एक अंग्रेजी कहावत है ‘‘अगर इच्छाएं अश्व होतीं तो हर भिक्षुक शहसवार हो जाता।’’ इच्छाएं सचमुच इच्छाएं हैं अश्व नहीं, परन्तु हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान फिर भी शहसवार बना हुआ है, उसके पास उन्माद नामक खतरनाक नस्ल का घोड़ा है जिसकी सवारी लगभग सभी पाक हुक्मरान कर चुके हैं। इन दिनों उन्मादी पाक घोड़े की सवारी पाक वजीर-ए-आजम क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान कर रहे हैं। अपनी ओछी हरकत के कारण यह मुल्क टूट कर दोफाड़ हो चुका है यानी बंगलादेश कब का अलग हो चुका है। कारण वही था- हिंसा, घृणा, अन्याय आैर उन्माद। दो टुकड़े हो जाने पर भी अगर उसने सही रास्ता अपनाया होता और भारत के महत्व को समझा होता तो शायद बात बन जाती परन्तु उसे होश नहीं आया।
आज वह मुल्क पािकस्तान कंगाल हो चुका है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और चीन के आगे झोली पसार कर सहायता की भीख मांग रहा है। उसे ऋण लेने के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की शर्तें झेलनी पड़ सकती हैं। अमेरिका की खैरात पाकर अब तक पलते आए पाकिस्तान में हर नस्ल के, हर खित्ते के आतंकवादी पलते हैं। हाथ में ए।के।-47 और होठों पर नारा-ए-तकबीर, बस यहीं तक उसकी दुनिया सीमित हो चुकी है। जिसके परिणामस्वरूप आतंकवाद और आईएसआई एक-दूसरे से गड्डमड्ड होकर रोज शैतानों की टोलियां सीमापार से हमारी ओर धकेल देते हैं। इन्हें आप कुछ भी कहें पाकिस्तान की बार्डर एक्शन टीम कहें, लश्कर कहें, जैश-ए-मोहम्मद कहें, नाम में क्या रखा है।
इतना तय है कि पाक की सेना का इन आतंकवादी संगठनों को पूरा समर्थन प्राप्त है। आज मुल्क में प्रधानमंत्री ऐसा व्यक्ति बैठा है जो क्रिकेटर रहा है, वह प्यार की भाषा तो जानता है लेकिन सेना के जरनैलों के आगे नतमस्तक है। जिस दिन उसने प्यार की भाषा बोली उसी दिन सेना तख्ता पलट कर देगी। रविवार को भी सुन्दरबनी सैक्टर से पाक शैतानों की टोली भारतीय सीमा में घुसपैठ का प्रयास कर रही थी। सुरक्षा बलों ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए दो घुसपैठियों को तो मार गिराया लेकिन इस दौरान तीन भारतीय जवानों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। भारत और पाकिस्तान में चौथा युद्ध होगा कि नहीं और होगा तो कब होगा यह बात शायद कोई नहीं जानता लेकिन युद्ध की बातें अवश्य होती रहती हैं और आगे भी होंगी। सवाल यह है कि आखिर कब तक हमारे जवान अपनी शहादतें देते रहेंगे। पाकिस्तान का एक बुद्धिजीवी वर्ग है जिनमें शायर, कलाकार, गायक, अभिनेता शामिल हैं। सत्ता पर सेना के परोक्ष कब्जे को लेकर उनमें आक्रोश भी है। अाधे-अधूरे लोकतंत्र में उनका दम घुटता है। पाक के शायर लिखते आ रहे हैं-
कितने दिन तक दुनिया रब की, हर जालिम का जुल्म सहेगी,
मुफलिस और भी मुफलिस होंगे, जर पे जवानी और बढ़ेगी।
सारी खलकत बूंद को तरसे, इस छत पर बारिश बरसेगी,
कुछ लोगों की खातिर कब तक, बाकी सबकी गोद उजड़ेगी
नफरत का व्यापार बढ़ेगा, जंग की भट्टी और जलेगी
कब तक हम आजाद न होंगे, वर्दी राज से जान छूटेगी?
भारत और पाकिस्तान दोनों के समझदार लोग बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, न्यायपालिका से जुड़े लोग चाहते हैं कि अमन कायम हो लेकिन वहां की सेना के पाले हुए आतंकी संगठन, हाफिज सईद जैसे कठमुल्ले आतंक की आग को बुझने ही नहीं देते। जितना धन उसने आतंकी ट्रेनिंग कैम्प चलाने पर खर्च किया, उससे तो पाक की गरीबी दूर हो सकती थी। आज कश्मीर के लोग 1947 का वह मंजर भी भूल गए जब कबायलियों के भेष में आक्रमण करके इन्हीं दरिंदों ने कश्मीर की महिलाओं पर कितने जुल्म किए थे। 13 हजार औरतें अगवा कर ली गई थीं।
पाकिस्तान की राजनीति भारत विरोध पर केन्द्रित है आैर उसके आतंकी संगठनों, आईएसआई और सेना का एक ही मकसद है भारत में खून की होली खेलो। पाकिस्तान का एक ही ध्येय है कि वह कश्मीर को हर कीमत पर भारत से अलग करना चाहता है। उसने कारगिल करके देख लिया। पाकिस्तान भूल गया कि उसके 90 हजार फौजियों को हमने रस्सा बांध कर रखा था, तब पाक गिड़गिड़ाया था, जिन्हें छुड़ाने के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने समझौते का स्वांग रच कर शिमला समझौता किया था। पाकिस्तान लगातार सीमाओं पर और कश्मीर घाटी में हमारे जवानों की हत्याएं कर रहा है। कालचक्र की अनबूझ गति के अधीन जो भी घट रहा है, वह चिन्ता का विषय है।
क्या पाकिस्तान का कोई इलाज नहीं? यह जंग दरअसल पाक और भारत के बीच नहीं, दरिंदगी और इंसानियत के बीच है। जो दरिंदे इंसान की जात पर हमला करें उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं। जंग अगर लाजिमी हुई तो जंग भी होनी ही चाहिए। राष्ट्र के नेतृत्व से एक ही गुजारिश है कि वह पाक से सावधान होकर देश का नेतृत्व करे। पाकिस्तान को चौथी बार युद्ध में हराने की तैयारी करनी ही होगी। पाकिस्तान का एकमात्र इलाज है-
समय नकाबे नोचता, कर देता बदरंग
बच-बच कर क्या जूझना, लड़ निर्णायक जंग।
राष्ट्र का आह्वान क्षात्र तेज प्रकट करने के लिए करें।