भारतीय खुफिया एजैंसियों और पुलिस को एक जबरदस्त सफलता उस समय मिली जब सिमी के पूर्व अध्यक्ष और भारत में मोस्ट वांटेड आतंकवादियों में से एक को कनाडा में हिरासत में लिया गया। वह कैम बशीर नाम का आतंकवादी मुलुंड बम धमाके में आरोपी है। 2003 में मुम्बई के उपनगर में रेलवे स्टेशन पर हुए धमाके में 11 लोगों की जान चली गई थी और 70 के लगभग लोग घायल हुए थे। हालांकि बशीर 1992 में देश छोड़कर भाग गया था लेकिन मुम्बई पुलिस को सफलता अब जाकर मिली। इतने वर्षों में बशीर पाकिस्तान, दुबई और कनाडा में चक्कर काटता रहा और पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई के साथ मिलकर काम करता रहा। विदेश में रहकर वह भारत में आतंकी गतिविधियों को संचालित करता रहा। बशीर केरल के एर्नाकुल्लम के अलुवा का निवासी था। इंटरपोल की सूचना पर मुम्बई पुलिस ने अदालत में एक आवेदन कर केरल में उसके रिश्तेदारों का डीएनए परीक्षण कराने की मांग की थी। अदालत की अनुमति मिलने के बाद डीएनए परीक्षण किया गया जब बशीर के कनाडा में होने की पुष्टि हुई। मुम्बई पुलिस ने उसके प्रत्यार्पण की प्रक्रिया शुरू कर दी। एयरोमोटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक बशीर ने कुछ समय के लिए नई दिल्ली हवाई अड्डे पर काम भी किया था।
अब सवाल यह है कि कनाड भारत विरोधी तत्वों की शरण स्थली क्यों बन गया है। खालिस्तानी हो या मुस्लिम आतंकवादी हर किसी ने कनाडा को क्याें केन्द्र बना रखा है। पंजाब के गैंगस्टर कनाडा में बैठे हैं। कनाडा के अपराध जगत में भारत का बोलबाला है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि कई अपराधिक मामलों में वांचित ग्यारह गैंगस्टरों में से 9 पंजाब मूल के निवासी हैं। ब्रिटिश, कोलम्बिया पुलिस का कहना है कि यह गैंगस्टर कई हत्याओं और अपराधों में आरोपी हैं। वहीं पंजाब के ए-सूचीबद्ध सात गैंगस्टरों में से लखबीर सिंह उर्फ लांडा, मूसेवाला हत्याकांड में वांछित गोल्डी बराड़, चरणजीत सिंह उर्फ रिंकू रंधावा, अर्शदीप सिंह उर्फ अर्श डाला और रमनदीप सिंह उर्फ रमन जज इस वक्त कनाडा में छिपे हुए हैं। इसके अलावा अन्य दो गैंगस्टर गुरपिंदर सिंह उर्फ बाबा डल्ला और सुखदुल सिंह उर्फ सुखा दुनेके हैं। दोनों अवर्गीकृत हैं और लक्षित हत्याओं के मामलों में वांछित हैं। पुलिस के डोजियर में कहा गया है कि सभी सातों गैंगस्टर्स ने छोटे समय के अपराधियों के रूप में शुरूआत की और समय के साथ कट्टरपंथी गैंगस्टर बन गए।
खालिस्तान समर्थक तत्व कनाडा में रहकर भारत विरोध की हदें पार कर रहे हैं। पिछले दिनों पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकालने की घटना ने सभी हदें पार कर दी। जो बताती है कि कनाडा में भारत विरोधी पृथकतावादियों के हौसले कितने बुलंद हैं और उन्हें सत्ता में शामिल लोगों का संरक्षण मिला हुआ है। चार जून को हुई इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हर भारतीय राष्ट्रवादी उद्वेलित हुआ है। जिसके चलते भारत सरकार ने भी घटना का कड़ा प्रतिवाद किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कड़े शब्दों में कहा है कि ये घटना न तो भारत-कनाडा संबंधों के लिये और न ही कनाडा के लिये ठीक है। यूं तो कहने के लिये भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैक ने इस घटना की निंदा की है और कहा है कि उनके देश में हिंसा व नफरत के महिमामंडन के लिये कोई स्थान नहीं है लेकिन वहीं कनाडा सरकार के एक मंत्री ने भारत पर उसके अंदरूनी मामलों में दखल देने का कुतर्क दोहराया है। दरअसल, कनाडा को समझ नहीं आ रहा है कि चरमपंथ, पृथकतावाद और हिंसा की तपिश का ताप देर-सवेर उसे भी महसूस करना पड़ेगा। दुनिया के कई देशों ने ऐसे कृत्यों को संरक्षण की कालांतर कीमत चुकायी है। इस बात का अहसास कनाडा के हुक्मरानों को जितनी जल्दी हो सके, अच्छा है।
कभी वहां खालिस्तान के नाम पर जनमत संग्रह कराया जाता है तो कभी भारतीय उच्चायोग घेरा जाता है तो कभी मंदिरों को निशाना बनाया जाता है। कनाडा अपने सीमा क्षेत्र में ऐसी हरकतों को बेकाबू छोड़ता है। यह उचित नहीं है। कनाडा लगातार चरमपंथियों और हिंसा का समर्थन करने वालों को फलने फूलने का मौका दे रहा है आैर इसके पीछे मकसद चुनावों में कुछ वोट हासिल करना है। भारत और कनाडा के बीच संबंध सामान्य ही रहे हैं और समय-समय पर दोनों देश कई स्तर पर कूटनीतिक पहल कदमी भी करते रहे हैं लेकिन दोनों देशों में मधुरता तभी बनी रह सकती है जब दोनों आपसी गरिमा का ध्यान रखें। भारत ऐसी गतिविधियों को सहन नहीं कर सकता। बेहतर यही होगा कि कनाडा अपने कानूनों की समीक्षा करे और देश से बाहर करने और उन्हें भरात के हवाले करने के लिए ठोस कदम उठाए। कनाडा के लिए स्पष्ट संदेश है कि वह अपनी जमीन पर भारत विरोधी हरकतों पर रोक लगाए और उन्हें नियंत्रित करे। उसे यह भी देखना होगा कि हर तरह के अपराधी और आतंकवादी उसके यहां ही क्यों छिपे बैठे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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