अफगानिस्तान में लगातार बम धमाकों में लोग मारे जा रहे हैं। यद्यपि गजनी शहर को तालिबान से मुक्त करा लिया गया है लेकिन काबुल धमाकों से कांपता रहता है। ईद का पवित्र त्यौहार बिना किसी खून-खराबे के मनाने के लिए राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान के साथ तीन माह के युद्धविराम का ऐलान किया था। युद्धविराम 20 अगस्त से 20 नवम्बर यानी पैगम्बर मोहम्मद के जन्मदिवस तक जारी रहेगा। सरकारी आदेश में यह भी कहा गया था कि अगर तालिबान युद्धविराम का सम्मान करता है तो ही इसे लागू किया जाएगा। दूसरी ओर तालिबान नेता मौलवी हबीबुल्ला का कहना है कि देश में 17 वर्षों से चल रही जंग तभी बन्द हो सकती है जब अमेरिका से उनकी सीधी बात हो।
तालिबान अफगानिस्तान में कानून को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है और संप्रभुता चाहते हैं। 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाली सेनाओं ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था, तभी से ही अफगान सेनाओं और तालिबान के बीच जंग चल रही है। एक तरफ जर्जर हो चुके अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण का काम चल रहा है तो दूसरी तरफ विध्वंस का दुष्चक्र चल रहा है। युद्धविराम के ऐलान के बावजूद तालिबान ने कुंदूज प्रांत में लगभग 170 लोगों को बंधक बना लिया। यद्यपि सुरक्षा बलों ने 149 को आजाद करा लिया, अभी भी 21 लोग तालिबान की गिरफ्त में हैं। तालिबानियों को उन सरकारी कर्मचारियों या सैनिकों की तलाश थी, जो ईद पर छुट्टियां मनाने घर जा रहे थे। इंसानियत के दुश्मन ये आतंकी ईद-उल-जुहा पर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए। राष्ट्रपति गनी के भाषण के दौरान राकेट हमला और कई विस्फोट किए गए।
राष्ट्रपति ने कहा कि उनका देश अपनी संप्रभुत्ता की रक्षा करेगा। अफगानिस्तान बार-बार पाक को इस बात के लिए फटकार लगाता रहता है कि पाकिस्तान तालिबानी आतंकियों को संरक्षण दे रहा है। पाकिस्तान तालिबान के नेताओं को खुले तौर पर घूमने की छूट आैर प्रशिक्षण देता है। अफगानिस्तान ने इस बात के सबूत भी दिए हैं कि उनके देश में सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमला करने वालों को पाकिस्तान के सीमावर्ती शहर चमन में इस्लामिक स्टेट के मदरसों में ट्रेनिंग दी गई। हत्यारे तालिबान हों या दाएश, यह कैसी दुनिया है। मुसलमान ही मुसलमान को मार रहे हैं। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगे भारतीयों पर भी हमले होते रहे हैं। भारत ने वहां अनेक परियोजनाएं हाथ में ले रखी हैं।
अफगानिस्तान की संसद का निर्माण भी भारत ने ही करके दिया है। पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी नहीं चाहता। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच न तो कोई परिभाषित और नियंत्रित सीमा है, इसलिए सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले कबीले अपने-अपने ढंग से काम करते हैं और पाक अपने स्वार्थों के लिए उनका इस्तेमाल करता है। अफगानिस्तान की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं जहां कोई भी विदेशी आक्रांता आज तक जीत हासिल नहीं कर पाया। पहले अफगानिस्तान में रूस ने हस्तक्षेप किया था और फिर अमेरिका ने रूस की राजनीति काे ही ध्वस्त करके रख दिया। तोरा-बोरा की पहाड़ियों में अमेरिका के नेतृत्व वाली सेनाओं ने बहुत खाक छानी लेकिन उन्हें कभी सफलता नहीं मिली।
अमेरिकी सैन्य बलों की नाकामी के पीछे बड़ी वजह पाकिस्तान ही है क्योंकि उसकी तालिबान के अनेक गुटों में सहानुभूति रही है आैर वह उन्हें धन-बल आैर हथियारों की मदद देता है। अमेरिका ने करजई सरकार के शासन के दौरान तालिबान से बातचीत का प्रयास किया था लेकिन तब वह ‘गुड तालिबान’ और ‘बैड तालिबान’ में विभाजन रेखा खींचना चाहता था। ऐसी रेखा खींचकर वह ‘गुड तालिबान’ से वार्ता का इच्छुक रहा लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ी। अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा? क्या वहां शांति लौट सकेगी? दरअसल अफगानिस्तान में आम पठान लोग पिछले तीन दशक से वैश्विक ताकतों का ही खेल देख रहे हैं। अब तक वह इतने धमाके और शवों को देख चुके हैं कि उन्हें मौत का कोई भय नहीं रहा।
आम पठान बहुत स्वाभिमानी होता है। उनमें इस बात का असंतोष भी है कि उनके देश में अपने लोगों की सरकार क्यों नहीं बनी? वहां के लोग तो बबरक कारमल और नजीबुल्लाह की सरकारों को रूस की कठपुतली सरकारें मानते थे और बाद में करजई आैर मौजूदा अशरफ गनी की सरकारों को अमेरिका की कठपुतली मानते हैं। पहले रूसी फौजों को अफगानिस्तान से निकालने के लिए अमेेरिका ने तालिबान को खड़ा किया। जब अमेरिका में 9/11 का हमला हुआ तो तालिबान उसका दुश्मन नम्बर-एक बन गया। तालिबान का कहना है कि मौजूदा सरकार अमेरिका की कठपुतली है इसलिए वह अमेरिका से बातचीत करेगा।
तालिबान ने यह भी दावा किया था कि उसके कुछ अधिकारियों ने कतर में अमेरिकी राजनयिकों से मुलाकात की थी। बीते कुछ वर्षों के दौरान तालिबान तेजी से मजबूत हुआ है और इसके लड़ाके अफगानी सुरक्षा बलों पर लगातार हमले कर रहे हैं। अफगानिस्तान में शांति के लिए या तो अमेरिका तालिबान से वार्ता करे या फिर अफगानिस्तान को पूरी तरह छोड़ दे। जब तक अफगानिस्तान वैश्विक शक्तियों का अखाड़ा बना रहेगा, खून-खराबा होता ही रहेगा। या तो तालिबान को पूरी तरह नेस्तनाबूद करना होगा या फिर वहां शांति के लिए लम्बा रास्ता तय करना होगा अन्यथा पुनर्निर्माण आैर विकास का कोई लाभ नहीं होगा। इसके लिए पाक पर नकेल कसना भी जरूरी है।