तिरुपति लड्डू को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। बल्कि, यह विवाद हर मिनट कोई नया मोड़ ले रहा है| लड्डू से जुड़े इस विवाद के अलावा, याचिकाकर्ता न्याय की गुहार लगा रहे हैं। अब तक, अदालत में कम से कम चार जनहित याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं, जिनमें से पहली हिंदू सेना द्वारा दायर की गई है। इस याचिका में लड्डू प्रसाद में कथित रूप से मिलाए गए मिलावटी घी, जिसमें बीफ टैलो और जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल हुआ है, की जांच के लिए एक विशेष जांच दल की मांग की गई है। एक और जनहित याचिका एक मीडिया कर्मी द्वारा दायर की गई है, जिसमें इस संभावित आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार की जांच के लिए सीबीआई या किसी अन्य स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसी की जांच की मांग की गई है। इसके अलावा, मंदिरों और धार्मिक स्थलों के प्रबंधन की पारदर्शिता और धार्मिक परंपराओं के पालन को सुनिश्चित करने के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति की मांग की गई है।
इस विवाद के केंद्र में वाई.एस. आर. कांग्रेस पार्टी भी है, जिसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसके नेता सुब्बा रेड्डी ने भी एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा निगरानी में इस विवाद की जांच की मांग की गई है। रेड्डी की याचिका ने घी में मिलावट के आरोपों को “बेतुका” करार दिया है और कहा है कि यह सभी केवल अफवायें हैं। वरिष्ठ राजनेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के “निरर्थक आरोप” की जांच करने का निर्देश देने के लिए अदालत का रुख किया है। हाल ही में, नायडू ने आरोप लगाया था कि तिरुपति तिरुमाला मंदिर के लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलाई गई है, जिससे इसकी पवित्रता पर सवाल उठ खड़ा हुआ है। नायडू की तेलुगु देशम पार्टी केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार की एक प्रमुख सहयोगी है।
स्वामी ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया गया है और इसके पीछे स्वार्थी हित हैं। इस बात पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि यह मुद्दा राजनीतिक दल जो एक-दूसरे से लड़ रहे हैं, उनके द्वारा कुछ ज़्यादा ही बढ़ा कर पेश किया गया है। यह विवाद तब भड़का जब चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि प्रयोगशाला की रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि राज्य के प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में देवता को चढ़ाए जाने वाले और फिर प्रतिदिन भक्तों को वितरित किए जाने वाले लड्डू में जानवरों और वनस्पति तेल की मिलावट है। रिपोर्ट में कहा गया था कि परीक्षण किए गए नमूनों में बीफ टैलो, सूअर की चर्बी और मछली का तेल मिला है।
यह परीक्षण गुजरात के आनंद स्थित नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की एक प्रयोगशाला -सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइव स्टॉक एंड फूड में किया गया था। स्थिति बेहद बिगड़ गई और मंदिर प्रबंधन व अधिकारी स्थिति को संभालने में जुट गए हैं लेकिन पहले लड्डू की कहानी जानते हैं। तिरुपति लड्डू, जिसे श्रीवरी लड्डू भी कहा जाता है, आंध्र प्रदेश के बालाजी मंदिर में भक्तों को दिया जाने वाला मुख्य प्रसाद है। यह मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर को समर्पित है। तिरुपति लड्डू प्रसाद में बेसन, चीनी, काजू, किशमिश, इलायची और कपूर सहित अन्य सामग्रियां होती हैं। इसे शुद्ध घी में पकाया जाता है और भक्त इसे भगवान के आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करते हैं और अपने घर ले जाकर अन्य लोगों के साथ साझा करते हैं। इस लड्डू को बनाने का श्रेय कल्याणम अयंगर को दिया जाता है। बाद में उनके परिवार ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और इसे प्रसिद्ध मंदिर का मुख्य प्रसाद बना दिया।
2001 तक, मंदिर के कर्मचारी लड्डू तैयार करते थे, लेकिन बाद में मांग बढ़ने के कारण, मंदिर प्रबंधन ने एक रसोई की स्थापना की जिसे पोटू कहा जाता है, जहां लड्डू बनाए जाते हैं। जब एक रसोई पर्याप्त नहीं थी, तो एक और रसोई बनाई गयी। तीन प्रकार के लड्डू आम तौर पर तिरुपति में प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं –अस्थानम लड्डू, कल्याणोत्सवम लड्डू और प्रोक्तम लड्डू। अस्थानम लड्डू विशेष त्यौहारों के अवसरों पर तैयार किए जाते हैं और विशेष मेहमानों को वितरित किए जाते हैं, जबकि कल्याणोत्सवम लड्डू उन लोगों को दिए जाते हैं जो विशेष धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेते हैं। दूसरी ओर, प्रोक्तम लड्डू आम भक्तों को वितरित किए जाते हैं।
