Old age is curse यह कहावत है परन्तु हम पिछले कई सालों से इसे वरदान बनाने की कोशिश में लगे हैं क्योंकि जो बुजुर्गों ने सारी उम्र अपने बच्चों और समाज पर लगा दी उनके लिए यह समय अच्छा ही होना चाहिए। मुझसे बहुत से लोग सवाल पूछते हैं कि जरूरतमंद या जिनका कोई नहीं उनके रहने के लिए ह्रद्यस्र ॥शद्वद्ग बने हैं। आधुनिक तरीके से समाज भी ओल्ड ऐज के लिए बन गया है तो फिर अच्छे घरों के सम्पन्न लोगों के लिए किस बात की जरूरत है तो मैं हमेशा एक ही बात कहती हूं कि जरूरतमंद इंसान तो अपनी भावनाएं रोकर व्यक्त कर लेता है परन्तु सम्पन्न घरों के लोगों को बहुत मुश्किल होती है।
अभी-अभी मुझे चण्डीगढ़ से संजय टंडन और उनकी पत्नी प्रिया टंडन द्वारा साप्ताहिक संडे स्टोरिज वीडियो भेजी जो मेरे दिल को छू गई। मैं आपसे भी शेयर करना चाहती हूं कि एक दम्पति की 50वीं वर्षगांठ थी, वह बुजुर्ग हो चुके थे, उनसे अधिक चला-फिरा भी नहीं जाता था। उनके 3 बेटे जो कि वैल सैटल्ड थे और एक बेटी भी है, तीनों बेटों ने उन्हें सालगिरह पर उपहार दिए। एक ने सोने का सिक्का दिया, एक ने उनके खाते में चैक जमा करा दिया, एक ने उनको कहा कि दुनिया की अच्छी जगह पर घूम आओ खर्च वो करेंगे और उनकी बेटी जो बहुत ज्यादा वैल ऑफ नहीं थी उसने उनके मतलब का कुत्र्ता-पायजामा और मां को सूती साड़ी दी जो उनके काम की थी और पूरा दिन उनके साथ बिताया और वह रोज उनको आकर मिलती थी अगर किसी दिन न आ पाती तो वह फोन जरूर करती थी और उनके बेटों-बहुओं के पास समय नहीं था। कुछ दिन बाद जब दोनों की मृत्यु हुई तो सोने का सिक्का, चैक सब कुछ वहीं का वहीं था, बस जो बेटी ने उनके साथ समय बिताया था वो ही नहीं था। कहने का भाव की इस उम्र में बुजुर्गों को अपने बच्चों का साथ व समय चाहिए या रोज दो मीठे बोल बोल लें। वह अपना दु:ख-दर्द व्यक्त कर सकें। उन्हें प्यार व सम्मान दें वो ही काफी है।
ऐसे ही मुझे पिछले सप्ताह एक बुजुर्ग व्यक्ति की क्रिया में शामिल होने का अवसर मिला। उसके दोनों बेटे-बहुएं लंदन में थी। उनका पिता दो महीने से बीमार थे चल-फिर नहीं सकते थे। बेटों ने नर्स रख दी, सहायक रख दिए, पर उनके पास समय नहीं था कि वो अपने बूढ़े पिता को आकर देख सकें, उनकी सेवा कर सकें, उनके साथ कुछ भावनात्मक पल बिता सकें परन्तु जब मृत्यु का समाचार सुना तो दोनों बेटे-बहुएं आए और बड़ी शान से क्रिया की रस्म अदा की गई। हजारों लोग एकत्रित हुए। क्या विडम्बना थी जो पिता एक मिनट को तरस रहे थे कि उनके बच्चे उनके पास आएं उनका हालचाल पूूछें, उनके साथ कुछ पल बितायें या मित्र मिलने वाले आएं उनका हाल पूछें क्योंकि उनके पास सब कुछ था। धन-दौलत, आराम का सब कुछ, इस नाजुक अवस्था में बस था नहीं तो उनके बच्चों का समय उनके पास नहीं था। मैं यह भी सोच रही थी कि इतने लोग आये हैं कोई इनमें से रोज 10 मिनट भी लगाते तो उनका आखिरी समय कितना अच्छा व्यतीत होता। तो भाव यह है कि इस उम्र में वो बुजुर्ग जिनके पास सब कुछ है उन्हें किसी चीज की कमी नहीं, कमी है तो सिर्फ बच्चों के साथ समय बिताने की। इस समय उनके पास सबसे बड़ा उपहार है समय जो उनके साथ बिताया जाए।