शी जिनपिंग की तीसरी ताजपोशी के खतरे - Punjab Kesari
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शी जिनपिंग की तीसरी ताजपोशी के खतरे

गुुफा में रहकर लालटेन में पढ़ने वाले शी जिनपिंग चीन के सर्वाधिकार संपन्न तीसरी बार शासक बन गए

गुुफा में रहकर लालटेन में पढ़ने वाले शी जिनपिंग चीन के सर्वाधिकार संपन्न तीसरी बार शासक बन गए हैं। चीन के इतिहास में कम्युनिस्ट हुकूमत के संस्थापक माओ से भी अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे जिनपिंग का पार्टी और चीन की सत्ता पर जबरदस्त नियंत्रण स्थापित हो गया है। कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस यानि सीसीपी की बैठक से देश के पूर्व राष्ट्रपति  हू जिन्ताओ को जिस तरह से जबरन बाहर निकाला गया और जिस तरह से चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग समेत चार महत्वपूर्ण  लोगों को हटाया गया उससे साफ है कि शी जिनपिंग ने एक-एक करके अपने विरोधियों को ठिकाने लगा दिया है। शी जिनपिंग माओ से तुंग के जुल्मों के बीच नेता बनकर उभरे। दरअसल वह जुल्मों के बीच तपकर शीर्ष मुकाम तक पहुंचे। शी जिनपिंग 2012 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बने और बतौर राष्ट्रपति पद की शपथ ली। सत्ता में आते ही उन्होंने चीन के कई कानूनों में बदलाव किया और सख्त कानूनों को लागू किया। तब से आज तक उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शी जिनपिंग की तीसरी बार ताजपोशी को लेकर दुनिया भर में खलबली मची हुई है। जिनपिंग की ताजपोशी अमेरिका जैसे सुपर पावर मुल्क को नश्तर की तरह चुभ रही है। जापान से ताइवान और दक्षिण कोरिया से लेकर हांगकांग तक सब तनाव में हैं। निरंकुश तानाशाह बन चुके शी जिनपिंग की ताजपोशी भारत के साथ-साथ पूरी ​दुनिया को प्रभावित करेगी।
भारत ने 1962 युद्ध के बाद चीन की दादागिरी देखी है और सीमा विवाद को लेकर भारत चीन में इस समय संबंध अच्छे नहीं हैं। जिनपिंग के सत्ता में रहते हुए भी एलएसी पर पहली बार हिंसक झड़प हुई। इसी के साथ 40 साल में पहली बार एलएसी पर गोली चली। सर्दियों में भी एलएसी पर फौज तैनात रही। लद्दाख से अरुणाचल तक चीन साजिशें करता रहा। वहीं 2020 में गलवान में चीनी सैनिकों पर गर्दन तोड़ प्रहार के बाद कई बार टकराव की स्थिति बनी। भारत ने भी पहली बार चीन का कड़ा प्रतिरोध किया जिसकी उम्मीद चीन को भी नहीं थी। 16 दौर की बातचीत के बाद पूर्वी लद्दाख के कुछ बि​न्दुओं से दोनों देशों की सेनाएं वापस लौटी लेकिन अभी भी पहले जैसी स्थिति स्थापित नहीं हुई है। लद्दाख से पेगोंग लेक तक पुल बनानेे, सीमा के निकट गांव बसाने तथा सरहद के पास रेल नेटवर्क तैयार करना चीन की ​साजिशों का सबूत है।
भारत पर दबाव बनाने के लिए शी जिनपिंग एलएसी पर तनाव बढ़ा सकते हैं। जिसके लिए भारत को पहले से कहीं अधिक सतर्क रहना होगा। शी जिनपिंग ने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार करने की भी ठानी है। चीन के परमाणु हथियार बनाने से दुनिया भर में हथियारों की दौड़ बढ़ेगी। अमेरिका और रूस के पास पहले ही काफी अधिक परमाणु अस्त्र-शस्त्र हैं। इससे अमेरिका और चीन में टकराव बढ़ेगा। तनाव का एक बड़ा कारण ताइवान पर चीन की नजर है। चीन ताइवान पर अपना हक जताता आया है। चीन की सेना के फाइटर ताइवान की फिजांओं में दहशत फैलाते रहते हैं। दूसरी तरफ अमेरिका और ताइवान के रिश्ते काफी गहरे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कई बार कह चुके हैं कि चीन के हमले की स्थिति में अमेरिका ताइवान की रक्षा करेगा। सीपीसी की बैठक में शी जिनपिंग ने दो टूक ऐलान कर दिया है कि चीन ताइवान में विदेशी दखल बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा। ताइवान को लेकर टकराव बढ़ सकता है और हो सकता है कि चीन ताइवान में आर्मी एक्शन करे। अमेरिका भी सीधे युद्ध में उलझना नहीं चाहेगा क्योंकि वह पहले भी कई बार अपने हाथ जला चुका है। इस समय चीन और रूस साथ-साथ हैं और दोनों देशों से निपटना बाइडेन के बस की बात नहीं है। तनाव की वजह साउथ चाइना भी है। साउथ चाइना सी 35 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। समुद्र के इस टुकड़े पर करीब 250 छोटे-बड़े इलाके हिन्द और प्रशांत महासागर के बीच हैं, जो चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई आदि से घिरा है। सैकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक साउथ चाइना सी के इस पूरे इलाके जापान के पास थे। जापान जंग हारा तो चीन ने समुद्र के इस टुकड़े पर कब्जा जमा लिया।
दशकों से चीन साउथ चाइना सी पर अपना दावा ठोकता आया है। चीन के लिए समुद्र का ये टुकड़ा यूं ही अहम नहीं इसके पीछे ठोस आर्थिक वजह हैं। एक वजह है साउथ चाइना के वो खनिज जिन पर चीन गिद्द की नजर दशकों से लगाये बैठा है। जिसे लेकर साउथ चाइना सी में चीन को अमेरिका की मौजूदगी भी अखरती रही है। दशकों से चीन की दावेदारी साउथ चाइना सी की लहरों पर दुनिया देखती और झेलती आई है, खासकर जिनपिंग सत्ता में आने के बाद साउथ चाइन सी में बारूद और धधकाता रहा है। जिनपिंग की ताजपोशी से ये आक्रामकता और बढ़ सकती है, ऐसा इसलिए क्योंकि साउथ चाइना सी में किसी का दखल नहीं चाहता। इसकी वजह भी हैं। दुनिया में होने वाले व्यापार का 80 फीसदी इसी समुद्री मार्ग से होता है। आने वाले दिनों में चीन पाकिस्तान में अपनी गतिविधियों को और तेज कर सकता है और वहां आर्थिक गलियारे को पूरा कर सकता है। चीन एक बार फिर भारत के पड़ोसी देशों श्रीलंका भूटान और बंगलादेश में अपने पांव पसार सकता है। हिन्द महासागर में उसका हस्तक्षेप बढ़ सकता है। देखना होगा कि भविष्य में वैश्विक समीकरण क्या रूप लेते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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