नायडू का पवित्र लड्डू की शुद्धता और मिलावट के बारे में आरोप एक बड़ा झटका है और इसने बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसाद की पवित्रता पर सवाल खड़ा कर दिया है। नायडू ने अपने पूर्ववर्ती वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी पर आरोप लगाया, तो पूर्व मुख्यमंत्री ने इसका तीखा जवाब देते हुए कहा कि नायडू “झूठ बोलने के आदी” हैं। रेड्डी ने दावा किया कि उनके शासन में किसी प्रकार का उल्लंघन नहीं हुआ और कहा कि तथ्य “राजनीतिक स्वार्थों ” के लिए तोड़े-मरोड़े गए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नायडू “धार्मिकता का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं।” इस बात पर रेड्डी को समर्थन भी मिला है।
इसके अलावा, विवाद को सोच समझकर इसी वक्त उठाने पर भी सवाल किये जा रहे हैं क्यूंकि प्रयोगशाला की रिपोर्ट जुलाई में आ गयी थी। फिर नायडू ने इसे सितंबर तक क्यों ठंडे बस्ते में रखा? राज्य कांग्रेस अध्यक्ष वाई.एस. शर्मिला ने यही सवाल उठाया : “जब सरकार को जुलाई में ही प्रयोगशाला रिपोर्ट मिल गई थी, तो नायडू ने इसे सार्वजनिक करने में इतना समय क्यों लिया?” उन्होंने आरोप लगाया कि यह “राजनितिक मतलब के लिए किया गया है।’’
शर्मिला ने यह सवाल नहीं उठाया कि जुलाई से सितंबर तक क्या प्रदूषित लड्डू तीर्थयात्रियों को परोसे जा रहे थे और क्या प्रसाद को “शुद्ध” करने के लिए कोई कदम उठाए गए, और अगर हां, तो क्या समय रेखा थी? यह पूरा विवाद राजनीतिक प्रतिशोध लेने के लिए खड़ा किया गया है। रेड्डी और अन्य लोग नायडू की आलोचना कर रहे हैं कि वह अपने शासन के पहले 100 दिनों में किए गए वादों को पूरा करने में असफल रहे हैं और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।
भले ही यह राजनीति हो लेकिन सच्चाई यह है कि यह बेहद ही ख़राब राजनीति है। आस्था और धर्म को राजनीति से ऊपर होना चाहिए, और जब इस पर सवाल उठते हैं, तो हर एक भक्त की आस्था डगमगा जाती है। इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता। इसलिए जब याचिकाकर्ता और सांसद सुब्बा रेड्डी कहते हैं कि नायडू के आरोपों ने देवता की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है और भक्तों की भावनाओं को आहत किया है, तो वह सही हैं। राजनीति करने की नायडू की प्रवृत्ति के समर्थक हो सकते हैं, लेकिन धर्म को इस प्रतिस्पर्धा में घसीटना एक परिपक्व नेता के लिए अनुचित है। अगर यह चुनावी समय के आसपास होता, तो राजनीतिक दबावों को समझा जा सकता था, भले ही फिर भी इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन सत्ता संभाले अभी कुछ ही महीने हुए हैं, और इस वक्त उन्हें राज्य में सुधार के लिए काम करना चाहिए। नायडू ने जून में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
जैसा कि वरिष्ठ राजनीतिज्ञ स्वामी ने कहा, यह मामला आंतरिक रूप से सुलझा लिया जाना चाहिए था, न कि सार्वजनिक रूप से उछाला जाना चाहिए था। लेकिन राजनीति अपने अंक बढ़ाने के बारे में है, और नायडू अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रेड्डी को बदनाम करने का यह मौका कैसे जाने दे सकते थे? यह तय है कि उन्होंने इस मौके का पूरा फायदा उठाया है। और जब भाजपा भी इसमें कूद पड़ी, तो उन्हें पर्याप्त समर्थन मिल गया।
जैसा कि सर्वविदित है, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने आंध्र प्रदेश सरकार से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी और उसकी जांच के बाद उचित कार्यवाही करने का वादा किया। यह सही हो सकता है, लेकिन इस पूरे विवाद ने मंदिर प्रबंधन को संकट में डाल दिया है। इससे भी बुरी बात यह है कि इसने भक्तों की आस्था को हिला दिया है। वही लड्डू, जिसे वे पसंद करते थे और जिसे पाने के लिए हाथ बढ़ाते थे, अब एक तरह से संदिग्ध हो गया है। और यह कहना गलत नहीं होगा कि जब भी कोई इसे पाने के लिए अपने हाथ बढ़ाएगा, तो यह प्रश्न स्पष्ट रूप से उसके दिमाग में आयेगा, क्या यह शुद्ध है? और इससे भी महत्वपूर्ण बात कि क्या यह शाकाहारी है?
– कुमकुम चड्ढा