राज्यों के बांधे हाथ लेकिन... - Punjab Kesari
Girl in a jacket

राज्यों के बांधे हाथ लेकिन…

NULL

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस महानिदेशकों के चयन और उनकी नियुक्ति के सम्बन्ध में पिछले वर्ष 3 जुलाई को दिए गए अपने आदेश में बदलाव की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और बिहार सरकार की याचिकाएं ठुकराते हुए कहा है कि उसके द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश बहुत अच्छे हैं। यह ​दिशा-निर्देश डीजीपी की नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप रोकने के लिए जनहित में जारी किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने देश में पुलिस सुधार के बारे में अनेक निर्देश दिए थे और नियमित पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति पर उठाए जाने वाले कदमों को क्रमबद्ध किया था। न्यायालय ने कहा था कि राज्यों को पुलिस प्रमुख के सेवानिवृत्त होने से कम से कम 3 महीने पहले नए पुलिस प्रमुख के बारे में वरिष्ठ अधिकारियों की सूची संघ लोक सेवा आयोग को भेजनी होगी। इसके बाद आयोग अपनी सूची तैयार करके राज्यों को सूचित करेगा। उस सूची में से किसी एक अधिकारी को पुलिस प्रमुख नियुक्त करने की सुविधा राज्य सरकारों के पास होगी।

पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति का मामला पुलिस सुधारों से जुड़ा हुआ है। 2006 में पुलिस सुधारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए 7 सूत्रीय दिशा-निर्देशों से बचने की कोशिश तत्कालीन केन्द्र सरकार ने भी की और राज्य सरकारों ने भी। कुछ राज्यों को छोड़कर बाकी सबने पुलिस सुधारों की दिशा में आगे बढ़ने की बजाय तरह-तरह के बहाने ही बनाए। इस बहानेबाजी के मूल में थी पुलिस का मनमाफिक इस्तेमाल करने की आदत। राजनीतिक दलों की इस आदत ने ही पुलिस सुधारों की राह रोके रखी। राजनीतिक दलों की इसी प्रवृत्ति के चलते पुलिस सुधार सम्बन्धी दिशा-निर्देश ठण्डे बस्ते में पड़े रहे। अन्ततः सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति पर रोक लगाकर सही कदम उठाया। सुप्रीम कोर्ट के आदेेश के बावजूद राज्य सरकारें कार्यवाहक पुलिस प्रमुखों की नियुक्तियां करती रहीं। फिर उन्हें कार्य विस्तार देती रहीं और उन्हें स्थायी कर दिया गया। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने 5 राज्यों की याचिका ठुकरा दी है, बेशक उसकी मंशा शीर्ष पुलिस नेतृत्व को कार्यपालिका और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखना हो मगर इसके क्रियान्वयन में कुछ दिक्कतें भी हैं।सवाल यह भी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला संघीय व्यवस्था के खिलाफ तो नहीं? प्रथम दृष्टया ऐसा ही लगता है।

राज्यों ने दलील दी थी कि पुलिस एक विशेष क्षेत्राधिकार है, इसलिए पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति का अधिकार भी राज्य के पास होना चाहिए। राज्य चाहते थे कि डीजीपी की नियुक्ति के लिए स्टेट इंटरनल कमेटी को अनुमति दी जाए जो अभी तक यह अनुमति संघ लोक सेवा आयोग की कमेटी देती है। राज्य सरकारों का यह भी कहना है कि पुलिस प्रमुखों का सरकारों से तालमेल बेहतर होना चाहिए और साथ ही राज्यों काे भौगोलिक जटिलताओं के साथ पैदा हुई खास चुनौतियों से निपटने में दक्षता भी होनी चाहिए। राज्य सरकारों का तर्क है कि हो सकता है कि संघ लोक सेवा आयोग की सूची में शैक्षिक और विभागीय मानकों में दक्ष अधिकारी का चयन किया जाए लेकिन हो सकता है कि वह राज्य की चुनौतियों से बेहतर ढंग से वाकिफ न हो। ऐसे में राज्य सरकारों को एक समिति बनाने का विकल्प दिया जाना चाहिए। इस कमेटी में उच्च पुलिस अधिकारी, सरकार और नेता विपक्ष जैसे जिम्मेदार लोगों को शामिल किया जा सकता है। यह कमेटी पारदर्शितापूर्ण ढंग से अफसर का चयन कर सकती है और इससे अदालत के दिशा-निर्देशों का पालन भी हो सकेगा।

कोर्ट ने राज्य सरकारों के तर्क को स्वीकार ​नहीं किया और शीर्ष अदालत ने 5 राज्य सरकारों के हाथ बांध दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला तार्किकता के आधार पर है लेकिन राज्य सरकारों के तर्कों में व्यावहारिकता है। दरअसल एक बार पुलिस प्रमुख की नियुक्ति हो जाती है तो उसका कार्यकाल भी कम से कम दो वर्ष तय हो जाता है तो फिर यह उम्मीद की जा सकती है कि वह पुलिस की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने के कुछ ठोस उपाय कर सकता है। अभी तो पुलिस प्रमुख अपनी कुर्सी बचाने की चिन्ता में अधिक रहते हैं। राज्य सरकारों द्वारा पुलिस का राजनीतिकरण करने की प्रवृत्ति बढ़ी है, इसी क्रम में राज्य सरकारें अपने मनपसन्द अफसरों की ​नियुक्त करती हैं। सरकार और आला अफसरों में तालमेल ही न बैठे तो फिर ऐसी नियुक्तियों का क्या लाभ? दरअसल नियुक्तियों में पारदर्शिता लाने का काम राज्य सरकारों को करना चाहिए था लेकिन यह काम भी मजबूर होकर न्यायपालिका को करने पड़े हैं। राजनीतिक दल जितना भी कहते रहें कि न्यायपालिका अपनी सीमा लांघ रही है लेकिन दोष तो कार्यपालिका का है, जो लगातार पुलिस सुधारों को नजरंदाज करती आ रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four − 3 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।