‘‘खून अपना हो या पराया हो
नस्लें आदम का खून है आखिर,
जंग मशरिक में हो या भगरिब में
अमन-ए-आलम का खून है आखिर।
बम घरों पर गिरे या सरहद पर
रुहें-तमीर जख्म खाती हैं,
खेत अपने जलें कि औरों के
जीस्त फाकों से तिलमिलाती है।
इसिलए ऐ शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है,
आप और हम सभी के आंगन में
शमां जलती रहे तो बेहतर है।’’
साहिर लुधियानवी की कविता याद आ रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध को डेढ़ वर्ष हो गया है। दोनों देशों में वर्चस्व, सम्मान और स्वाभिमान की जंग जारी है। न कोई जीत रहा है न कोई हार रहा है। शहर के शहर खंडहर हो रहे हैं। हजारों लोगों की जान जा चुकी है। यूक्रेन पूरी तरह से छलनी हो चुका है, रूस पीछे हटने को तैयार नहीं। युद्ध ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर डाला है। मास्को की इमारतों पर ड्रोन हमलों के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यद्यपि भड़के हुए हैं लेकिन उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग में जो बयान दिया है उसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिए और युद्ध को समाप्त करने की कोई न कोई पहल जरूर की जानी चाहिए। पुतिन का कहना है कि वे कभी शांति पहल के खिलाफ नहीं रहे हैं लेकिन जब यूक्रेन की सेना बड़े पैमाने पर हमले कर रही हों तो रूस की सेना युद्ध विराम कैसे कर सकती है। कोई भी पहल शांति का आधार बन सकती है, जैसे कि चीन की तरफ से जो पहल हुई है या फिर अफ्रीका की शांति की पहल भी रूस और यूक्रेन के बीच शांति ला सकती है। शांति के लिहाज से पुतिन का बयान काफी अहम है। अमेरिका और यूरोप के देशों से उसे भरपूर हथियार और गोला बारूद मिल रहा है, ऐसे में अपनी जमीन से रूस को खदेड़े बगैर यूक्रेन अपनी तरफ से रुकेगा, इसकी सम्भावना कम ही नजर आती है। रूस और यूक्रेन दोनों ने ही अब तक यही कहा है कि वे बिना शर्तों के शांति वार्ता के लिए बातचीत की मेज पर नहीं आएंगे।
युद्ध के चलते दुनिया भर में पैट्रोल, ऊर्जा संकट खड़ा हुआ है। जब से रूस ने यूक्रेन के साथ अनाज सप्लाई निर्यात करने का समझौता तोड़ा है। इससे अनाज संकट गहराने की आशंकाएं बलवती हो गई हैं। अब चिंता जताई जा रही है कि पहले से ही अकाल का सामना कर रहे कई अफ्रीकी देशों के लिए गम्भीर खाद्य संकट पैदा हो सकता है। सोमालिया, कीनिया, इथियोपिया और दक्षिण सूडान जैसे देशों में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को खाद्य सुरक्षा सहायता की जरूरत है, क्योंकि इन देशों में वर्षों से ठीक से बारिश नहीं हुई है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ ये अनाज समझौता यूक्रेन को इन अफ्रीकी देशों में मानवीय सहायता के तौर पर 6 लाख 25 हजार टन अनाज भेजने की अनुमति देता था।
विश्व व्यापार संगठन की महानिदेशक गोजी ओकोनजो इवेला कहती हैं, “काला सागर के जरिए खाद्य पदार्थ, चारा और उर्वरक का व्यापार विश्व खाद्य कीमतों में स्थिरता के लिए जरूरी है। ये कहते हुए दुख हो रहा है कि इस फैसले से सिर्फ़ गरीब लोग और गरीब देशों को नुक्सान उठाना पड़ रहा है।”
दुनिया भर में अनाज की कीमतें बढ़ रही हैं। कई देशों को रूस से गेहूं, वेजिटेबल आयल, उर्वरक आयात करने में परेशानी आ रही है। युद्ध से विश्व दो गुटों में बंट चुका है। जब तक युद्ध समाप्त नहीं होता, सरकारें संकट का सामना करती रहेंगी। युद्ध तुरन्त नहीं रोका गया तो विश्व शांति को गम्भीर खतरा पैदा हो जाएगा। बेहतर यही होगा कि अमेरिका एवं नाटो देश अपनी जिद और दंभ छोड़ें क्योंकि वह भी लम्बे समय तक यूक्रेन की सैन्य और आर्थक मदद नहीं कर पाएंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ एवं सुरक्षा परिषद युद्ध रोकने में पूरी तरह विफल रहा है और उसकी विश्वसनीयता खतरे में है। सारी दुनिया भारत पर नजरें लगाए बैठी है और भारत शांति प्रक्रिया में भागीदार बनने को तैयार है। इस समय युद्ध को रोकने के लिए पहल बहुत जरूरी है। अमेरिका और यूरोपीय देशों को पुतिन के बयान को साकारात्मक ढंग से लेना चाहिए और दोनों देशों को शांति वार्ता के लिए एक मेज पर लाना चाहिए,क्योंकि पुतिन भी शांति वार्ता से इंकार नहीं कर रहे। यूक्रेन को भी नाटों में शामिल होने की महत्वकांक्षा त्याग देनी चाहिए और वार्ता की मेज पर आना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com