दल-बदलुओं को जनता ने किया बैक टू होम - Punjab Kesari
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दल-बदलुओं को जनता ने किया बैक टू होम

चुनाव की घोषणा होते ही अपने पूरे देश में राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने अपने फील्ड बदले, दल बदले, दिल भी बदले और पहले जिस पार्टी के दम पर संसद या विधानसभाओं में पहुंचे। राजनीतिक पदों का सरकार में आनंद लिया, उसी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में चले गए शायद बेहतर राजनीतिक भविष्य के लिए। केवल अपने लिए ही नहीं, अपितु अपने वंशजों की भी राजनीतिक नींव मजबूत करने के लिए पूरे देशभर में अनेक लोगों ने दल बदला। चुनाव से पूर्व पूरे देश में जो सबसे बड़ी लहर चली वह दल बदल की थी। वैसे सही स्थिति तो यह रही कि चुनाव के चार-पांच चरण पूरे होने के बाद भी ये दल बदलने वाले रुके नहीं और जहां से भी अवसर मिला, पैठ बना ली। मेरा तो यह मानना है कि जिस प्रकार डूबते जहाज से पहले चूहे कूदते हैं उसी प्रकार हमारे राजनीतिक महारथी अपना-अपना जहाज छोड़कर दूसरे जहाज में पहुंचने के लिए बेचैन जैसे हो गए और देश की सभी राजनीतिक पार्टियों की यह स्थिति है कि वह किसी भी पार्टी से कोई दल बदलता है, चाहे आपराधिक पृष्ठभूमि का ही क्यों न हो उसे लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश के कुछ प्रांतों में सबने देखा कि करोड़ों-अरबों के घोटाले करने वाले सीबीआई या ईडी के डर से दल बदलकर सत्ता पक्ष में पहुंच गए और सुरक्षित हो गए। जिस पार्टी में ये गए वह संभवत: सोचते होंगे कि उनकी पार्टी मजबूत हो गई, पर वे सत्तापति नेता यह अनुमान ही नहीं कर पाए कि जनता अब जागरूक है। वह यह सहन करने के लिए तैयार नहीं कि अगर कोई अरबों के घोटाले करता है या महिलाओं का अपमान करके भी नेता बना रहता है वह दल बदलकर चुनाव लड़ने के लिए आ जाए तो भारत की जनता उसे स्वीकार कर लेगी।

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इस बार वही हुआ कि हरियाणा के महिला पहलवानों से यह सहा नहीं गया कि महिलाओं का अपमान करने के बाद अपराधी पिता के पुत्र को संसद का टिकट दे दिया जाए या महाराष्ट्र में अरबों रुपये घोटालेबाज नेता को सत्ता पक्ष संसद का टिकट देकर माननीय बनाने की तैयार की। समाचार तो यह है कि पूरे देश में ही दल बदलुओं को नकारा गया। सच्चाई कटु है, पर यह है कि अगर देश की सबसे बड़ी पार्टी को पिछले चुनावों से कम सीटें मिली हैं तो उसका कारण भी बहुत से अवांछित जनता की न स्वीकार्य लोगों को अपनी पार्टी में उन्हें संसद के लिए उम्मीदवार बनाया गया। पूरे देश के लोगों ने दल बदलुओं को कितना हराया, यह विवरण तो अभी मेरे पास पूरा नहीं, पर पंजाब के लोगों में दल बदलुओं व मौकापरस्तों को चुन-चुन कर हराया। केवल एक डा. चब्बेवाल ही रहे जिन्होंने चुनाव जीत लिया, दल बदलने के बाद भी, पर यह देखना होगा कि डा. चब्बेवाल दल बदलते ही टिकट नहीं दिया, अपितु वह विधायक पद से इस्तीफा देकर चुनाव से कई महीने पहले कांग्रेस छोड़कर आप पार्टी में आ गए थे। उनका अपना व्यक्तित्व, जनता में उनकी लोकप्रियता भी आप पार्टी से चुनाव जीतने में बड़ा कारण रही, लेकिन कुछ बड़े-बड़े दिगगज जो वर्षों तक अपनी पार्टी के बल से हलवा मांडा खाकर वीवीआईपी बने रहे, वे भी दल बदलकर कोई बड़ी छलांग लगाना चाहते थे। उन्हें भी मालूम नहीं था कि उनकी पार्टी हार जाएगी।

जो पार्टी चार बार सांसद बनाए, फिर उसे बुरा कहकर अपने दादा की विरासत पर दाग लगाकर पार्टी बदल ले और अपनी पार्टी को बुरा कहे तो जनता ने यह समझ लिया कि यह व्यक्ति इस योग्य नहीं कि इसे अपना जनप्रतिनिधि बनाएं। लुधियाना से श्री रवनीत बिट्टू ने यही किया और भाजपा का आंचल पकड़कर भी वे संसद में नहीं पहुंच सके, क्योंकि उनके क्षेत्र की जागरूक जनता ने दल बदलु को स्वीकार नहीं किया। इसी प्रकार पटियाला में अमरिंदर परिवार पूरे का पूरा ही दल बदल गया और श्रीमती परनीत कौर को दल बदलते ही नए दल में सांसद प्रत्याशी बना लिया गया, उसे पटियाला की जनता ने अस्वीकार कर दिया। वे संसद में शायद ही कभी पहुंच पाएं। जालंधर के सुशील रिंकू ने तो बड़ा खेल खेला। पहले कांग्रेस छोड़ी आप ने सिर-माथे पर बिठाया और फिर आप से पलटी मारकर भाजपा में गए। जनता ने उन्हें उनकी असलियत दिखा दी। एक और दल बदलने में कुशल जीपी भी संसद में नहीं पहुंच पाए और फतेहगढ़ से वे परास्त हुए। बड़े नाम हैं अकाली दल के पवन टीनू ने भी दल बदला। कांग्रेस के महेंद्र सिंह केपी ने भी दल बदलकर चुनाव लड़ा, पर वे जीत नहीं सके। फिरोजपुर से श्री सोढी भी कई दिन से अपनी पार्टी को तलाक देकर दूसरी पार्टी में चले गए थे, पर नए परिवार के मतदाताओं ने उन्हें अपना नहीं समझा और बैक टू होम कर दिया। ये तो कुछ नाम हैं इन चुनावों में चर्चा में रहे और दल बदलने के कारण जिन्होंने मुंह की खाई।

वैसे देश में बड़े नाम हैं जो राम का नाम ही स्वीकार नहीं करते थे वे राम-राम करते उस पार्टी की शरण में आ गए जिन्होंने अयोध्या में रामजी का मंदिर बनाया। कुछ व्हिस्की में विष्णु बसे कहते थे, अब जय श्रीराम कहने लगे जैसे ही दल बदला। बंगाल के एक नेता का तो दम घुटने लगा था उन्हें दल बदल कर ही आक्सीजन मिली, पर भारत की जनता ने यह सिद्ध कर दिया कि अब मतदाता आंखें मूंदकर किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर वोट नहीं डालता, अपने विवेक से वह अपना प्रतिनिधि चुनता था। बड़ी खुशी की बात है कि देश के मतदाता का मूड़ बदल रहा है। मेरा पूरा विश्वास है कि जिस तरह पंजाब के मतदाता ने सभी दल बदलुओं को उनकी कीमत बता दी है वैसे ही पूरे देश ने किया होगा और आगे करते रहेंगे।

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