विपक्षी दलों की भाजपा के खिलाफ लामबन्दी में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि क्षेत्रीय दलों के अपने हित इस कदर संकीर्णता व संकुचिता के घेरे में फंसे हुए हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर इन सभी का एक छत के नीचे बैठकर अपने वजूद की कीमत पर सैद्धान्तिक समरसता का भाव पैदा करना काफी मुश्किल व दुष्कर कार्य समझा जाता है। ऐसा भी नहीं है कि अतीत में विपक्षी दलों की एकता नहीं हुई है मगर इनके एकीकृत होने के बावजूद इनकी अलग-अलग पहचान का भाव विलुप्त नहीं हो पाया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1977 में कांग्रेस के खिलाफ बनी जनता पार्टी थी जो केवल दो साल ही अपने समावेशी स्वरूप में रह चुकी। बिहार से खबर आयी है कि जनता दल (यू) की साथी ‘हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा’ पार्टी मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार के खिलाफ बगावती तेवर दिखा रही है। यह पार्टी राज्य के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री जीतन राम मांझी की है जिन्हें इस पद पर बैठने का सौभाग्य स्वयं नीतीश कुमार ने 2014 के बाद दिया था। वह अति पिछड़े समुदाय से आते हैं और इस अति पिछड़े वर्ग को अपना विशिष्ट वोट बैंक बनाने का काम नीतीश बाबू ने ही किया था। इसी वजह से जब नीतीश बाबू ने 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार में अपनी पार्टी जद(यू) की करारी हार के बाद मुख्यमन्त्री पद से स्वयं इस्तीफा दिया तो गद्दी पर अति पिछड़े समाज के श्री मांझी को बैठाया मगर बाद में मांझी ने श्री नीतीश कुमार को ही आंखें दिखाना शुरू कर दिया जिसकी वजह से राज्य विधानसभा में राजनैतिक दलों की बिछी बिसात की वजह से उनकी कुर्सी जाती रही। श्री मांझी इधर-उधर घूमते हुए फिर नीतीश बाबू की शरण में आ गये और उनके सहयोगी बन गये। मगर विपक्षी एकता के मोर्चे पर नीतीश बाबू जिस तरह सक्रिय हैं और पिछले कई महीने से देशभर के विपक्षी दलों को जोड़ने की कवायद में घूम रहे हैं उसे देखते हुए जीतन राम मांझी को उम्मीद थी कि नीतीश बाबू आगामी 23 जून को हो रही विभिन्न विपक्षी दलों की बैठक में उन्हें भी आमंत्रित करेंगे क्योंकि उनकी पार्टी का अलग वजूद है। मगर नीतीश बाबू को यह उचित नहीं लगा कि देश के बड़े-बड़े क्षेत्रीय दलों की पंचायत में श्री मांझी की पार्टी की भी गिनती की जाये। उनका समझना था कि मांझी की पार्टी व्यावहारिक रूप से जद (यू) का अंग ही समझी जाती है।
बिहार की जनता तो कम से कम यही समझती है। इस पर मांझी बिफर गये और उन्होंने विचार व्यक्ति किया कि वह आगामी लोकसभा चुनाव विपक्षी मंच से अपने प्रत्याशियों को नहीं लड़ायेंगे। उन्होंने पहले इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी पार्टी को बिहार से लोकसभा की पांच सीटें लड़ने के लिए दी जायें। इसे नीतीश कुमार ने अस्वीकार कर दिया। कहने का मतलब यह है कि विपक्षी एकता या साझा मोर्चा के नाम पर लोकसभा चुनावों को क्षुद्र जातिगत व वर्ग गत हितों के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है। लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे काम करते हैं परन्तु भारत का दुर्भाग्य यह है कि कुछ क्षेत्रीय दलों ने इन चुनावों को भी जातिगत समीकरणों में बांधने के प्रयास किये हैं। एक राष्ट्र के सजग नागरिक के रूप में जब मतदाता लोकसभा में अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देता है तो उसके सामने राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है।
विपक्षी एकता की राह में एक दिक्कत यह भी है कि उत्तर भारत विशेष कर उत्तर प्रदेश व बिहार के क्षेत्रीय दलों ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्राप्त की गई अपनी सफलता या असफलता को पैमाना बना रखा है। पूरा देश जानता है कि समूचे उत्तर भारत के राज्यों में लोकसभा चुनावों में असली लड़ाई भाजपा व कांग्रेस के बीच ही होनी तय है। इस क्रम में देखने वाली बात यह होगी कि विपक्षी एकता की मुहीम चला कर विभिन्न क्षेत्रीय दल किस प्रकार कांग्रेस पार्टी के लिए सहारे का काम कर सकते हैं। भारत के मतदाता सबसे बुद्धिमान भी समझे जाते हैं। जब वे देखते हैं कि राजनीतिज्ञ राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में असमर्थ हो रहे हैं तो वे स्वयं ‘जन विमर्श’ खड़ा कर देते हैं और उस पर राजनीतिज्ञों को चलना होता है।
आजादी से पहले ही जब महात्मा गांधी ने घोषणा कर दी थी कि आजाद भारत में एक समान मताधिकार के आधार पर संसदीय चुनाव प्रणाली अपनाई जायेगी तो कुछ अंग्रेज विद्वानों का मत था कि भारत ऐसा करके अंधे कुएं में छलांग लगा देगा क्योंकि उस समय इस देश की 90 प्रतिशत जनता अनपढ़ व मुफलिस थी। इस पर महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत के लोग अनपढ़ व गरीब हो सकते हैं मगर वे मूर्ख नहीं हैं। उनकी व्यावहारिक बुद्धि बहुत तेज है। गांधी की बात आजाद भारत में पूरी तरह सत्य सिद्ध हुई। अतः विपक्षी एकता का मतलब भानुमती का कुनबा निश्चित रूप से नहीं हो सकता बल्कि वैचारिक समागम ही हो सकता है। जीतन राम मांझी जैसे न जाने कितने क्षेत्रीय या आंचलिक नेता इस देश में बिखरे पड़े हैं जिनकी पार्टियां भी हजार की संख्या से ऊपर हैं। अतः विपक्षी एकता तभी कारगर हो सकती है जब विमर्श का आपस में सत्कार हो।