घोर कलियुग.... रिश्तों का खून - Punjab Kesari
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घोर कलियुग…. रिश्तों का खून

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आज हमारा समाज कहां जा रहा है। न रिश्तों की कद्र, न मर्यादा, न संस्कार, रोज नई-नई घटनाएं-हादसे सामने आते हैं। कई बार तो ऐसी घटनाएं सामने आती हैं कि विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है। खून के रिश्ते सफेद हो गए। हमेशा छोटे होते पढ़ा, रटा और अपने माता-पिता से भी सुना Blood is thicker than water यानी खूनी रिश्ते सबसे बड़े होते हैं, जो भी हो जाए यह हमेशा हमारे साथ रहते हैं परन्तु जैसे समय बीत रहा है यह सब उलट नज़र आ रहा है। अब तो यह कह सकते हैं water is thicker than blood. पिछले दिनों जब मैंने सुना कि अर्जुन सिंह जी कि विधवा पत्नी को उसके बेटों ने घर से निकाल दिया तो बहुत ही पीड़ा हुई, मैं उन्हें अक्सर मिलती थी, बहुत ही नेक महिला हैं और एक समय था जब लोग, बच्चे उनके आगे-पीछे घूमते थे आैर अब जब पति ​िसर पर नहीं रहा, राजपाट नहीं रहा तो बच्चों ने उस मां का यह हाल किया। मैं क्योंकि बुजुर्गों के लिए दिन-रात काम करती हूं और रोजाना मेरे पास कई केस आते हैं। अक्सर बच्चे-रिश्तेदार जब किसी महिला के सिर से पति का साया उठ जाए तो ये ऐसा ही करते हैं। वे कभी नहीं सोचते कि उनके साथ भी कोई ऐसा कर सकता है। मुझे आज भी याद है जब मेरे जुड़वां बेटे पैदा हुए तो मैंने उनका नाम अर्जुन, आकाश रखा तो मुझे उन्होंने कहा था कि अर्जुन नाम मत रखना। अर्जुन नाम वालों को कभी भी deserving मुकाम हासिल नहीं होता। मैं छोटी थी परन्तु वह अनुभवी थीं। मैं उनकी बात समझ नहीं पाई थी। काश! वो मेरा लेख पढ़ें और मुझे Contact करें।

मैं समझ ही नहीं पाती हूं कि कैसे लोग सर्विस से रिटायर होते हैं, जिनकी कुर्सी चली जाती है उनसे कैसे उनके बच्चे, रिश्तेदार, समाज के लोग नज़रें फेर लेते हैं, यहीं से उनका डिप्रेशन, अकेलापन शुरू हो जाता है। इसी कारण मैंने वरिष्ठ नागरिक क्लब की स्थापना की थी कि ऐसे लोग जो इस उम्र में तन-मन-धन की पीड़ा झेल रहे होते हैं उनका सहारा बन सकूं। आए दिन खबरें पढ़ रही हूं कि बेटे ने जायदाद के पीछे बाप को गोली मार दी या घर से बाहर निकाल दिया। मां को वृद्धाश्रम या मंदिर में छोड़ आए, चाचा-भतीजा जो एक ही थाली में खाना खाते थे, एक-दूसरे के बगैर नहीं रहते थे अब वो एक-दूसरे के दुश्मन हो गए। सबको मालूम है ​एक दिन सभी ने चले जाना है। कुछ भी साथ नहीं लेकर जाना तब भी…? कहीं छोटी नन्हीं बच्चियों का रेप हो रहा है और उसमें सबसे ज्यादा जानने वाले या नजदीकी रिश्तेदार शामिल हैं। यही नहीं पिछले दिनों एक दोस्त मेजर ने अपने दोस्त मेजर की पत्नी को जान से मार दिया, फिर कार तले रौंद दिया। समझ ही नहीं आया कि पागलपन या साइकी केस है या कुछ और ही निकलेगा और मेजर और उस लड़की की दोस्ती फेसबुक पर हुई थी।

एक तो सोशल मीडिया ने रिश्तों को तार-तार करके रख दिया? सब-कुछ बनावटी, नकली दिखाई देता है। मुझे तो लगता है लोग शो​िपंग करते हैं, घूमते हैं, कपड़े-बैग खरीदते हैं सब-कुछ फेसबुक पर डालने के लिए, किसी को नीचा दिखाना, झूठी खबर फैलाना यह सब सोशल मीडिया पर चल रहा है। बात का बतंगड़ बनाना। क्योंकि एक अखबार या चैनल की नैतिकता की जिम्मेदारी होती है, सोशल मीडिया पर तो कोई नियम-कानून ही नहीं। अभी-अभी आर्टिकल लिख रही थी तो एक खबर और सामने आई कि एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। क्या हो गया है इन रिश्तों काे।

एक बेटी जब पैदा होती है वह अपने पिता, फिर भाई और शादी के बाद अपने पति और बेटे पर पूरा भरोसा कर उसके साथ नया घर बसाती है परन्तु यह क्या? अगर मन-मुटाव या नाराजगी है तो दूरी कर लो या तो समझा-बुझा लो, यह क्या तुम मर्द हो तो शारीरिक रूप से कमजोर स्त्री को मार ही दो। यह हक किसी भी पुरुष को चाहे वह पिता, भाई, बेटा, पति के रूप में हो, नहीं दिया जा सकता। जब मैं यह सब देखकर बहुत दुखी होती हूं तो ब्रह्मकुमारियों की बात याद करती हूं कि यह कलियुग है आैर फिर सतयुग आने वाला है, यह कलियुग अब चरम सीमा पर है। अभी खबर आई कि एक सात साल की बच्ची का बड़ी बेरहमी से बलात्कार किया गया है कि डाक्टर भी रो पड़े, हे भगवान इतना अनर्थ, इतना पाप बस हद हो गई, अब तो सतयुग आना ही चाहिए।

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