शांति समझौतों से बदली तस्वीर - Punjab Kesari
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शांति समझौतों से बदली तस्वीर

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अपने अद्भुत अकल्पनीय और अविस्मरनीय संस्कृति और विरासत के लिए विख्यात पूर्वोत्तर के राज्यों में अभूूतपूर्व विकास हुआ है। पूर्वोत्तर के राज्य जो पिछले कई दशकों तक हिंसा, अराजकता और अलगाव का शिकार रहे उनमें अब शांति स्थापित हो रही है और विकास का तेज सूर्योदय उन्हें रोशन कर रहा है। वहां के निवासी देश से अलग-थलग पड़ने की वजह से हीनभावना का शिकार हो गए थे अब उत्साह से भरे हुए हैं। पूर्वोत्तर की दिल्ली से दूरियां कम होने से लोग अब राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने के मकसद से विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ 11 शांति समझौते किए हैं। अब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में बुधवार को केन्द्र सरकार, त्रिपुरा सरकार, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ) के प्रतिनिधियों के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। यह समझौता पूर्वोत्तर के लिए 12वां और त्रिपुरा से सम्बन्धित तीसरा समझौता है। दोनों उग्रवादी संगठनों का मकसद पूर्वोत्तर राज्य के अन्य अलगाववादी संगठनों के साथ मिलकर हथियारों के बल पर त्रिपुरा को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करना रहा है। दोनों ही संगठन हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। पूर्वोत्तर में शांति स्थापना के मकसद से समझौते कोई नए नहीं हैं। 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उपस्थिति में भारत सरकार के प्रतिनिधियों और असम आंदोलन के नेताओं के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। असम समझौते में असमिया सांस्कृतिक, आर्थिक आैर राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए सहमति व्यक्त की गई थी। शांति समझौतों के बाद हजारों उग्रवादियों ने हथियार डालकर राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होने का संकल्प लिया है। वर्ष 2023के समाप्त होते-होते असम और उत्तर पूर्वी राज्यों में हिंसा का पर्याय बने उल्फा संगठन के साथ त्रिपक्षीय शांति समझौता किया गया था। नगालैंड और मणिपुर में सक्रिय एनएससीएन के बाद खूंखार उग्रवादी गुट उल्फा का नेटवर्क असम ही नहीं पूरे पूर्वोत्तर तक पसरा हुआ था।
2020 में केंद्र सरकार ने बोडो शांति समझौता किया था। इसी साल केंद्र सरकार ने एक और समझौता किया था, जिसका नाम ब्रू-रियांग समझौता था। 2019 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा समझौता किया था। 2021 में कार्बी एंगलोंग समझौता किया गया था। 2022 में असम-मेघालय सीमा विवाद समझौता किया गया। 2023 में असम-अरुणाचल बॉर्डर एग्रीमेंट पर समझौता किया गया था। 2023 में दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी समझौता किया गया था। इसके बाद 2023 में एग्रीमेंट विद यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। 2023 में एग्रीमेंट विद यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम नामक समझौता किया गया। 2023 में त्रिपुरा मोथा एग्रीमेंट किया गया था।
आत्मसमर्पण करने वाले युवाओं के लिए पुनर्वास योजनाएं चलाई गईं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में विकास की अपार सम्भावनाएं देखीं और लुक ईस्ट नीति की शुरूआत की जो अब एक्ट ईस्ट नीति में बदल गई है। अब पूर्वोत्तर राज्यों को दक्षिण पूर्व ​एशिया के ​िलए भारत के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जा रहा है। पूर्वोत्तर के राज्य न दिल्ली से दूर हैं न दिल से। पूर्वोत्तर भारत में हवाई अड्डाें की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। 2014 से पहले उड़ानों की संख्या केवल 900 थी अब यह बढ़कर लगभग 2000 हो गई है। पूर्वोत्तर राज्यों ने पहली बार भारत के रेलवे के मानचित्र में जगह बनाई है। जलमार्गों का लगातार विकास किया जा रहा है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कनेक्टीविटी परियोजनाएं जारी हैं। नगालैंड को 100 साल बाद अपना दूसरा रेलवे स्टेशन मिला। आजादी के 67 साल बाद मेघालय रेल नेटवर्क से जुड़ा। पहली मालगाड़ी दिल्ली से मणिपुर पहुंची। पूर्वोत्तर को पहली सैमी हाई स्पीड ट्रेन मिली। सिक्किम को पहला हवाई अड्डा मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शासनकाल में लगभग 70 बार पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा किया। यह देश के सभी प्रधानमंत्रियों की कुल यात्रा से कहीं अधिक है। हर वर्ष पूर्वोत्तर के ​विकास के लिए करोड़ों का फंड दिया जा रहा है। आॅप्टीकल फाइबर नेटवर्क को बढ़ाकर पूर्वोत्तर में डिजिटल क्नेक्टीविटी को बढ़ावा दिया जा रहा है। जहां शांति होती है वहीं विकास सम्भव है।
पूर्वोत्तर राज्यों में मणिपुर को छोड़कर उग्रवाद की घटनाओं में बड़ी गिरावट आई है। त्रिपुरा और मेघालय में अफस्पा को पूरी तरह से हटा लिया गया है। असम, मणिपुर, अरुणाचल, नगालैंड के अब कुछ जिलों में ही अफस्पा लागू है। राज्यों में 4 लेन की सड़कें, फ्लाओवर पुल कायाकल्प की गवाही देते हैं। त्रिपुरा काे दो उग्रवादी गुटों के हुए समझौते के बाद 250 करोड़ का पैकेज दिया गया है। इस समझौते के सूत्रधार रहे गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि 35 साल से चला आ रहा संघर्ष अब समाप्त हो गया है और यह सब शांति और संवाद से ही सम्भव हुआ है। मोदी सरकार ने नार्थ-ईस्ट से दिलों का फासला दूर किया है। मोदी सरकार की सफलता यह भी है कि उसने पूर्वोत्तर में हस्ताक्षरित सभी शांति समझौतों काे ईमानदारी से लागू किया है ​िजससे लोगों का विश्वास पुख्ता हुआ है। उम्मीद है ​िक आने वाले वर्षों में पूर्वोत्तर के राज्यों में पूरी तरह से शांति स्थापित होगी और वहां के लोग राष्ट्र की मुख्य धारा में पूरी तरह से शामिल हो जाएंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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