ये अफसरशाही ‘खैरात’ नहीं होनी चाहिए - Punjab Kesari
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ये अफसरशाही ‘खैरात’ नहीं होनी चाहिए

जब जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में चयन योग्यता और सत्यनिष्ठा के आधार पर होना चाहिए तो हंगामा मच गया था। कांत का मतलब यह था कि प्रतिष्ठित सेवाएं शारीरिक या मानसिक विकलांगता के आधार पर एक प्रकार की ‘खैरात’ नहीं होनी चाहिए।
विकलांगता कोटा के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए कांत ने धोखाधड़ी के सामने आए कई मामलों पर चिंता व्यक्त की और कहा कि शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण पर ‘पुनर्विचार’ की आवश्यकता है। आईएएस अधिकारी स्मिता सभरवाल भी निशाने पर हैं जिन्होंने इसी तरह की चिंता व्यक्त की थी।
जहां कांत ने कहा कि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी आरक्षण के पक्षधर हैं, वहीं सभरवाल ने इसके एकदम विपरीत विकलांगता कोटे की आवश्यकता पर सवाल उठाया कि आईएएस जैसी सेवाएं बहुत अपेक्षाएं रखने वाली हैं जिसमें भाग- दौड़ की भी जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए शारीरिक अनुकूलता की आवश्यकता है और सेवाओं में विकलांग लोगों के लिए आरक्षण की कोई जगह नहीं है। उन्होंने एक प्रश्न के साथ अपने तर्क का समर्थन किया, क्या कोई एयरलाइन किसी विकलांग पायलट को नियुक्त करती है? या क्या कोई विकलांग सर्जन पर भरोसा करेगा? बिल्कुल स्पष्ट रूप से सभरवाल ने वही कहा जिसकी तरफ कांत इशारा कर रहे थे।
हाल की घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए कांत और सभरवाल दोनों ने वह कहा जो बहुत पहले कहा जाना चाहिए था। जैसा कि अपेक्षित था,सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कांत और सभरवाल दोनों पर बंदूकें तान दी थीं। कुछ लोग तो सभरवाल से सार्वजनिक माफी की मांग करने लगे। उनके ख़िलाफ इतना गुस्सा था कि अगर कुछ लोगों का बस चलता तो वह उन्हें काफी भला-बुरा सुना देते।
जहां तक कांत का सवाल है, कार्यकर्ताओं ने उन्हें चीजों को संकीर्ण दृष्टिकोण से न देखने की सलाह दी थी। उन पर विकलांगों के प्रति पक्षपाती होने का भी आरोप लगाया गया। ‘कांत को यह बताया जाना चाहिए कि आरक्षण सहानुभूति में दिया गया दान नहीं है।’
नैतिक रूप से इसका फायदा उठाना एक बात है। इस आधार पर बहिष्करण की नीति की आलोचना की जा सकती है लेकिन हकीकत का क्या? इसमें बहुत सी खामियां हैं और प्रतिष्ठित सेवा के लिए चुने गए लोगों द्वारा दुरुपयोग के एक नहीं बल्कि कई मामले हैं। पूजा खेडकर के हालिया मामले पर दोबारा गौर करने से पहले यह बताना उचित होगा कि अतीत में भी विकलांगता कोटा का घोर दुरुपयोग हुआ है।
ऐसी खबरें हैं कि एक आईएएस अधिकारी ने दावा किया है कि उन्होंने दृष्टिबाधित होने के बावजूद ड्राइविंग टेस्ट दिया था, एक अन्य व्यक्ति जिसने स्वचालित विकलांगता का दावा किया था, सोशल मीडिया पर कथित तौर पर वह सब कुछ कर रहा था जो स्वचालित विकलांगता वाला व्यक्ति नहीं कर सकता, एक अन्य व्यक्ति जिसने सेवाओं के लिए कोटा का लाभ उठाया था, प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार वह व्यक्ति ‘पूरी तरह से फिट’ था। विकलांग होने का दावा करने वाले एक अन्य अधिकारी ने सोशल मीडिया पर ट्रैकिंग और साइकिलिंग की तस्वीरें भी डाली हुई थी। इन दावों की सत्यता के बावजूद चिकित्सकों के अनुसार नकली विकलांगता प्रमाणपत्र बनाना मुश्किल है ‘मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं,’ एक डॉक्टर ने कहा।
