हमारा पंजाब केसरी 1965 में 1200 अखबार अपने साथ लेकर चला था जो बाद में यह आंकड़ा 10 लाख तक जा पहुंचा। एबीसी कालांतर में इसकी गवाह रही है। लेकिन लोगों का विश्वास बन चुकी पंजाब केसरी की ताकत की कीमत भी हमने चुकाई है। राज्य सरकारों ने अपनी जिद में आकर हमारे सच से परेशान होकर और लोकतांत्रिक शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए एमरजेंसी के दिनों में हमारी अखबार की बिजली काट दी थी उन दिनों हमारे सामने बड़ी दुष्कर परिस्थितियां थी। लेकिन हमने अपने अखबार का ढांचा जो वैब-आफ-सैट रोटरी से छपता था उसे ट्रैक्टर से जोड़कर छाप दिया। लोगों की शक्ति हमारे साथ थी।
कलम के साथ-साथ हमारे अमर शहीद रमेश चंद्र जी ने एक ट्रैक्टर इंजीनियरिंग की स्थापना कर दी और ट्रैक्टर से अखबार छापने का यह सिलसिला लगातार दस दिन तक चलता रहा और एक इतिहास बन गया। राज्य सरकारों के मुंह पर यह एक करारा तमाचा था। कलम, सत्य और लोगों की ताकत के रूप में पंजाब केसरी को दूसरी बार एक और ऐसी ही घटना का सामना करना पड़ा जब जम्मू-कश्मीर सरकार ने हमारे समाचार पत्र पर सेंशरशिप लगा दी। अबकी बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया और वहां भी अखबारों पर प्रतिबंध का यह आदेश वापिस लेना पड़ा। पंजाब केसरी के जीवन में यह दो घटनाएं ऐसी हैं जो सबसे बड़ी दुश्वारी थी लेकिन पंजाब केसरी ने इस पर जीत हासिल की तो इसके पीछे लोगों के विश्वास की शक्ति काम कर रही थी। द्य