शरद पवार की ‘असली’ विरासत - Punjab Kesari
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शरद पवार की ‘असली’ विरासत

राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा श्री शरद पवार की गिनती देश के उन राजनीतिज्ञों में की जाती है जिन्होंने

राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा श्री शरद पवार की गिनती देश के उन राजनीतिज्ञों में की जाती है जिन्होंने स्वतन्त्र भारत में महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू जैसे महानायकों की सैद्धान्तिक विरासत को कांग्रेस से अलग रह कर भी किसी न किसी रूप में निभाने का प्रयास किया है और बदलते समय के अनुसार सियासत की जरूरतों के मुताबिक अपना सितारा बुलन्द रखने की खातिर समझौते भी किये हैं मगर कभी भी अपनी दृष्टि से लोक-कल्याण को औझल होने नहीं दिया है। यही वजह है कि 24 साल पहले मुख्य कांग्रेस पार्टी से सम्बन्ध तोड़ने के बावजूद श्री पवार को आज भी देश भर के कांग्रेसी आदर व सम्मान के भाव से देखते हैं और उन्हें महाराष्ट्र का महारथी भी स्वीकार करते हैं। श्री पवार अब 80 वर्ष से ऊपर के हो गये हैं परन्तु पूरी तरह सक्रिय हैं और राजनैतिक दांव-पेंचों के अजेय माहिर भी हैं। उनके इस फन का अन्दाज इस कदर ‘रुहानी’ रहा है कि उनके राजनैतिक विरोधी भाजपा के नेताओं की तो छोडि़ये स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी भी उनके प्रशंसक रहे हैं। यही खूबी शरद पवार को अपने अन्य समकालीन राजनीतिज्ञों में विशिष्ट बना देती है।
 वह महाराष्ट्र के एक गरीब किसान के भी मित्र माने जाते हैं और देश के सबसे बड़े उद्योगपति के भी।  उनके इस व्यक्तित्व की छाया उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पर भी नजर आती रही है और हाल में ही जिस प्रकार उन्होंने अपनी विरासत का हस्तांतरण किया है वह तो ‘बेमिसाल’ कहा जा सकता है। श्री पवार ने मनमोहन सरकार में कैबिनेट मन्त्री रहे अपने साथी रहे श्री प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। दरअसल पटेल को पवार का ‘शागिर्द’ कहना ज्यादा बेहतर होगा। इसके साथ ही अपनी पुत्री सुप्रिया सुले को भी उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। पटेल को यह महत्वपूर्ण पद दिया जाना बहुत महत्व रखता है जो मूल रूप से महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित उद्योगपति परिवार से आते हैं। महाराष्ट्र का गोन्दिया जिला देशभर में अपने बीड़ी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। श्री पटेल के परिवार का यह पुश्तैनी उद्योग रहा है। पटेल के पिता स्व. मनोहर भाई पटेल गोन्दिया से ही विधायक भी रहे मगर उनकी तब मृत्यु हो गई जब प्रफुल्ल पटेल केवल 13 वर्ष के थे। मगर साठ के दशक की शुरूआत में ही जब श्री शरद पवार कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होकर अपनी राजनीति शुरू कर रहे थे तो प्रफुल्ल भाई के पिता स्व. मनोहर भाई पटेल ने शरद पवार की बहुत मदद की थी और उन्हें हर तरह से सहायता भी पहुंचाई भी थी। इसके बाद से श्री पवार ने प्रफुल्ल पटेल के राजनीति में अभिभावक की भूमिका निभाई और उन्हें ऊंचाइयों तक भी पहुंचाया। 
यह हकीकत बहुत कम लोगों को ही ज्ञात है कि पवार कभी भी किसी का एहसान चुकाने में कोई कमी-कोताही नहीं रखते। उन्होंने अपनी पुत्री को तो कार्यकारी अध्यक्ष बनाया ही मगर एक जमाने में अपनी मदद करने वाले स्व. मनोहरभाई पटेल के पुत्र को भी वही रुतबा बख्श कर कर्ज चुकाया। आज की राजनीति में एेसे इंसान ‘बिरले’ ही होते हैं। प्रफुल्ल पटेल को वह राज्यसभा में भी भेजते रहे। हालांकि पटेल लोकसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। उनको अध्यक्ष बनाकर पवार ने अपनी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को यह सन्देश देने की कोशिश की है कि उनकी निगाह में परिवार जितनी ही कीमत पार्टी के साथ वफादारी करने वाले लोगों की भी है। हालांकि यह कहा जा रहा है कि श्री पवार ने अपने भतीजे अजित दादा पवार को कोई विशेष महत्व इस फेरबदल में नहीं दिया है मगर बहुत सावधानी के साथ उन्होंने भविष्य की तस्वीर साफ खींच दी है। अजित दादा के बारे में उन्होंने कहा कि वह महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। इसका मतलब यही निकलता है कि यदि  आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में एेसे समीकरण बने कि राष्ट्रवादी कांग्रेस का नेता मुख्यमन्त्री बने तो इस पद पर स्वाभाविक तौर पर अजित दादा का ही दावा होगा। 
बेशक सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर महाराष्ट्र का प्रभारी भी बनाया गया है मगर उनका मुख्य कार्य राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा बढ़ाने का होगा और लोकसभा में रहते हुए वह यह काम देखेंगी। एक प्रकार से श्री पवार ने यह संकेत दे दिया है कि महाराष्ट्र विधानमंडल दल के प्रभारी अजित दादा ही रहेंगे और अवसर आने पर वह और सुप्रिया मिलकर वे फैसले करेंगे जो पार्टी व राज्य के हित में होंगे। हालांकि श्री शरद पवार की पार्टी का महाराष्ट्र से बाहर बहुत कम राज्यों में ही थोड़ा-बहुत प्रभाव है परन्तु स्वयं में श्री पवार देश के बहुत बड़े नेता माने जाते हैं। उनकी यह विशाल छवि आगामी लोकसभा चुनावों में समस्त विपक्षी दलों को एक करने के काम में आयेगी। इसका आभास अभी से मिलना शुरू हो गया है। श्री पवार ने अपनी विरासत का बंटवारा भी इन चुनावों से पहले करके सन्देश दिया है कि विपक्षी एकता के कार्य में उनके दो सिपहसालार सक्रिय भूमिका इस प्रकार निभायेंगे कि क्षेत्रीय दलों का मान भी बना रहे और भाजपा के खिलाफ मजबूत एकजुटता भी कायम हो सके। श्री पवार महाराष्ट्र की महत्ता जानते हैं। इसे देश का अग्रणी औद्योगिक राज्य बनाने में कई बार मुख्यमन्त्री का औहदा संभालने की वजह से उनकी स्वयं की भूमिका भी महत्वपूर्ण रह चुकी है साथ ही इस राज्य से लोकसभा की 48 सीटें हैं। उत्तर प्रदेश की 80 सीटों के बाद सर्वाधिक लोकसभा सीटें इसी राज्य से हैं अतः इस राज्य में विपक्षी एकता का मजबूत धागा ‘बंटे’ जाने की सख्त जरूरत कांग्रेस पार्टी को भी पड़ेगी और यह काम वह श्री पवार के भरोसे बेफिक्र होकर छोड़ सकती है। 

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