शांति की बहुत बड़ी कीमत... - Punjab Kesari
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शांति की बहुत बड़ी कीमत…

इजराइल और हमास के बीच 15 महीने लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार युद्ध विराम लागू हो गया।

गाजा में इजराइल और हमास के बीच 15 महीने चले लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार युद्ध विराम लागू हो गया। बंदूकें शांत हो गईं। बमों के धमाके और मिसाइल हमलों की दनदनाहट खामोश हो गई। हमास ने तीन बंधक इजराइली महिलाओं को रिहा किया। तो दूसरी तरफ से इजराइल ने 90 फिलिस्तीनियों को रिहा कर दिया। युद्ध विराम समझौते की शर्तों के हिसाब से हमास अगले 6 सप्ताह में 33 इजराइली बंधकों को रिहा करेगा। इसके बदले इजराइल 2000 फि​लिस्तीनी बंदियों को रिहा करेगा। युद्ध शुरू करने बहुत आसान होते हैं लेकिन समाप्त करने मुश्किल होते हैं। भारत पूरी दुनिया को यह संदेश देता रहा है जिसे किसी कवियत्री ने अपने शब्दों में कुछ इस तरह से बांधा है।

युद्ध से नहीं शांतिवार्ता से निकलेगा हल

बर्बरता से नहीं समझौते से निकलेगा हल

बेगुनाहों के शवों से नहीं सौहार्द से निकलेगा हल

बमबारी से नहीं बातचीत से निकलेगा हल

प्रहार से नहीं पैगाम से निकलेगा हल

गोला-बारूद से नहीं गुलाब से निकलेगा हल

युद्ध से नहीं शांतिवार्ता से निकलेगा हल

युद्ध ​विराम तब तक जारी रहेगा जब तक बातचीत जारी रहेगी। इजराइल और हमास, कतर और अमेरिका की कठिन अप्रत्यक्ष वार्ता के बाद युद्ध विराम पर सहमत हुए हैं लेकिन दोनों में अविश्वास कायम है। शांति बहाली के प्रयास पहले किए जाते तो शायद युद्ध इतना लंबा नहीं खिंचता। युद्ध के लंबा खिंचने के पीछे इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की घरेलू राजनीतिक मजबूरियां भी रहीं। हमास द्वारा हमला किए जाने के समय नेतन्याहू देश में अपनी लोकप्रियता खो चुके थे। वह 2022 से ही दक्षिणपंथी कट्टरपंथी दलों के साथ मिलकर सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए युद्ध को अपना उन्माद प्रदर्शित किया और गाजा पट्टी से हमास को नष्ट करने का ऐलान किया।

उनका युद्ध उन्माद युद्ध विराम की घोषणा के कुछ घंटों के भीतर इजराइल द्वारा गाजा पर किए गए हमले से भी प्रदर्शित हुआ जिसमें 70 से अधिक लोग मारे गए। नेतन्याहू ने अब सत्ता पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए बंधकों की रिहाई तक अपनी ताकत को प्रदर्शित किया। फिलहाल युद्ध विराम लागू होने से फि​लिस्तीन के लोगों ने राहत की सांस ली है। ईरान को भी बड़ी राहत मिली है जो लेबनान स्थित हिजबुल्लाह आतंकियों की मदद से इस जंग में छद्म रूप से शामिल हुआ।

अब गाजा समझौते को लागू करने की जिम्मेदारी अमेरिका की डोनाल्ड ट्रम्प सरकार पर भी है। इस युद्ध में 46 हजार से ज्यादा फि​लिस्तीनियों की मौत हुई है जिनमें 18 हजार बच्चे शामिल हैं। एक लाख से ज्यादा लोग घायल हुए हैं जिनमें अनेक ने अपने हाथ-पांव गंवाए हैं। इस जंग में 2.2 मि​लियन लोगों के लिए खाने का संकट पैदा हुआ और 20 लाख लोग शरणार्थी बन कर टैंटों में जीवन बिता रहे हैं। इजराइल ने गाजा पट्टी को तबाह कर के रख दिया। इमारतें खंडहर हो गईं और बहुत बड़ा मानवीय संकट खड़ा हो गया। युद्ध में मारे गए आम लोगों में बच्चे और महिलाएं भी हैं जिनका युद्ध से कोई वास्ता नहीं था।

गाजा पर हमलों के क्रम में अस्पताल, स्कूल और हमलों से बचने के लिए पनाह लेने वाली जगहों को भी नहीं बख्शा गया। युद्ध को लेकर नियमों-कायदों की भी परवाह नहीं की गई। हमास ने जो किया वह आतंकवादी कार्रवाई थी लेकिन इजराइल ने जो जनसंहार किया वह भी युद्ध अपराधों से कम नहीं है। शांति की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। राहत की बात यह रही कि इजराइल और ईरान में सीधा युद्ध शुरू नहीं हुआ। युद्ध विराम को लेकर अभी भी कुछ सवाल बने हुए हैं।

उदाहरण के लिए इजराइल संघर्ष विराम के पहले चरण में गाजा में एक बफर जोन में मौजूदगी बनाए रखेगा। इजराइली रक्षा-बलों का फिलिस्तीनी भूभाग में लगातार बने रहना कैदियों की अदला-बदली के पहले विश्वास बहाल करने में मदद नहीं करेगा। इस समझौते की जटिलताएं भी युद्ध विराम को नाजुक बना रही हैं। कोई छोटी सी घटना भी शत्रुता को दोबारा हवा दे सकती है। इजराइली पक्ष की शिकायत है कि हमास की बंधकों को रिहा करने की प्रतिबद्धता अस्पष्ट है। इसी तरह संघर्ष विराम फिलिस्तीन की चिंताओं को भी पूरी तरह दूर करने वाला नहीं है।

बहरहाल युद्ध विराम के बाद गाजा में शासन की क्या और कैसी व्यवस्था होगी। यह तय होना बाकी है। समझौते के तीसरे चरण में गाजा का पुनर्निर्माण शामिल होगा। गाजा के पुनर्निर्माण के ​िलए प्रतिबंद रहित सहायता और विस्थापित फि​लिस्तीनियों की वापसी शामिल है। विध्वंस के बाद नवसृजन ही होता है। नवसृजन के लिए वैश्विक शक्तियों को मदद देनी होगी और फिलिस्तीन को मानवीय त्रासदी से निकालना होगा।

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