कोई तमाशा नहीं है जिन्दगी - Punjab Kesari
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कोई तमाशा नहीं है जिन्दगी

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आजकल सुबह अच्छी खबरों से सामना नहीं हो रहा। वैसे तो देश में बहुत सी चुनौतियां हैं लेकिन समाज भी हर रोज नए-नए तरह के चैलेंज प्रस्तुत कर रहा है। लाेग अपनी मौत को भी तमाशा बना रहे हैं। गुड़गांव के युवक ने आत्महत्या को फेसबुक पर लाइव डाल दिया और यह भी लिखा कि आप इसे लाइक और कमेंट करें। एक महिला ने आत्महत्या कर ली और पति वीडियो बनाता रहा। कितना संवेदनहीन और कितना अमानवीय हो चुका है इन्सान जो न केवल खुद को तमाशा बनाता है बल्कि दूसरों का तमाशा भी बनाता है। क्या मौत एक तमाशा है, क्या मौत को गले लगाना जीवन से पलायन नहीं? क्या सोशल मीडिया पर लाइव जाकर आत्महत्या करना समाज को कोई अच्छा संदेश देता है? अगर इन सवालों का उत्तर नहीं में है तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है? दुर्घटना के शिकार लोग सड़कों पर पड़े रहते हैं। लोग वीडियो बनाने में मशरूफ रहते हैं। कोई उन्हें शीघ्र अस्पताल पहुंचाने के बारे में नहीं सोचता। मॉब लिंचिंग की घटनाओं की वीडियो तुरन्त सोशल मीडिया पर वायरल की जाती है। सेल्फी जानलेवा साबित हो चुकी है। भारत में सेल्फी का बहुत ही क्रेज है और इससे होने वाली दुर्घटनाओं की दर इतनी अधिक है कि एक शोध में पाया गया है कि भारत में दुनिया की सेल्फी से संबंधित होने वाली मौतें सबसे ज्यादा है।

बाढ़ के पानी से उफनती नदियों में युवा कूद रहे हैं। ट्रेन आने से कुछ सैकिंड पहले नदी में छलांगें लगाई जा रही हैं। उन्हें कोई समझाने वाला नहीं। वास्तव में युवा खतरनाक सेल्फी लेने की आेर अधिक उन्मुख होते हैं। एक सोशल साइट पर पोस्ट की गई बड़ी संख्या में सेल्फियों का विश्लेषण किया गया तो निष्कर्ष यह निकला कि इनमें से 13 प्रतिशत सेल्फी खतरनाक स्थितियों में ली गईं। इनमें से अधिकतर युवा 24 वर्ष से कम उम्र के हैं जबकि दुनिया में अधिकांश लोग सेल्फी लेते समय ऊंची इमारतों आैर पहाड़ों की चट्टानों से गिरने पर मौत के आगोश में समा गए। भारत में सेल्फी से अधिकांश मौतें जल क्षेत्रों या रेलवे ट्रैक के पास हुई हैं। टीवी चैनल ‘गुड मार्निंग न्यूज’ में युवाओं की मौत की खबर प्रकाशित करते हैं तो सोचने को विवश होना पड़ता है कि यह कैसी ‘गुड मार्निंग’ है। हर सुबह देशवासियों को ऐसी खबरें ‘बैड मार्निंग’ का अहसास दिलाती हैं।

अब कनाडा के रैपर ड्रेक के ‘किकी डू यू लव मी’ गाने पर सोशल मीडिया में डांस चैलेंज ट्रेंड में है। भारत में रोजाना कई शहरों में इस चैलेंज के वीडियो अपलोड किए जा रहे हैं जबकि यह डांस चैलेंज जानलेवा भी है। कई राज्यों की पुलिस ने एडवाइजरी जारी कर कहा है कि चलती कार से उतरकर सड़क पर डांस करना खतरनाक है। ऐसा करते समय लोगों की मौत और जख्मी होने के मामले सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस ने ट्वीट किया है-‘‘डियर पेरेंट्स, किकी आपके बच्चे को प्यार करे या नहीं, लेकिन आप जरूर करते हैं। कृपया किकी चैलेंज को छोड़कर जिन्दगी की हर चुनौ​ितयों में उनके साथ खड़े रहें।’’ यह संदेश बच्चों के अभिभावकों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। सेल्फी लेना बुरी बात नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सेल्फी लेते हैं। बच्चे, युवा, युवतियां और प्रौढ़ भी सेल्फी के दीवाने हैं लेकिन सेल्फी का शोहरत की भूख से जुड़ जाना खतरनाक हो चुका है। किसी भी चीज का अधिक मात्रा में बढ़ जाना नकारात्मकता पैदा करता है।

प्रत्येक युवक-युवतियां आैर महिलाएं अपने दिन की शुरूआत ही अपनी सेल्फी पोस्ट करने से करते हैं। अलग-अलग मुद्राओं में सेल्फी शेयर करने पर उन्हें झूठे ढेरों लाइक्स मिलते हैं। यह सही है कि यह लाइक्स उनमें आत्मविश्वास पैदा करते हैं, उन्हें अपनी लोकप्रियता का अहसास होता है। अगर वह ऐसा नहीं करते तो खुद को अकेला और उदास पाते हैं। यह मनोविकार है जिसका शिकार अनेक लोग हो चुके हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि किसी भी आदत का बढ़ जाना, स्वयं को सुन्दर महसूस करवाने का नशा सवार हो जाना मानसिक विकार ही हो सकता है। ऐसा लगता है कि कोई भी योग्यता के बल पर अपनी शख्सियत को संवारना नहीं चाहता बल्कि सेल्फी से शोहरत का मुकाम हासिल कर लेना चाहता है। जो कुछ भी हो रहा है, उसका कोई तर्क और औचित्य मुझे नजर नहीं आता। अगर इसके कारण ढूंढें तो साफ है कि आज लोगों के पास करीबी रिश्ते-नातों के लिए वक्त नहीं, लेकिन सेल्फी लेने आैर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का समय है। लोग रिश्तों को नाम से नहीं बल्कि फ्लैटों के नम्बरों से याद करते हैं। किसी जागरूकता अभियान के लिए सेल्फी लेना और पोस्ट करना अच्छी बात है। सेल्फी विद बेटी, स्वच्छता अभियान के लिए सेल्फी तो सही है लेकिन सेल्फी को व्यक्तिगत जीवन का एक हिस्सा बनाना गलत है।

इन्सान का आत्मकेन्द्रित होना या यह कहिये कि आत्ममुग्धता का शिकार होना समाज के लिए अच्छा नहीं। आभासी दुनिया में रहना खतरनाक हो चुका है। समाज आैर परिवार के पुराने ढांचे टूट रहे हैं, बंधन तार-तार हो रहे हैं। सेल्फी से इन्सान सेल्फिश हो चुका है। आज हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां हिंसा, सैक्स, ड्रग्स, बीमारी, इंटरनेट की लत, आर्थिक विषमता, टकराव, पर्यावरण संकट है। मीडिया में फर्जी और सतही चीजों को सराहा जा रहा है। शारीरिक सौन्दर्य आैर पैसों की पूजा हो रही है और रिश्तों का आधार केवल स्वार्थगत रह गया है। इस माहौल का गहरा असर समाज पर पड़ रहा है। अभिभावक व्यस्त हैं कि बच्चों को समय ही नहीं दे पाते। अब जिम्मेदारी उनकी भी है कि वे बच्चों को आजादी की जिम्मेदारियों से अवगत कराएं। बच्चों को अहसास दिलाना होगा कि दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए, बुनियादी और पारिवारिक मूल्य हमेशा वही रहते हैं।

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