कश्मीर में चुनावों की सुगबुगाहट - Punjab Kesari
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कश्मीर में चुनावों की सुगबुगाहट

जम्मू-कश्मीर राज्य में चुनाव क्षेत्र परिसीमन की प्रक्रिया होने के बाद अब राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने की बारी

जम्मू-कश्मीर राज्य में चुनाव क्षेत्र परिसीमन की प्रक्रिया होने के बाद अब राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने की बारी है। इस प्रक्रिया के लिए भी एक शर्त है कि राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये। अतः इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि संसद के वर्षाकालीन सत्र में इस औपचारिकता को पूरी करके मोदी सरकार इसी वर्ष के अन्त तक  गुजरात व हिमाचल प्रदेश के साथ ही इस राज्य के चुनाव करा दे।  ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने कल ही अपने ही जम्मू-कश्मीर दौरे के दौरान इस बात के संकेत दिये हैं कि केन्द्र सरकार इस साल के अन्त तक राजनीतिक चुनावी प्रक्रिया शुरू कर दे। श्री सिंह मोदी सरकार के एेसे वरिष्ठतम मन्त्री माने जाते हैं जो बहुत कम नपा-तुला बोलते हैं। अतः उनके कथन को गंभीरता से लेना होगा। श्री राजनाथ सिंह जम्मू में इस रियासत के महाराजा रहे गुलाब सिंह की ताजपोशी के 200वें वर्ष के अवसर पर आयोजित समारोह को सम्बोधित कर रहे थे जब उन्होंने ये विचार व्यक्त किये कि सूबे में राजनीतिक प्रक्रिया संभवतः साल के अंत तक शुरू हो सकती है। उन्होंने परिसीमन का काम पूरे होने का जिक्र भी किया। इससे पहले जब 5 अगस्त, 2019 को इस राज्य को दो सूबों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में बांटते हुए अनुच्छेद 370 को हटा कर इसका विशेष दर्जा समाप्त किया गया था तो इसे केन्द्र शासित अर्ध राज्य बना दिया गया था। उसी समय यह सवाल उठा था कि स्वतन्त्र भारत में पहली बार किसी राज्य का दर्जा बजाये बढ़ाने के घटाया जा रहा है। तब गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की थी कि सरकार उपयुक्त समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा जरूर देगी।
 जाहिर है कि 2019 में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की वजह से उठे कोलाहल को शान्त करने की गरज से सरकार ने कारगर कदम उठाये थे। मगर  इसके कुछ समय बाद ही मोदी सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि राज्य के लम्बित चुनावी परिसीमन की प्रक्रिया को पूरी किये बगैर राज्य में चुनाव नहीं कराये सकते। हालांकि स्थानीय जिला विकास परिषदों के चुनाव कराये गये थे। केन्द्र प्रशासित क्षेत्र के रहते ही जम्मू-कश्मीर के लोगों के विकास की प्रक्रिया को बढ़ाया गया था और सीधे आम नागरिकों के हाथ में परोक्ष रूप से यह अधिकार दिया गया था। जिला विकास परिषदों के चुनाव का प्रयोग बहुत सफल रहा था जिसमें आम नागरिकों की भागीदारी भी उत्साहवर्धक रही थी। इसके बाद चुनाव परिसीमन का काम शुरू हुआ और इसने अब अपना काम पूरा करके विधानसभा चुनाव क्षेत्रों का पुनर्गठन कर दिया है।
राज्य में विधानसभा की पहले कुल 83 सीटें थीं जिनमें से 37 जम्मू क्षेत्र की थीं और 46 कश्मीर घाटी की थीं। पुनर्सीमन के बाद जम्मू इलाके की  सीटें 43 व कश्मीर क्षेत्र की 47 रखी गई हैं जिससे विधानसभा की सदस्य संख्या बढ़ कर 90 हो गई है। यह फेरबदल चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त परिसीमन आयोग ने किया है जिसके फैसले को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके साथ ही 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों के ​लिए खाली ही रहेंगी। हालांकि परिसीमन आयोग के फैसले पर राज्य के क्षेत्रीय दलों जैसे पीडीपी व नेशनल कान्फ्रेंस ने हाय-तौबा मचाई थी मगर अन्त में प्रदेश के भौगोलिक व जनसंख्यागत गणित को देखते हुए तथा अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए जरूरी आरक्षण को देखते हुए सीटों के परिसीमन पर राजनीतिक दलों को सहमत होना ही पड़ा। 
अनुच्छेद 370 के चलते इस राज्य में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए विधानसभा में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं थी क्योंकि तब 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान भी लागू होने की वजह से यह व्यतिक्रम बना हुआ था। 370 हटने के बाद एक मुश्त रूप से राज्य पर देश का संविधान ही लागू होता है। बीते तीन वर्षों में राज्य की स्थिति में हालांकि खासा सुधार दर्ज हुआ था  मगर पिछले छह महीनों से जिस तरह घाटी में कश्मीरी पंडितों व अन्य राज्य के लोगों की चुन-चुन कर हत्या करने के मामले प्रकाश में आये उससे यह आभास हो रहा था कि घाटी में आतंकवादी भेष बदल-बदल कर जेहादी मुहीम चला रहे हैं। उनकी  इस कायरतापूर्ण बर्बर कार्रवाई का जवाब देने के लिए सुरक्षा बलों ने जिस मुस्तैदी का परिचय देना शुरू किया है और पिछले महीने एक हिन्दू शिक्षिका रजनीबाला की हत्या का बदला सशस्त्र बलों ने तीन आतंकवादियों को ढेर करके जिस तरह लिया है उससे यह उम्मीद बंधती है कि मोदी सरकार किसी भी कीमत पर आतंकी हरकतों को बढ़ने नहीं देगी क्योंकि कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी यह मांग करने लगे थे कि उनकी नियुक्ति घाटी के अलावा अन्य स्थानों पर की जाये। इस मुद्दे पर भी सरकार ने दृढ़ता दिखाते हुए साफ किया पंडित कर्मचारियों की नियुक्ति घाटी में ही रहेगी मगर उनकी जगह बदल दी जायेगी। इसे देखते हुए श्री राजनाथ सिंह का यह भी कहना कि किसी भी समुदाय को पलायन करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा, बताता है कि मोदी सरकार हर सूरत में रियासत की पूरी जनता की हिफाजत के लिए यथायोग्य कदम उठाने पर आमादा है। राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने का इशारा भी यह बताता है कि सरकार राज्य की पूरी शासन प्रणाली को लोकतान्त्रिक पटरी पर लाकर लोगों को आश्वस्त करना चाहती है कि उनके नागरिक राजनीतिक अधिकारों को आतंकवादी किसी भी तौर पर बन्धक नहीं बना सकते।

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