आज श्रद्धेय गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज की प्रेरणा से सारा करनाल क्षेत्र गीतामयी हो जाएगा, सारा हरियाणा तो हो ही चुका है। स्वामी ज्ञानानन्द जी के अनुसार गीता देश, धर्म और जाति से ऊपर मानवता की धरोहर है। मैं और अश्विनी जी स्वामी ज्ञानानन्द जी की आेजस्वी प्रतिभा से प्रभावित हैं और वह भी समय-समय पर हमें गुरु की तरह, बड़े भाई की तरह मार्गदर्शन करते रहते हैं। अभी देश में बाबाओं के अधर्म से हर कोई हैरान-परेशान है। कोई व्यापारी बाबा है, कोई गलत कार्य करने वाले बाबा हैं। इनके बारे में हमें लोगों ने कहा कि यह राजनीतिज्ञ बाबा हैं, पूरी हरियाणा सरकार चलाते हैं। इनको कई एकड़ स्थान मिल गया आदि-आदि। मैंने इनको रामलीला ग्राउंड में मंच पर पूछ ही लिया कि क्या आप भी राजनीति में आना चाहते हो। बड़े लोगों के पत्र हमारे पास आते हैं, व्हाट्सएप आते हैं (क्योंकि जब से योगी आदित्यनाथ जी मुख्यमंत्री बने हैं, ऐसे अक्सर इनके लिए व रामदेव जी के लिए लिखा आता है) तो उन्होंने झट से मुझे कहा, नहीं मैं कभी सोच भी नहीं सकता न कभी आऊंगा तो मुझे अच्छा लगा कि चलो कोई तो एक संत है जो इन महत्वाकांक्षाओं से ऊपर है क्योंकि करनाल में अश्विनी जी को तभी केन्द्र से भेजना पड़ा। वहां कम से कम 10 लोग ऐसे हैं जो बहुत महत्वाकांक्षी हैं।
एक-दूसरे को गिराने की कोशिश में लगे रहते हैं। अगर उनमें से किसी एक को भी टिकट दिया जाता तो एक-दूसरे को हराने में कसर न छोड़ते क्योंकि हम अखबार वाले सबकी खबर आैर सब पर नजर रखते हैं। 13 तारीख को भूमि पूजन था। स्वामी जी का आदेश था कि 13 और 26 को हम दोनों वहां उपस्थित रहें। उनका आदेश हम दोनों कभी नहीं टालते परन्तु 13 को अश्विनी जी व्यस्त थे आैर 26 को हम दोनों के पहले से दिल्ली में प्रोग्राम तय हैं तो मैं भूमि पूजन के लिए गई। भूमि पूजन में जाकर मुझे बहुत आनन्द आया। वहां एक पारिवारिक माहौल था। सब ने बहुत अच्छी और राजनीति से परे हटकर बातें कहीं। सबके सम्बोधन भी इतने गरिमामयी और दिल को छूने वाले थे। उस दिन स्वामी ज्ञानानन्द जी का तेजस्वी चेहरा आैर ओजस्वी सम्बोधन एक घर के मुखिया की तरह था जो सबको साथ लेकर चल रहे थे। वहां की मेयर गुड़िया जैसी रेणुबाला ने सबका हंसते-मुस्कुराते हुए स्वागत किया। सामाजिक अधिकारिता मंत्री कृष्ण बेदी जी ने बहुत ही दिलचस्प सम्बोधन दिया कि आना तो राम ने था और आ गया कृष्ण (क्योंकि रामबिलास जी ने आना था) आैर उनका जन्म कुरुक्षेत्र में हुआ। शायद तभी उनके माता-पिता ने उनका नाम कृष्ण रखा आैर बहुत सी ऐसी बातें कीं जो दिल को छू रही थीं आैर बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था। स्वामी प्रेम मूर्ति पुंडरिक गोस्वामी ने प्रवचन भी ऐसे दिए, ज्ञान भी बांटा और हंसाया भी।
स्वामी ज्ञानानन्द जी ने कहा कि करनाल 26 नवम्बर को गीतामयी हो जाएगा। इस दिन विराट कार्यक्रम का आयोजन किया गया है जिसके माध्यम से गीता की गूंज पूरे देशभर में सुनी जाएगी। इस कार्यक्रम में 11 हजार विद्यार्थी श्रीमद्भागवत के 18 श्लोकों का पाठ करेंगे वहीं पर इस कार्यक्रम में 51 हजार लोग एक साथ गीता का पाठ करेंगे। मुझे गर्व है स्वामी ज्ञानानन्द जी पर जो अपना धर्म और कर्म न सिर्फ निभा रहे हैं बल्कि गीता का संदेश जिसमें कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने कहा था कि कर्म करो आैर फल की इच्छा न करो, खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाओगे, गीता प्रेरणा से गीता का संदेश हरियाणा की धरती से पूरी दुनिया तक पहुंचा रहे हैं। जिस गीता को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पढ़कर शांत रहकर अपना कर्म करने के लिए प्रेरित किया, रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी उसे अपने जीवन का अहम बिन्दू माना। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आैर चीन के अलावा यूएई जैसे मुस्लिम देशों में गीता की प्रासंगिकता को माना जा रहा है। गीता में अपने स्वाभिमान की विजय के लिए, अपने अधिकारों की विजय के लिए लड़ने की बात भी है।
जीवन में पाण्डवों जैसे परिवारों को अपनी लड़ाई लड़ने का संदेश है। मुझे कई बार लगता है अश्विनी जी को भी इस धरती पर इसीलिए बुलाया गया है कि उनको भी पाण्डवों की तरह परिवार आैर व्यापार में धोखे से निकाल दिल्ली (इन्द्रनगरी) आना पड़ा। आज गीता प्रेरणा उनको जीने की प्रेरणा देगी। शायद करनाल को उनकी कर्म भूमि बना दिया। चाहे उनका जीवन कर्ण की तरह दानी रहा। आज का भव्य उत्सव-महोत्सव कई ऐसे कर्णों को अपने कर्मों से हक की लड़ाई और कर्म करने के लिए उत्साहित करेगा। अन्त में स्वामी ज्ञानानन्द जी, सभी करनाल निवासियों और जाे भी आज इस उत्सव में उपस्थित होगा, इस उत्सव के लिए साधुवाद और मुबारकबाद देती हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि गीता प्रेरणा उत्सव अपनी उम्मीदों पर पूरा उतरेगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि स्वामी ज्ञानानन्द के इस प्रयास को स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा और हमेशा याद रखा जाएगा क्योंकि यह प्रयास राजनीति से ऊपर उठकर ज्ञान के उजाले बांटने वाला होगा क्योंकि जीवन जीने की कला सिखाती है गीता।