यूपीएससी परिणामों के अनुसार, 2018 में विभिन्न विकलांगता कोटा के माध्यम से 21 लोगों का चयन किया गया था। 2019 में 27 लोग, अगले वर्ष 18 लोग, 2021 में 14 व्यक्ति और 2022 में 28 व्यक्ति। विकलांगता कोटा में दृश्य हानि शामिल है, श्रवण बाधित, लोकोमोटर/ स्वचालक विकलांगता और मस्तिष्क पक्षाघात और एकाधिक विकलांगताएं।
इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में पूजा खेडकर है। एक युवा परिवीक्षार्थी, उन्होंने अपनी सीमाओं से आगे बढ़कर वह सब कुछ किया जो सेवा नियमों के अनुसार परिवीक्षाधीन अधिकारियों को करने की अनुमति नहीं है लेकिन पूजा खेडकर की हकदारी की भावना उनके लिए विनाशकारी साबित हुई।
इन सबकी शुरुआत हुई थी उनके द्वारा अपने संक्षिप्त की सीमाओं को लांघकर, अपनी निजी ऑडी लक्जरी कार का सायरन बजाने से,साथ ही एक निजी केबिन और नए फर्नीचर की मांग करने से, इसके अलावा उनकी मनमानी के अन्य उदहारण भी थे जिसने प्रशासन का ध्यान खींचा। क्या इसका उनके पिता के राजनेता होने या उनकी मां के आवेगशील होने से कोई लेना-देना है? यह कोई नहीं बता सकता। पूजा के पिता दिलीप खेडकर ने हाल ही में लोकसभा चुनाव लड़ा था, उनकी मां के आवेगशीलता के बारे में जमीन के सौदे पर बातचीत करते समय बंदूक लहराते हुए उनके दृश्य हैं, जिसने सभी को चौंका दिया था। जहां तक पूजा की विकलांगता का सवाल है, उनके पास ओबीसी या ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ का प्रमाणपत्र था जिसके लिए वह योग्य नहीं थी।
यदि रिपोर्टों पर विश्वास किया जाए तो पूजा खेडकर के पिता की कुल संपत्ति 40 करोड़ रुपये है जो उन्हें ‘क्रीमी लेयर’ का हिस्सा बनाती है और कोटे के लिए अयोग्य भी । इसके अलावा, पूजा खेडकर के मेडिकल प्रमाणपत्र तीन अलग-अलग विकलांगताओं से संबंधित हैं, अर्थात कम दृष्टि, मानसिक बीमारियां और लोकोमोटर विकलांगताएं। उन पर ये फर्जीवाड़ा करने का आरोप है। इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि खेडकर अपनी विकलांगता मूल्यांकन के लिए कई नियुक्तियों में उपस्थित होने में विफल रही।
यूपीएससी ने अब खेडकर के खिलाफ फर्जी पहचान बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है। सच्चाई चाहे जो भी हो, यहां प्रशासन से धोखाधड़ी करने की कोशिश तो ज़रूर हुई है। यह विकलांगता कोटा के संपूर्ण दायरे पर सवाल उठता है और उन लोगों को भी बदनाम करता है जो वास्तव में विकलांग हैं और उचित माध्यमों से संघ लोक सेवा आयोग में सफल हुए हैं।
खेडकर के मामले ने एक बहस छेड़ दी है और जिसकी बहुत जरूरत भी थी। इस तरह की धोखाधड़ी कब बंद होगी? दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा उपाय क्या हैं? क्या आईएएस जैसी प्रतिष्ठित सेवा को इस तरह कलंकित किया जाना चाहिए? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या कांत और सभरवाल द्वारा व्यक्त की गई चिंताएं कोटा प्रणाली पर पुनर्विचार और पुनर्मूल्यांकन का आह्वान नहीं करती हैं? सुविचार रखने वाले लोगों के लिए इसका उत्तर निश्चित रूप से हां है।

– कुमकुम चड्ढा

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