार से मांग की है कि सबसे पहले पंजाबी अकादमी की गवर्निंग बॉडी का नए सिरे से गठन कर उन लोगों को इसमें स्थान दें जो वाकय में ही पंजाबियों के हितों के लिए कार्य करने की क्षमता रखते हों इतना ही नहीं पिछली सरकार के द्वारा अकादमी के बजट में की गई कटौती को वापिस कर बजट सीमा बढ़ाई जाए जिससे पंजाबी भाषा के प्रचार-प्रसार को बेहतर तरीके से किया जा सके। पंजाबी टीचर्स के मुद्दे को भी ध्यानपूर्वक देखते हुए उनकी बहाली की जानी चाहिए और सैलरी में भी बढ़ौतरी होनी चाहिए।